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आज का संस्करण

नई दिल्ली, 9 मई 2024

एक उभरते हुए नेता का इतिहास बोध 

प्रदीप माथुर

 A person with white hair and glasses

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मुना प्रसाद जी मेरे पड़ोसी है! सरकारी सेवा से रिटायर होकर पिछले साल उन्होंने मेरी लाइन में किनारे वाला मकान खरीदा और उनके गृह प्रवेश की पूजा के उपलक्ष में सारे पड़ोस के लोगों को बुलाया. मैं ना जा सका तो शाम को प्रसाद लेकर आए. मैंने शिष्टाचार चाय के लिए पूछा तो बैठ गए. उनको सोफे पर बैठाकर मैं अंदर गया. श्रीमती जी से कहा कि नए वाले मकान में नए पड़ोसी आए हैं. जरा दो कप चाय बना दो.

पत्नी बोली : हां मुझे भी बुलवाया  था. पर मैं भी ना जा सकी. कभी शाम वाम को उन लोगों से मिलने चलेंगे. सुना है मकान का इंटीरियर बहुत अच्छा कराया है. पीडब्ल्यूडी में इंजीनियर थे. पैसा अच्छा कमाया होगा. तब ही तो बड़ी कार है और बच्चे विदेश में पढ़ रहे है.

श्रीमती जी के ज्ञान पर विस्तृत होते हुए मैंने कहा जब चाय  बन जाए तो बता देना. मैं बाहर बैठता हूं. ड्राइंग रूम में आकर में सामने वाली कोच पर बैठ गया. जमुना प्रसाद जी बोले सुना है आप पत्रकार हैं और किसी स्वयं सेती  संस्था से भी जुड़े हैं.

मैंने धीरे से कहा हा.

जमुना प्रसाद जी खिल उठे. बोले अन्तः  रिटायरमेंट के बाद में भी खाली समय मैं समाज सेवा करना चाहता हूं. आपसे मार्गदर्शन मिलता रहेगा.

आप क्या करना चाहते हैं, मैंने धीरे से कहा और चुपचाप सोचने लगा कि एक कमाऊ और भ्रष्ट सरकारी अफसर कैसी समाज सेवा कर सकता है.

जमुना प्रसाद जी ने समाज सेवा के बारे  में अपने दर्शन से मुझे अवगत कराया. उनकी दृष्टि में समाज सेवा उनके आवास के आसपास की सड़कों पर सफाई, कॉलोनी के पार्क में घास और पौधों का रखाव और आसपास की सड़क पर झाड़ू लगाने की व्यवस्था थी.इसके साथ साथ कॉलोनियों में कार पार्किंग की व्यवस्था दुरुस्त कराना भी बहुत जरूरी था. मैं उनके विचार सुनता रहा श्रोता कि उनके समाज सेवा के दर्शन शास्त्र मैं गरीब भूखे रहेंगे असहाय लोगों का कोई स्थान नहीं है. ना किसी कुमार और बेसहारा उड़द नारी पुरुष के बारे में कोई भी विचार दीया.

हां आप ठीक कह रहे हैं यह बहुत अच्छी बात है कि आप इस तरह सोचते हैं मैंने कहा.

वह उत्साहित हुए.बोले देखिए समाज ने हमें इतना कुछ दिया है हमारा फर्ज है कि समाज के लिए कुछ करें वह बोले.

बल्कि ठीक मैंने कहा और उठने का उपकरण करते हुए कहा जाने के लिए तैयार होने की बात कहते हुए क्षमा मांगी.

जमुना प्रसाद जी शायद और कुछ चाहते थे. चलिए फिर जब फुर्सत से हम लोग बैठ कर बात करेंगे. उन्होंने कहा और नमस्कार करके चले गए.

लगभग 1 महीने बाद जमुना जी फिर प्रकट हुए. बड़े उत्साहित लग रहे थे. बोले मैंने सोचा कि समाज की सेवा करनी है तो चुनाव लड़कर जनप्रतिनिधि बनना आवश्यक है. अगले महीने स्थानीय निकाय के चुनाव है. सोचता हूं चुनाव लड़ लू. क्या राय है आपकी.

मैंने उनके चेहरे को देखा जिस पर लालच और महत्वाकांक्षा के भाव साफ दिखाई दे रहे थे. फिर कहां आप बिल्कुल ठीक सोच रहे हैं.

जमुना दास जी खिल-खिलाकर हंस पड़े. बोले: आप वरिष्ठ पत्रकार हैं. राजनीति के क्षेत्र में तमाम छोटे-बड़े लोगो को जानते हैं.

बिल्कुल मैंने कहा फिर उस दलित लड़की के बारे में सोचने लगा जिसको पिछले दिनों बड़ी जाति के कुछ लड़कों ने जिंदा जला दिया था.

जमुना प्रसाद जी बताते रहे कि हमारे वार्ड में कितने घर हैं और किस-किस में कितने कितने लोग हैं और चुनाव जीतने के लिए क्या कुछ करना होगा.

“क्या चुनाव लड़ने में कुछ खर्चा भी आएगा”, मैंने मासूमियत से पूछा.

“हां 20-25 लाख तो लग ही जाएंगे. पर कोई बात नहीं अगर जीत गए तो उससे ज्यादा वापस आ जाएगा.” वह बोलकर बेशर्मी से मुस्कुराए.

मैं सोचता रहा कि जनप्रतिनिधि बनकर अच्छी कमाई करना ही शायद समाज सेवा के लिए जरूरी होता हो.

बाद में सुना कि जमुना प्रसाद जी चुनाव के मैदान में उतर गए हैं और प्रचार में पैसा ही पानी की तरह बहा रहे हैं. फिर एक दिन सुबह वह मेरे घर आए. मैं चाय की चुस्कियां लेकर अखबार पढ़ रहा था. मैंने कहा बैठिये और श्रीमती जी को आवाज देकर कहा कि एक प्याला चाय और लाओ जमुना प्रसाद जी आए हैं.

चुनाव प्रचार कैसा चल रहा है, मैंने पूछा.

और तो सब ठीक है पर लोग कहते हैं कि  मेरे भाषण जरा कमजोर रहते हैं. इसी बारे में आपकी मदद मांगने आया हूं, वह बोले| मैंने कल रात में एक धुआंधार भाषण देने का रियाज किया| उसे रिकॉर्ड करके आपके पास लाया हूं. कृपया बताएं कि यह कैसा है. उन्होंने कहा और अपना मोबाइल फोन मेरी और बढ़ा दिया.

मैंने 10 मिनट तक उनके भाषण को सुना जो राष्ट्रवाद की भावना से औत प्रोत था. फिर सोचने लगा कि इस पर क्या कमेंट करु। 

कैसा लगा उन्होंने उत्सुकता से पूछा.

और तो सब ठीक है पर आपने यह क्यों कहा कि बाबर की संतानों वापस जाओ, मैंने पूछा.

देश-विदेशों से  मुस्लिम आक्रांता मुगल सम्राट बाबर के साथ ही तो आए थे. अगर उनके वंशज हमारे धर्म और संस्कृति से नहीं जुड़ते हैं तो उन्हें मध्य एशिया वापस जाना चाहिए, जमुना प्रसाद जी बोले.

मगर मुसलमान तो बाबर से बहुत पहले भारत में आ गए थे. पहला मुस्लिम सुल्तान तो वर्ष 1526 से 300 साल पहले दिल्ली की गद्दी पर बैठा था.

ऐसा लगा कि जमुना प्रसाद जी को कोई बहुत बड़ा झटका लगा हो. आश्चर्ये मिश्रित आवाज़  में बोले, “सचमुच”

इसे आश्चर्य की क्या बात है, मैंने कहा.

उन्हें मेरी बात पर अभी भी यकीन नहीं हो रहा था. बोले मुसलमान भारत में बाबर से पहले आए हुए थे इस बात को कैसे कंफर्म किया जाए.

मैंने मन ही मन माथा ठोक लिया. सोचा कि किस मूर्ख के साथ समय नष्ट हो रहा है|. “आप कंफर्म करना चाहते हैं तो स्कूल की किसी बच्चे  की इतिहास की किताब देख ले.”, मैने कहा

वह अपने अज्ञान पर कुछ लज्जित लगे. बोले तो यह बात सबको पता है|

“और क्या”, मैंने कहा और उनका मोबाइल उनको वापस कर दिया

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