image

आज का संस्करण

नई दिल्ली, 3 जनवरी 2024

अनूप श्रीवास्तव

A person with glasses and a blue shirt

Description automatically generated

 नया साल हमें तोहफे में नहीं, बख्शिश में मिला है। जो तोहफे हमें मुगल शासक नहीं दे सके ,,हमारे गौरांग प्रभु बख्शीश में दे गये! हम जैसे स्वतंत्रता दिवस मनाकर अपनी नयी पीढ़ी को जताते हैं कि कभी हम गुलाम थे, ठीक उसी तरह से नया साल मनाकर  दी गयी बख्शिश को भी याद कर लेते हैं और इस तरह से नया साल हमारे तीज-त्योहारों पर भी भारी पड़ जाता है ।

 

नये साल में यह कहना मुश्किल है कि वह हमें किस घाट उतारेगा ! हो सकता है कि जो घाट घाट का पानी पिये हुए हैं, वे न घर के रहें न घाट के और जो घाट पर खड़े हैं, नये साल में छलांग लगाते नजर आयें ! नये साल ही तो चुनाव है। किसी को पदस्थ करेगा तो किसी को अपदस्थ करेगा। वैसे जनता तो हमेशा अपदस्थ रहती है और आगे भी कोई बदलाव हो इसकी उम्मीद नजर नहीं आती।

 

जिस प्रकार आत्मा पुराने शरीर का त्याग कर नये शरीर में लांच हो जाती है, ठीक उसी प्रकार पुराना साल आउट डेटेड होकर 'नया साल' धारण कर लेता है। नया साल हर साल जन्म लेता है। विश्व में मनुष्यों, पशुओं सहित सभी जीव धारियों की प्रजातियों की आबादी में सबसे बड़ी आबादी नया साल मनाने वालों की है।

 

हर नया साल वीर बहूटी की तरह सज-धज कर आता है। हम जाते हुए पुराने साल को ठीक से 'टाटा' भी नहीं कर पाते हैं कि नया साल नये आगंतुक की तरह जबरदस्ती गले पड़ जाता है। यही क्या कम है कि पुराने साल की खानगी और नये साल की आमद साल दर साल आधी रात दर्ज करने की परंपरा हम पूरी रात अंग्रेजियत के साथ मना लेते हैं और अपने 'फागुन' को याद तक नहल करते। दिन दहाड़े तो हम अप्रैल फूल मनाते हैं। जनवरी गुजरने लगेगी और फरवरी हमें अप्रैल फूल बना देगी। बीच में मार्च की जरा सी टार्च है। साहबों के घर डालियों के ढेर लग जाते थे। हम भी कैलेंडर को दीवालों,ताखों पर सजा कर मना लेते थे।अब न ताखे रहे,न वो दरो दीवार ।

 

नये साल के आते ही कभी हम डायरियों की जुगाड़ में लग जाते थे। दरअसल कैलेंडर और डायरी ही हमें नये साल के लिए मुस्तैद करते हैं। अगर कैलेंडर, डायरी न हों, तो हमें नये साल का पता ही न चले। उसे ही देखकर हम जुड़ा जाते हैं। आम आदमी के लिए यही तो नया साल है। वरना नया क्या है, हर साल तो वही बवाल है।जिंदगी  उसी की है, जिसके पास थोड़ा माल है। उसकी हम क्या बता पाएंगे जो मालामाल है। उसी की गलती हर जगह दाल है। हमारे लिए दाल तो महंगाई की याद भर है। नये साल में हम संकल्प लेते हैं।

 अधिकांशसरकारअधिकारियों-

कर्मचारियों की वेतन बढ़ोत्तरी भी नये साल में हो जाती है। इंक्रीमेन्ट लग जाता हैखरगोश की गति से चल रहे तमाम विकास कार्यों को कछुए की गति में करने के संकल्प लिये जाते हैं क्योंकि इन्हें पता है कि अंततः जीत कछुए की ही होती है।

डॉक्टर नये-नये नथसग होमों में नये पैकेज के साथ गरीबों की सेवा करने का संकल्प लेते हैंअब गरीब अपनी टेंट मजबूत न हो पाने के चलते नर्सिंग होम न जा पायें, तो यह उनकी जिम्मेदारी  । सरकार जाने, गरीब जाने या फिर उनकी तकदीर जाने। इंजीनियर नये-नये ओवर ब्रिजों की संस्तुति की खबर अखबारों में ढूँढ़ते हैं और सम्बन्धों के नये-नये 'ब्रिज' राजनीतिक गलियारों में बनाने के लिए कृत संकल्प होते हैं। व्यापारी पिछली दिवाली से पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाये जाने की कामना शुरू कर देते हैं ताकि महंगाई के झूले के साथ उनका मुनाफा नये साल में और कुलांचे भरे ।सत्ता पक्ष के नेताओं के लिए नया साल निगेटिव शेड्स लेकर आता है।पाँच साल के लिए चुने गये नेताओं को नया साल आते ही खलता है कि उनके पाँच सालों की शाही जिन्दगी के कार्यकाल से एक साल और कम हुआ। इसलिए वे भी नयी-नयी विकास योजनाओं को जल्दी-जल्दी धन आवंटित करवाने में लग जाते हैं। धन आवंटन और मन आवंटन दो अलगअलग चीजें हैं क्योंकि लोकतंत्र में नोट और वोट दोनों ही जरूरी हैं। इसलिए नया साल मनाना हमारे लिए जरूरी है और मजबूरी भी। नये साल में 'मुर्गों' या 'बकरों को मुबारकवाद नहीं दी जाती जबकि 'मुर्गे-बकरे' ही नये साल को नया साल बनाते हैं। आपका नया साल मुर्गों-बकरों का भी उद्धार कर जाता है। चलिए अब जो है, सो है। हम तो यही कहेंगे कि उनके बारे में भी जरा सोचिये । 'अट्टहास' की ओर से आपको और आपके मुर्गे-बकरों को भी हैप्पी न्यू ईयर ! नया साल तरल और सरल हो। आप पिछले साल की तरह ही हमारे व्यंग्य वाण झेलते रहिये। हमें अपना व्यंग्य भेजते रहिये और हमारा 'अट्टहास' भी हर महीने लेते रहिये

---------------

  • Share: