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आज का संस्करण

नई दिल्ली, 25 दिसंबर 2023

दलित और महिला के लिए डॉ. अम्बेडकर का संघर्ष 

प्रशांत गौतम

A person in a suit

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25 दिसंबर को पूरा विश्व क्रिसमस मानता है लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि 25 दिसंबर भारत के दलित और महिला वर्ग के लिए बहुत बड़ा ऐतिहासिक दिन है|

इस दिन 96 साल पहले वर्ष 1927 के आधुनिक भारत माता के एक यशव्ति पुत्र और भारत के संविधान के निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर ने हजारों लोगों के साथ महाराष्ट्र के प्रसिद्ध महाड सत्याग्रह में डॉ भीमराव अंबेडकर ने मनुस्मृति को जलाया था जिसमे दलितों  और महिलाओ के साथ पशुओ से भी बुरा व्यहवार करने का प्रावधान किया था |

सार्वजनिक रूप से मनुस्मृति को जलाना न केवल उच्च वर्ग के ब्राह्मणवाद के प्रति आक्रोश का प्रतीक था बल्कि यह दलित और महिलाओं के आत्म सम्मान को उजागर करने तथा मुक्ति का मार्ग दिखने का एक जरिया था मानवीय शोषण का धार्मिक आधार प्रदान करने वाले ग्रंथ का रूप से प्रतीकात्मक अंतिम संस्कार की चिता में जला कर किया गया था इसने दलितों के प्रति अपमान उच्च जाति के आधिपत्य और क्रूरता अंत का संकेत भी दिया था|

पाठ को जलाने के लिए ‘वेदी’ चिता तैयार करने में लगभग छह लोगों की मेहनत लगी थी इसके किनारो पर अस्पृश्यता को नष्ट करो ब्राह्मणवाद को दफन करो मनुस्मृति ची दहन भूमि (मनुस्मृति के लिए शमशान) जैसे नारे वाले बैनर लगाए गए थे|

मनुस्मृति दहन की इस प्रक्रिया को रोकने के लिए जातिवाद हिंदुओं का भारी दबाव था|

डॉ भीमराव अंबेडकर मुंबई से विरोधी स्थल तक सड़क मार्ग से नहीं बल्कि नाव से पहुंचे थे क्योंकि उन्हें डर था की उन्हें रस्ते में ही न रोक लिया जाये मनुस्मृति को जलाने से पहले डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने भाषण दिया की उन  प्राचीन हिंदू धर्म ग्रंथो को नष्ट करना आवश्यक है जो असमानता और अन्याय को धर्म संगत मानते है|

मनुस्मृति दहन से भारत के हिंदू धर्म के ठेकेदारों को भारी सदमा पहुंचा पर कुछ चुपचाप भारी बदलाव की आहट को सुन रहे थे| भारत में जातिवादी धार्मिक रूढ़िवादियों पर जो आक्रमण डॉक्टर अंबेडकर ने किया था उससे भारत के इतिहास में 25 दिसंबर 1927 का दिन हमेशा याद रखा जाएगा| उस दिन डॉ अंबेडकर ने मनुस्मृति को आग के हवाले कर हिंदुओं के सामाजिक ढांचे में बदलाव की मांग की थी महाराष्ट के इस सम्मेलन तथा इसमें मनुस्मृति जैसे ग्रंथ को जलने के दूरगामी परिणाम हुए| भारत के इतिहास में दलितों में सामाजिक जागृति के लिहाज से यह एक ऐतिहासिक दिन था|

विशेष बात यह थी कि इस सत्याग्रह में विढोबा महादेव वाडवल जैसे मराठा वृद्ध सामाजिक कार्यकर्ता भी संक्रियता से शामिल हुए लेकिन ब्राह्मणवादी अखबारों ने इस घटना की निंदा में खूब लिखा| शंकरचार्य भी तिलमिला गए| यही नहीं कुछ दलित नेता भी महाड सत्याग्रह व मनुस्मृति के खिलाफ बोले|

डॉ अंबेडकर के भाषण के बाद मुंबई के गैर ब्राह्मण दल व सत्यशोधक के नेता जेधे व जवलकर ने  अपने भाषण में कहा की डॉ अंबेडकर के बराबर ज्ञानी व परायण कर्तव्य नेता दलितों में कोई नहीं है| वह दलितों के कल्याण के लिए जी जान से प्रयास कर रहे हैं| आपको उनके पीछे चलना है उन्होंने वह उपस्थित दलितों से कहा की आपका भला काल्पनिक ईश्वर नहीं बल्कि डॉ अंबेडकर ही कर सकते हैं यह आपके सेनापति हैं इसलिए यह जैसा कहे वैसा ही करना ठीक होगा सम्मेलन में मनुस्मृति जलाएं जाने के बाद डॉ अंबेडकर ने कहा, सदियों से हाशिये पर डाल दिए गए अछूत समाज की गरीबी, दरिद्रता पीड़ा व दुर्दशा पर हिंदुओं का ध्यान खींचने के लिए हमने यह महान काम किया|

मनुस्मृति के दिए गए अन्याय, असम्मानता के हिष्टकोण  और शोषण को न्याय सगत बताने वाले कुछ उदाहरण इस प्रकार है|

1. एक लड़की को हमेशा अपने पिता के संरक्षण में रहना चाहिए विवाह पश्चात पति द्वारा उनका संरक्षण होना चाहिए पति के मृत्यु के बाद उसे अपने बच्चों की दया पर निर्भर रहना चाहिए लेकिन किसी भी स्थिति में एक महिला आजाद नहीं हो सकती|

2. जब ब्राह्मण भोजन करे तब उन्हें किसी मुर्गे कुत्ते किन्नर शुद्ध या ऐसी महिला जो रजस्वला (पीरियड्स) में हो उनको देखना भी नहीं चाहिए|

3. दलित को घी खाने का कोई हक नहीं है|

4. दलित और महिलाओं को पढ़ने का कोई हक नहीं है|

5. दलित अगर हिंदू ग्रंथ के वेद सुन ले तो उसके कानों में शीशा पिघल कर डाल देने की सजा है यदि शूद्र वेद अपने मुंह से बोलता है तो उसकी जवान काट देने की सजा है|

6. एक विधवा महिला दूसरी बार विवाह नहीं कर सकती लेकिन पुरुष कर सकते हैं|

7. यदि निचली जाति का कोई पुरुष उच्च जाति की महिला के साथ यौन संबंध बनाता है तो संबंधित व्यक्तियों को मौत की सजा दी जाएगी लेकिन उच्च जाति का कोई पुरुष निचली जाति की महिला के साथ यौन संबंध बनाता है तो सिर्फ महिला को मौत की सजा दी जाएगी ब्रह्म पुरुष को कोई सजा नहीं होगी मतलब पुरुष अपने से निचली जाति के साथ संबंध बन सकता है लेकिन अपने से उच्च जाति के साथ नहीं|

8. महिलाएं सिर्फ पति की सेवा उनको खुश करने के लिए और शारीरिक संबंध बनाने के लिए है और अछूत महिला को अपने स्तन भी नहीं ढकने चाहिए|

9. महिलाओं को उनके पति के मृत्यु के बाद उनके पति की चिता के साथ ही जला देना चाहिए |

10. शूद्रों को तालाब से पानी पीने का हक नहीं है लेकिन तालाब में गाय भैंस आदि जानवरों को स्नान कराया जा सकता है|

डॉ अंबेडकर को इस कार्य के लिए काफी आलोचना का सामना करना पड़ा| कुछ लोगों ने कहा कि किसी पाठ को जलाने से क्या हासिल होगा| उन्होंने जवाब दिया की गांधी विदेशी कपड़े क्यों जलते हैं|

मनुस्मृति को सती प्रथा और बाल विवाह प्रणाली का मूल कारण मानने वाले डॉ अम्बेडकर सैदव महिलाओं की मुक्ति और दलितों के उत्थान के लिए खड़े रहे| इस कारण इस दिन को ‘स्त्री मुक्ति दिवस’ के रूप में भी याद किया जाता है|

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