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आज का संस्करण

नई दिल्ली, 1 फरवरी 2024

सलीम ख़ान

A person with a beard and glasses

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णतंत्र दिवस से चार दिन पहले 22 जनवरी को राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह ने जनता को इतना थका दिया कि 26 जनवरी के दिन जनता में कोई विशेष उत्साह ही नहीं था।

राष्ट्रपति महोदया ने अपने राष्ट्रीय सम्बोधन में आर्थिक मोर्चे पर  जनकल्याण की योजनाओं को भी आगे बढ़ाने का ज़िक्र करने के बाद कहा कि महामारी (कोरोना) के दौर में समाज के कमज़ोर वर्गों को मुफ़्त राशन उपलब्ध कराने के लिए शुरू की गई कल्याणकारी योजनाओं का दायरा सरकार ने बढ़ा दिया है। इस पहल को और बढ़ाते देते हुए सरकार ने 81 करोड़ से ज़्यादा लोगों को अगले पाँच साल तक मुफ़्त अनाज उपलब्ध करने का फ़ैसला किया है। राष्ट्रपति ने उसे इतिहास में जनकल्याण की अनोखी और सबसे बड़ी योजना क़रार दिया l

गणतंत्र दिवस की परेड में इस बार महिलाओं का ख़ूब प्रदर्शन किया गया और राष्ट्रपति ने संसद भवन में महिलाओं के आरक्षण से सम्बन्धित ऐतिहासिक विधेयक की मंज़ूरी का ज़िक्र किया, मगर महुआ मोइत्रा के साथ इसी संसद में बेमिसाल दुर्व्यवहार किया गया और अनुचित आरोप लगाकर उन्हें निकालकर घर तक ख़ाली करवाना इस ढोल का पोल खोल देता है। इन घटनाओं को देखने के बाद जब राष्ट्रपति की ज़बानी : “इस क़ानून से हमारा देश पुरुषों एवं महिलाओं के बीच समानता के सिद्धान्त पर आगे बढ़ा और यह महिलाओं को सशक्त बनाने का एक क्रान्तिकारी माध्यम साबित होगा” वाला वाक्य हास्यास्पद लगता है। बीजेपी के रमेश बिधूड़ी के गंभीर अपराध पर सिर्फ़ चेतावनी और महुआ मोइत्रा को सख़्त सज़ा क्या बराबरी है? वर्षों से दिल्ली के अंदर सरकारी मकानों पर क़ब्ज़ा ख़ाली न कराया जाना और सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करनेवाली दिलेर सदस्या का गला घोंट देना क्या नारी शक्ति की वंदना है? इस बीच देश के अंदर महिलाओं की दयनीय स्थिति को पेश करनेवाली यह एक दुखद घटना प्रधानमंत्री की कर्मभूमि उत्तरप्रदेश में सामने आई जहाँ की डबल इंजन सरकार अपने बुलडोज़र पर गर्व करती है।

उतर प्रदेश की एक महिला जज ने इच्छामृत्यु की माँग करते हुए एक ख़त सीजेआई डीवाई चन्द्रचूड़ को लिख दिया। इसपर कार्रवाई करते हुए चीफ़ जस्टिस ने सुप्रीमकोर्ट के सेक्रेटरी जनरल अतुल मधुकर कुरहेकर को इलाहाबाद हाईकोर्ट प्रशासन से इस्टेट्स रिपोर्ट तलब करने का हुक्म दिया और तमाम शिकायतों के बारे में जानकारी माँगी है। इस के साथ उन्होंने आन्तरिक शिकायत कमेटी के सामने पेश शिकायत पर कार्रवाई की स्थिति के बारे में भी पूछा। बांदा ज़िले के अंदर तैनात एक महिला जज ने दावा किया था कि उनकी पोस्टिंग के दौरान डिस्ट्रिक्ट जज और उनके क़रीबी रिश्तेदारों की ओर से उन्हें मानसिक तथा शारीरिक रूप से टार्चर किया गया, तथा डिस्ट्रिक्ट जज ने रात को उनसे मिलने के लिए दबाव डाला। सवाल यह है कि जिस समाज में एक महिला जज के साथ ऐसा दुर्व्यवहार हो वहाँ की आम महिलाएँ कितनी असुरक्षित होंगी।

महिला जज के मुताबिक़ वह बड़े उत्साह के साथ जज के इम्तिहान में शरीक होने के बाद जूडीशियल सर्विस में दाख़िल हुई थीं लेकिन उन्हें भरी अदालत में दुर्व्यवहार का शिकार बनाया गया। महोदया ने अपने ख़त में तमाम नौकरी पेशा महिलाओं को सम्बोधित करके कहा कि वे यौन शोषण के साथ जीना सीखें। क्या किसी सभ्य समाज में इसकी कल्पना की जा सकती है? वह इंतिहाई अफ़सोस के साथ लिखती हैं कि जज होने के बावजूद वह अपने लिए इंसाफ़ नहीं हासिल कर पाईं। एक महिला अपनी मेहनत से दूसरों को इंसाफ़ दिलाने की ख़ातिर एक बड़े पद पर आसीन होने के बाद भी अगर नाइंसाफ़ी का शिकार हो जाएगी तो संसद में बननेवाले क़ानूनों से क्या आशा की जाए? जज साहिबा अपनी हालत बयान करते हुए लिखती हैं, “मुझे बहुत यौन शोषण का शिकार बनाया गया है। मेरे साथ कचरे की तरह बरताव किया गया है। मैं एक अप्रिय कीड़े की तरह महसूस करती हूँ, जबकि मुझे उम्मीद थी कि मैं दूसरों को इंसाफ़ दिलाऊँगी लेकिन सारे सपने टूटकर बिखर गए।”

इस महिला जज ने इस मामले की शिकायत इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ़ जस्टिस तथा अन्य सम्बन्धित अधिकारियों से की, लेकिन किसी ने एक बार भी नहीं पूछा कि क्या हुआ? क्या यह संवेदनहीनता की चरम सीमा नहीं है? 2022 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ़ जस्टिस और प्रशासनिक जज ने इन शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं की। जुलाई 2023 में उन्होंने हाईकोर्ट की आन्तरिक शिकायत कमेटी में शिकायत दर्ज कराई लेकिन वह कोशिश भी निरर्थक रही। उनके मुताबिक़ जाँच के शुरू करने में छः माह और एक हज़ार ई-मेल्ज़ लग गए और प्रस्तावित जाँच भी मात्र एक ढोंग है। शिकायतकर्ता ने दावा किया “जाँच में गवाह डिस्ट्रिक्ट जज के अधीन हैं। कमेटी कैसे आशा कर सकती है कि गवाह अपने मालिक के ख़िलाफ़ गवाही देंगे? यह मेरी समझ से परे है।”

महिला जज का आरोप है कि उन्होंने जाँच के स्थगन के दौरान सम्बन्धित डिस्ट्रिक्ट जज के तबादले की दरख़ास्त की थी, ताकि तथ्यों की निष्पक्ष जाँच सम्भव हो सके, लेकिन उनकी दरख़ास्त को रद्द कर दिया गया। अब अगर वह जीना नहीं चाहतीं तो इसमें कौन क़ुसूरवार है? इस दुनिया में ज़िंदा रहने के लिए सिर्फ़ पाँच किलो अनाज काफ़ी नहीं है, बल्कि हर इंसान मान-सम्मान के साथ जीना चाहता है। इसकी गारंटी नहीं मिलती तो aur सब बेकार है।

राष्ट्रपति दरौपदी मुर्मू ने गणतंत्र दिवस के मौक़े पर संविधान का जश्न मनाते हुए प्रस्तावना में दर्ज “हम, भारत के लोग” के आरम्भिक शब्दों का ज़िक्र करके सबको चौंका दिया, क्योंकि फ़िल्हाल क़ौमी बयानिया (Narrative) ‘हम’ को ‘मैं’ से बदल दिया गया है राष्ट्रपति ने केन्द्र सरकार की कामयाबियों मसलन दिल्ली में जी-20 शिखर वार्ता के आयोजन को अद्वितीय उपलब्धि बताकर राष्ट्रपति भाषण में सराहा, हालाँकि वह तो एक लगे-बंधे नियम के अन्तर्गत स्वयं भारत के हिस्से में आई थी और फिर चली गई, लेकिन यह भी हक़ीक़त है कि उसके बाद भारत के न सिर्फ़ कैनेडा बल्कि अमेरिका से भी सम्बन्ध ख़राब हो गए। राष्ट्रपति ने इसरो के द्वारा चाँद और सूरज के अभियानों पर गर्व का प्रदर्शन तो कर दिया, लेकिन जनता की मौलिक समस्याओं को अनदेखा करके चाँद-सितारों की यात्रा कोई विशेष अर्थ नहीं रखती, क्योंकि अल्लामा इक़बाल ने क्या ख़ूब कहा था—

जिसने सूरज की शुआओं को गिरफ़्तार किया

ज़िंदगी की शबे-तारीक सहर कर न सका

(शब्द 1030)

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