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आज का संस्करण

नई दिल्ली, 1 अप्रैल 2024

डॉ॰ सलीम ख़ान

A person with a beard and glasses

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पनी गिरफ़्तारी से ठीक ग्यारह महीने पहले अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा में एक यादगार भाषण दिया था, जिसे आम आदमी पार्टी के यूट्यूब चैनल और उससे भी ज़्यादा अन्य चैनलों पर दस लाख से ज़्यादा लोगों ने देखा था।

दिल्ली के मुख्यमंत्री ने दरअस्ल ‘चौथी पास राजा’ शीर्षक से एक कहानी सुनाई थी। इसमें कहीं भी मोदी या केजरीवाल का नाम नहीं था, लेकिन पूरी दुनिया समझ गई कि किसका ज़िक्र हो रहा है। इस भाषण के बाद शायद केजरीवाल को गिरफ़्तार करने का फ़ैसला हो चुका था, अब केवल उस मौक़े का इंतिज़ार था जो ग्यारह महीने बाद आया और चौथी पास राजा ने अपने तीसरी फ़ेल सेनापति की सलाह पर इसे कार्यन्वित रूप दिया।

 

 

 

**********संक्षेप में**********

अरविंद केजरीवाल ने एक विवादास्पद कहानी सुनाई थी, जो राजा के घमंड और भ्रष्टाचार का प्रतिबिम्ब थी। यह कहानी उनके भाषण में शामिल थी, जो दिल्ली विधानसभा में दस लाख से ज़्यादा लोगों ने देखा था। केजरीवाल ने स्पष्ट कर दिया था कि कहानी का राजा कौन है और उसमें कोई नाम नहीं था, लेकिन सारी दुनिया समझ गई कि किसका ज़िक्र हो रहा है।

केजरीवाल के इस भाषण के बाद शायद उन्हें गिरफ़्तार करने का फ़ैसला हो चुका था, अब केवल उस मौक़े का इंतिज़ार था जो गिरफ़्तारी का अवसर पहुँचाने के लिए आया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी सफलता के लिए आत्मविश्वास कम है और वे सोच रहे हैं कि अगर वे हार गए तो लोग कहेंगे कि उनका छप्पन इंच का सीना उस वक़्त कहाँ चला गया था जब उनकी उसकी नाक के नीचे एक मुख्यमंत्री खुलेआम उनका अपमान कर रहा था।

यह विवादास्पद मिथक बहुत पुराना है, लेकिन इसमें मोदी की डिग्री का सवाल उबर गया है। इस मामले में अपनी ग़लती मानने के जवाब में, प्रधानमंत्री कार्यालय ने वेबसाइट पर नरेंद्र मोदी की डिग्री को दाल दिया था, लेकिन सार्वजनिक रूप से सूचना आयोग के आदेश को चुनौती भी दे दी थी। इस मामले का दिलचस्प पहलू यह है कि गुजरात यूनिवर्सिटी ने सीआईसी के समक्ष आपत्ति जताई, लेकिन गुजरात हाई कोर्ट ने नरेंद्र मोदी की डिग्री का विवरण माँगने पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया।

मोदी की प्रबल इच्छा है कि वह पुतिन और शी-जिनपिंग की तरह अकेले चुनाव लड़ें और किम जोंग या हसीना वाजिद की तरह सफलता का झंडा फहराएँ। ऐसे में राहुल गाँधी का एक्स-मैसेज ग़ौर करने लायक़ है क्योंकि इसमें न सिर्फ़ गिरफ़्तारी की निंदा की गई है बल्कि इसके उद्देश्य और कारण को भी बताया गया है।

उन्होंने लिखा, “एक डरा हुआ तानाशाह एक मृत लोकतंत्र बनाना चाहता है। मीडिया सहित सभी संस्थानों पर क़ब्ज़ा करना, पार्टियों को तोड़ना, कंपनियों से पैसा इकट्ठा करना, मुख्य विपक्षी दल का खाता फ़्रीज़ करना क्या कम था, अब निर्वाचित मुख्यमंत्रियों की गिरफ़्तारी भी आम बात हो गई।”


 

 

 

इसका कारण प्रधानमंत्री के अंदर चुनावी सफलता को लेकर आत्मविश्वास की कमी है। उन्हें अपनी हार नज़र आने लगी है और वे सोच रहे हैं कि अगर वे हार गए तो लोग कहेंगे कि उनका छप्पन इंच का सीना उस वक़्त कहाँ चला गया था जब उसकी नाक के नीचे एक मुख्यमंत्री खुलेआम अपमान कर रहा था? शायद जब इस सवाल ने उन्हें इतना परेशान किया तो उन्होंने मुख्यमंत्री पर हाथ रख दिया और वह रातों-रात हीरो बन गए। इस तरह साबित हो गया कि कहानी का ‘चौथी पास राजा’ कौन है?

यह विवादास्पद मिथक बहुत पुराना है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 के चुनाव से पहले अपने हलफ़नामे में लिखा था कि उन्होंने 1978 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से बीए और 1983 में गुजरात यूनिवर्सिटी से एमए की डिग्री हासिल की थी। जब अरविंद केजरीवाल ने इस बारे में स्पष्टीकरण माँगा तो गुजरात यूनिवर्सिटी ने नरेंद्र मोदी के एमए सर्टिफ़िकेट को मंज़ूरी दे दी। इसके उलट दिल्ली यूनिवर्सिटी ने बीए की डिग्री को लेकर चुप्पी साध ली। अब सवाल यह खड़ा हो गया है कि बिना बीए के एमए कैसे हो गया? मई 2016 में आम आदमी पार्टी ने यह दावा कर हलचल मचा दी थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास बीए की फ़र्ज़ी डिग्री है। ‘आप’ ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री ने न तो दिल्ली यूनिवर्सिटी से बीए की परीक्षा पास की और न ही डिग्री ली। इस गंभीर आरोप पर प्रधानमंत्री कार्यालय को साँप सूँघ गया और उसने इस मामले में चुप्पी साध ली।

अरविंद केजरीवाल के अनुरोध के जवाब में, प्रधानमंत्री कार्यालय के साथ केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने दिल्ली और गुजरात विश्वविद्यालयों को मोदी की डिग्री प्रदान करने का आदेश दिया। इसके बाद गुजरात यूनिवर्सिटी ने तुरंत प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री को अपनी वेबसाइट पर डाल दिया, लेकिन सैद्धांतिक रूप से सूचना आयोग के आदेश को चुनौती भी दे दी। दिवंगत वित्त मंत्री अरुण जेटली और अमित शाह ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में डिग्री की प्रतियाँ भी साझा कीं और दावा किया कि प्रधानमंत्री के पास दिल्ली विश्वविद्यालय से बैचलर ऑफ़ आर्ट्स की डिग्री और गुजरात विश्वविद्यालय से इंटर पॉलिटिकल साइंस में मास्टर ऑफ़ आर्ट्स की डिग्री है। अरविंद केजरीवाल ने इन दस्तावेज़ों में ‘स्पष्ट विरोधाभासों’ को उजागर किया क्योंकि ‘संपूर्ण राजनीति विज्ञान’(Entire political science) नामक कोई विषय ही पढ़ाया नहीं जाता और डिग्री में उपयोग किए जाने वाले फ़ॉन्ट का आविष्कार डिग्री पर दर्ज तारीख़ तक नहीं हुआ था। इस तरह झूठ का भांडा चौराहे पर फूट गया।

इस मामले में अपनी ग़लती मानने की बजाय गुजरात यूनिवर्सिटी ने मुख्य सूचना आयुक्त के डिग्री साझा करने के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दे दी। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलील थी कि कोई भी स्वयं अपना सर्टिफ़िकेट तो माँग सकता है, लेकिन सार्वजनिक डोमेन में रहने पर कोई तीसरा पक्ष डिग्री की माँग नहीं कर सकता। इस मामले का दिलचस्प पहलू यह है कि गुजरात यूनिवर्सिटी ने सीआईसी के समक्ष आपत्ति जताई, लेकिन गुजरात हाई कोर्ट ने नरेंद्र मोदी की डिग्री का विवरण माँगने पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया। अदालत ने यह भी माना कि प्रधानमंत्री को किसी भी सार्वजनिक हित के अभाव में अपनी शैक्षिक डिग्री प्रदर्शित करने के मामले में आरटीआई अधिनियम की धारा 8 (1) (ई) और (जे) के तहत प्रकटीकरण से छूट दी गई है।

जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता और वकील प्रशांत भूषण ने गुजरात कोर्ट के फ़ैसले पर लिखा : “अद्भुत! गुजरात उच्च न्यायालय ने ‘संपूर्ण राजनीति विज्ञान’ में मोदी की डिग्री की प्रतियाँ पीएमओ और विश्वविद्यालयों आदि को सौंपने के सीआईसी के आदेश को रद्द कर दिया। कुछ न्यायाधीश आरटीआई क़ानून की एबीसी नहीं जानते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सभी उम्मीदवारों को अपनी डिग्री का विवरण देने का निर्देश दिया था।”

“क्या यह क़ानून प्रधानमंत्री पर लागू नहीं होता?” प्रशांत भूषण ने यह भी लिखा, “अशिक्षित होना कोई अपराध नहीं है और न ही यह शर्म की बात है। लेकिन शपथपत्र में यह झूठ बोलना कि मैंने पूरी तरह से राजनीति विज्ञान में बीए और एमए किया है, निश्चित रूप से एक अपराध है। उसके बाद अपनी कथित डिग्री को देश की जनता से छुपाना शर्म की बात है।” एक सदस्यीय पीठ के जस्टिस वैष्णो ने सुनवाई के दौरान कहा था कि “अरविंद केजरीवाल आरटीआई के ज़रिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शिक्षा की डिग्री हासिल करने की ज़िद कर रहे हैं। उनकी ईमानदारी और उद्देश्य के बारे में संदेह पैदा करता है क्योंकि वे (डिग्रियाँ) पहले से ही सार्वजनिक डोमेन में हैं।”

 

अंत के क़रीब कहानी का दृश्य बदल जाता है। मुख्यमंत्री कहते हैं, “लोग राजा के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने लगे तो उसने कहा कि ‘जो भी मेरे ख़िलाफ़ बोलेगा, मैं उसे पकड़कर जेल में डाल दूँगा!’ अगर किसी ने राजा का कार्टून बनाया तो उसे भी जेल जाना पड़ा, किसी को राजा का नाम ग़लत लिया तो उसे भी जेल जाना पड़ा। एक टीवी चैनल के मालिक ने राजा के विरुद्ध लिखा तो उसे गिरफ़्तार कर जेल में डाल दिया गया। जब किसी न्यायाधीश ने राजा के विरुद्ध आदेश जारी किया तो उसे भी जेल जाना पड़ा। जजों, पत्रकारों, व्यापारियों, उद्योगपतियों में राजा ने किसी को नहीं छोड़ा और एक महान देश कहाँ पहुँच गया।” अब इस कहानी में नया मोड़ आ गया है। अरविंद केजरीवाल ने कहा, “इस देश के अंदर एक छोटा-सा राज्य था। इस राज्य के मुख्यमंत्री को अपनी जनता की बहुत चिंता थी। वह कट्टर ईमानदार, देशभक्त और शिक्षित था।”

अरविंद केजरीवाल ने इस मुख्यमंत्री की उपलब्धियाँ बताते हुए कहा, “उसने अपनी जनता को महंगाई से बचाने के लिए बिजली मुफ़्त कर दी। इसके बाद चौथे चरण का राजा पागल हो गया। उसने मुख्यमंत्री को फ़ोन कर कहा, आपकी बिजली मुफ़्त करने की हिम्मत कैसे हुई? राजा ने सभी बिजली कंपनियों पर क़ब्ज़ा कर लिया था। उसे लगा कि अगर यह मुख्यमंत्री बिजली मुफ़्त करने लगा तो मेरा बोरिया-बिस्तर गोल हो जाएगा। मेरी बिजली कंपनियाँ लूट ली जाएँगी। राजा ने मुख्यमंत्री से कहा कि सावधान, मुख्यमंत्री नहीं माना। मुख्यमंत्री ने ग़रीब बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए सरकारी स्कूलों को दुरुस्त करने का काम शुरू किया। चौथी पास राजा ने स्कूल का मरम्मत कार्य रोकने को कहा, लेकिन मुख्यमंत्री नहीं माना। उसके बाद मुख्यमंत्री ने मुफ़्त इलाज के लिए मुहल्ला क्लिनिक खोला तो राजा पूरी तरह से पागल हो गया।” अब कहानी अपने चरम पर पहुँचती है और कहा जाता है, “धीरे-धीरे लोगों को पता चल गया कि राजा कैसा है। एक दिन लोगों ने इसे उखाड़ फेंका और एक ईमानदार और देशभक्त व्यक्ति को वहाँ स्थापित कर दिया। इसके बाद देश में महंगाई ख़त्म हो गई और देश दिन दोगुना रात चौगुना विकास करने लगा।”

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा सुनाई गई कहानी प्रेरणादायक है कि यदि आपके देश में महंगाई सहित कई समस्याएँ हैं और सब कुछ ग़लत हो रहा है, तो पहले जाँचें कि आपका राजा अनपढ़ तो नहीं है। यदि देश बेरोज़गारी जैसी समस्याओं से घिरा हुआ है, तो देखें कि क्या आपके राजा का कोई मित्र तो नहीं है। यदि ऐसा है तो पहले अपने राजा को जड़ से उखाड़ फेंको, अन्यथा समस्या का कोई समाधान नहीं होगा। इस कहानी को बताने के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बहुत सोच-समझकर दिल्ली सदन का विशेष सत्र बुलाया था क्योंकि वहाँ ‘मन की बात’ कहने के लिए संवैधानिक संरक्षण प्राप्त होता है। विपक्ष शोर मचाकर भी उन्हें रोक नहीं सकता और माइक बंद नहीं किया जा सकता, क्योंकि वहाँ बैठे स्पीकर के पास झाड़ूवाला भी है। अगर यह भाषण बाहर दिया होता तो अरविंद केजरीवाल घर नहीं, जेल जाते, लेकिन देर से ही सही आख़िरकार उन्हें जेल जाना ही पड़ा।

यह एक संयोग ही है कि वर्तमान में आम आदमी पार्टी ‘इंडिया’ नामक महासंघ का हिस्सा है। अत: केजरीवाल को लगभग सभी विपक्षी नेताओं का समर्थन मिल गया और उनके पक्ष में बयानबाज़ी शुरू हो गई क्योंकि गिरफ़्तारी की तलवार तो सभी के सिरों पर लटक रही है। मोदी की प्रबल इच्छा है कि वह पुतिन और शी-जिनपिंग की तरह अकेले चुनाव लड़ें और किम जोंग या हसीना वाजिद की तरह सफलता का झंडा फहराएँ। ऐसे में राहुल गाँधी का एक्स-मैसेज ग़ौर करने लायक़ है क्योंकि इसमें न सिर्फ़ गिरफ़्तारी की निंदा की गई है बल्कि इसके उद्देश्य और कारण को भी बताया गया है। उन्होंने लिखा, “एक डरा हुआ तानाशाह एक मृत लोकतंत्र बनाना चाहता है। मीडिया सहित सभी संस्थानों पर क़ब्ज़ा करना, पार्टियों को तोड़ना, कंपनियों से पैसा इकट्ठा करना, मुख्य विपक्षी दल का खाता फ़्रीज़ करना ‘असुरी शक्ति’ के लिए कम था, अब निर्वाचित मुख्यमंत्रियों की गिरफ़्तारी भी आम बात हो गई।” इस बयान में क्या हो रहा है? और ऐसा क्यों हो रहा है? इन दोनों सवालों का जवाब तो मौजूद है, अब देखना यह है कि जनता चौथी पास राजा से कैसे निपटती है। वे उसे फिर से ताज पहनाती है या उसके सिर से ताज हटा देती है। (शब्द 1940)

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