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प्रो राम पुनियानी

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नई दिल्ली | गुरुवार  | 19 सितम्बर 2024

जुलाई 2024 में इंग्लैंड के कई शहरों में दंगे और हिंसा भड़क उठी, जिनकी मुख्य वजह झूठी खबरें और अप्रवासी विरोधी भावनाएं मानी गईं। इन घटनाओं का सबसे अधिक शिकार मुस्लिम समुदाय हुआ, जिनके मस्जिदों और घरों पर हमले किए गए। इसके बाद यूके के 'सर्वदलीय संसदीय समूह' ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने के उपाय सुझाए गए। रिपोर्ट में कहा गया कि "मुसलमान तलवार के दम पर इस्लाम फैलाते हैं" जैसी झूठी और नफरत फैलाने वाली बातों पर सख्त प्रतिबंध लगाया जाए, क्योंकि यह इस्लामोफोबिया की गहरी जड़ें बन चुकी हैं।

यह उदाहरण भारत के लिए भी एक महत्वपूर्ण सीख है, जहां इस्लाम और अन्य धर्मों को लेकर कई गलतफहमियां लोगों के मन में हैं। भारत में इस्लाम के तलवार की नोंक पर फैलने जैसी धारणाएं पूरी तरह से गलत और भ्रामक हैं।

भारत में इस्लाम के प्रसार की कहानी इससे बहुत अलग है। अरब व्यापारी केरल के मालाबार तट पर आते थे, और उनके संपर्क में आने के कारण वहां के कुछ स्थानीय लोगों ने इस्लाम अपनाया। इसका प्रमाण है कि मालाबार के क्षेत्र में चेरामन जुमा मस्जिद, जो 7वीं सदी में ही बन चुकी थी।

 

लेख एक नज़र में
इंग्लैंड में जुलाई 2024 में हुए दंगों और हिंसा के बाद, यूके के 'सर्वदलीय संसदीय समूह' ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने के उपाय सुझाए गए।
रिपोर्ट में कहा गया कि "मुसलमान तलवार के दम पर इस्लाम फैलाते हैं" जैसी झूठी और नफरत फैलाने वाली बातों पर सख्त प्रतिबंध लगाया जाए। भारत में भी इस्लाम और अन्य धर्मों को लेकर कई गलतफहमियां हैं। यहाँ इस्लाम के प्रसार की कहानी इससे बहुत अलग है।
भारत में इस्लाम तलवार की नोंक पर नहीं बल्कि न्याय और बराबरी के संदेश के साथ फैला। आज के भारत में मुसलमानों और ईसाइयों के खिलाफ कई गलत धारणाएं व्याप्त हैं। इनमें सबसे प्रमुख है कि मुस्लिम शासकों ने हिंदू मंदिरों को तोड़ा।

 

स्वामी विवेकानंद का भी कहना था कि भारत में मुसलमानों का आगमन दलित और गरीब लोगों के लिए मुक्ति का संदेश था। उन्होंने कहा, "भारत में मुसलमानों की जीत उन दबे-कुचले लोगों के लिए राहत का कारण बनी, जो जमींदारों और पंडों के अत्याचार से परेशान थे। यही कारण है कि बंगाल के किसान मुस्लिम बने क्योंकि वहां जमींदारों का प्रभुत्व बहुत अधिक था।" इस्लाम तलवार की नोंक पर नहीं बल्कि न्याय और बराबरी के संदेश के साथ फैला।

आज के भारत में मुसलमानों और ईसाइयों के खिलाफ कई गलत धारणाएं व्याप्त हैं। इनमें सबसे प्रमुख है कि मुस्लिम शासकों ने हिंदू मंदिरों को तोड़ा। इसी प्रचार का नतीजा था 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का विध्वंस। इसके बाद अब काशी और मथुरा के धार्मिक स्थलों को भी विवादों में घसीटा जा रहा है। यहां तक कि ताजमहल को भी एक शिव मंदिर बताया जा रहा है, जो पूरी तरह से निराधार है।

एक और झूठी धारणा यह है कि मुसलमान गायों की हत्या करते हैं, जिससे कई राज्यों में हिंसा हुई। 'इंडियास्पेंड' की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2010 से 2017 के बीच गौहत्या के शक में हुई हिंसा में 51% पीड़ित मुसलमान थे। इस तरह की हिंसा के मामले 2014 में भाजपा सरकार के आने के बाद अधिक बढ़े।

इस माहौल में नफरत फैलाने वाले भाषण और हिंसा आम हो गए हैं। मणिपुर जैसे कई राज्यों में स्थानीय नेता लगातार मुस्लिम विरोधी बयान देते रहते हैं। असम के मुख्यमंत्री भी अक्सर विवादित बयान देकर समाज को बांटने का काम करते हैं।

इसके अलावा, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा मुसलमानों के घरों को बुलडोज़रों से गिराने की घटनाएं भी चर्चा में रही हैं। इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के जज बी.आर. गवई ने कहा था, "सिर्फ इस वजह से किसी का घर नहीं गिराया जा सकता कि वह आरोपी है। कानून का पालन किए बिना ऐसी कार्रवाई नहीं हो सकती।"

समय आ गया है कि भारत में भी ऐसे कदम उठाए जाएं, जैसे यूके में सर्वदलीय संसदीय समूह ने किए। समाज में गलतफहमियां और नफरत फैलाने वाले तत्व बहुत खतरनाक स्तर तक पहुंच चुके हैं। यह जिम्मेदारी सरकार और समाज दोनों की है कि वे ऐसे माहौल को रोकने के लिए ठोस कदम उठाएं।

भारत में सांप्रदायिक हिंसा से बचने के लिए जरूरी है कि हम समाज में फैली इन गलतफहमियों को समय रहते समाप्त करें, ताकि भविष्य में साम्प्रदायिक हिंसा और आपसी नफरत की घटनाओं से बचा जा सके।

(लेखक IIT मुंबई में पढ़ाते थे और 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मनी अवार्ड से सम्मानित हैं।)

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