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आज का संस्करण

नई दिल्ली, 5 दिसंबर 2023

रमा सहारिया

ज के आधुनिक समाज और यात्रिक युग में मानसिक तनाव और रुग्णता आम बात हो गई है। संत्रास, कु न्डा, भग्नाशा, निराशा और विषाद आदि तनाव के ही विगभन्न नाम हैं। अधिकतर लोगो को इस प्रकार के तनाव से से गुजरना पड़ता है बहुत कम ऐसे हैं जिन्हें मानसिक तनाव नहीं घेरते। जाने-अनजाने तनाव के बहुत से कारण हो सकते हैं। हो सकता है की कोई व्यक्ति व्यर्थ की आकांछाओ से गिरा हुआ हो, उन बातों की अपेक्षा करता हो जिनकी जड़ें जमीन पर नहीं होती। वाल्टर टेम्पल ने ठीक कहा  है की “केवल मनष्यु ही रोता हुआ पैदा होता है शिकायत करता हुआ जीता है और निराश मरता है।” यह बात आज के लोगो की ज़िंदगी में देखने को मिल सकती है। विदुर निति में कहा गया है की “संसार के दखुी में पहला दखुी निर्धन है। उससे अधिक दुखी वह है जिसे किसी का क़र्ज़ चुकाना है। इन दोनों से अधिक दुखी वह है जो सदा रोगी रहता है। सबसे दखुी वह जिसकी पत्नी दुष्टा हो।”

मनोविज्ञानको का कहना है  की कुछ लोग कभी-कभी हीनता से ग्रलसत होने के कारण ऊपर से थोपी हुई गम्भीरता और चिंता का मखुौटा लगा लेते हैं और दबे मन से तनावग्रस्त होने का ढोंग करते है।जितना अधिक वह दुखी होते है उतनी ही उन्हें तृप्ति मिलती है। इस प्रकार कई व्यक्तियों को भ्रम में जीने का रोग लग जाता है।

निश्चय ही तनाव किसी न किसी कारण से होता है कोई प्यार सम्मान ना मिलने की वजह से अवसाद ग्रस्त हो जाता है। यह भी संभव है कि किसी व्यक्ति का जन्म एक जटिल परिस्थितियों में हुआ हो और दुर्भाग्य से उसका पालन- पोषण ठीक ढंग से ना हुआ हो। बचपन में प्यार ना मिलने के कारण युवक आगे चलकर खखन्नता का शिकार हो जाते हैं। कई अन्य कारणों से माता-पिता का ध्यान किसी बच्चे पर से हट जाता है तो बच्चों में मानसिक विषाद पैदा हो जाता है।

कभी-कभी युवक प्यार व् सनेह पाने के लिए इतनी आकांशी हो जाते है की इसके लिए भी अपने घर का ध्यान खींचते हैं। इतने पर भी जब हमे प्यार नहीं मिलता तो ये मानसिक रूप से बेचैन रहने लगते है। ऐसे में मानसिक सनक बढ़ जाती है। उनके अचेतन में चिंता और उदासीनता की पकड़ गहरी हो जाती है। इन्हीं अवसाद के श्नो युवक व युवतियां  ममुड़ी बन बैठते हैं। माता-पिता को इनकार करने लगते हैं। यह आंतरिक विषाद की मानसिकता उन्हें एक तरह से त्रासदी के मार्ग पर चलने क बाध्य करती है।

यदि व्यक्ति मानलसक तनाव का शिकार हो जाता है तो उसे यह जानना चाहिए कि इन तनाव के पीछे कारण क्या हो सकता है? क्या तनाव से मुक्ति मिल सकती है? क्या खुशहाल और उपयोगी जीवन व्यतीत किया जा सकता है  जब चाह पूरी नहीं होती तो व्यक्ति और भी अवसाद ग्रस्त हो जाता है। वैसे अपने को मनोविज्ञानिक दृष्टि से समझनेऔर समझाने का ठोस प्रयास किया जाए तो तनाव से मुक्ति पाई जा सकती है।

इसके लिए कुछ निमार्तिक सुझाव प्रस्ततु हैं –

 (1) प्रत्येक परिस्थितियों में अपने आपको एडजस्ट करना और इसके साथ-साथ हंसकर जीना भी एक कला है और बदली उपस्थिति में जो चीज़ आपको नहीं मिल सकती उसके लिए खन्न होने से क्या लाभ? ध्यान रहे जब किसी विचार को मन पकड़ लेता हैतो उलझन की प्रक्रिया भी शुरू हो जाती है। अतः यह ध्यान रखना चाहिए की उन मन बेलसर-पैर की बातों में ना उलझे।

(2) जीवन का अपना सहज मार्ग है-अपना निस्तार है। यदि आप अपने जीवन में सहज होना सीख लेंगे तो परिस्थितियोंके साथ तादाम्य स्थापित करने में अधिक सुविधा प्रात हो सके सकेगी अपना विचार बदलिए भीतर से अं दरद्वं द्वों से मत लदड़ए। अपने भीतर तुच्छ बातों को जिह ना दें। अपना मनोबल जाग्रत कीजिये । व्यर्थ की चिंताओं से ग्रस्त रहना मानसिक रुग्णता का संकेत है। अतः सहजता स्वीकार कीजिये ।

(3) जीवन का अपना नियम है–“आप प्यार कीजिये और प्यार के बदले कुछ भी पाने की आकांक्षा मत रखिये ।” वहीँ चूक होती है जहां प्यार के बदले कुछ पाने की चाह छिपी होती है। जो सिर्फ प्यार करना जानता है उस पर प्यार स्वतः बरस जाता है।

(4) तनाव से बचने के लिए एक सुगम उपाय यह है वक व्यक्ति को जिद्दी और दरुाग्रह नहीं होना चाहिए जिद्दी व दरुाग्रह व्यक्ति व्यर्थ में ही मन को अशांत कर लेता है। प्राकृवतक सौंदयच के साथ खुलकर खेलिए उसे सहचर बनाइए।

(5) ध्यान रहे प्रत्येक व्यक्ति अपनी खुशी स्वयं जुटा सकता है। खशुी कहीं से मिलती नहीं। खशु ख़ुशी वस्तुतः शातिचित अवस्था की आंतरिक स्थिति का नाम है। याद रहे की खुशियां दसूरों से नहीं मिल सकती। हां, दसूरे आपकी खशुी में सहयोग मात्र हो सकते हैं।

भगवान बुद्ध ने कहा है कि “जो तुम सोचते हो वही हो जाता है ।” यह एक मनोविज्ञानिक बात है की हमारा मन जिस चीज़ पर प्रभावित होता है तत्क्षण हम उसी में रम जाते हैं। किसी चीज़ की आकंक्षा करना ही अपने को दखु में डालने की शुरुआत है। क्यों ना हम ऐसी व्यर्थ की आकांशाओ से बचे जो मन में दरार व् पीड़ा उत्पन्न करती है।

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डॉ. रमा सहारिया, वरिष्ठ शिक्षाविद तथा स्वतंत्र पत्रकार हैं। पिछले 35 वर्षो से उनके लेख देश के तमाम हिंदी तथा अंग्रेजी समाचारपत्रों में छपते आये हैं। वह गैर-राजनीतिक विषयों पर लिखती है ।

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