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आज का संस्करण

नई दिल्ली , 17 अप्रैल 2024

जय प्रकाश पाण्डेय

 

         व्यंग्य पितामह हरिशंकर परसाई जी जबलपुर के नेपियर टाउन में किराए से जिस मकान में जीवन भर रहे, वो मकान टूट गया है और फोटो की टूटी ईंटें गवाह हैं कि इन्ही टूटी ईंटों की दीवार के बगल में टूटी टांग लिए व्यंग्य को लोकोपकारी स्वरूप प्रदान करने में परसाई ने भागीरथ प्रयास किए थे।

 नेपियर टाउन में किराए का यह मकान इतना चर्चित था कि  बाहर से आया कोई व्यक्ति स्टेशन से उतरकर परसाई का नाम लेने भर से रिक्शेवाला यहां पहुचा देता था, दुनिया के किसी भी कोने से 'परसाई जबलपुर' लिखा लिफाफा बिना ढूंढे यहां पहुंच जाता था, और इस मकान में प्रतिष्ठित पुरस्कार/ सम्मान चलकर उनकी खटिया तक आते थे। ऐसी हस्ती जिनके व्यंग्य की परिधि आम आदमी से घूमते घूमते राष्ट्रीय सीमा लांघ अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर स्थापित हो गयी हो।



लेख एक नज़र में

व्यंग्य पितामह हरिशंकर परसाई जी ने अपने जीवन भर किराए से रहे एक मकान के छोटे से कमरे में खटिया पर बैठे हुए समाज के लिए लोकोपकारी का प्रयास किया था।

यह मकान टूट गया है, और टूटी ईंटें याद रखा करती हैं कि इन्हीं ईंटों के बगल में परसाई ने अपने नाम से एक धरती पर कब्जा नहीं किया है, न ही एक छोटी सी छत के साथ अपनी सर छुपा पाया है। परसाई जी ने अपनी कलम से समाज को बेहतर बनाने के लिए लिखे हुए अनेक व्यंग्य रचनाएं हैं। टूटी ईंटें उनकी दीवार से टिककर परसाई ने कहा था कि वह दुखी है, देखो मेरे समाज का क्या हाल हो रहा है।

एक टूटी ईंट ने कहा कि जब परसाई जी की जन्मशती चालू हुई थी, तो महापौर ने परसाई मार्ग और परसाई जी की प्रतिमा स्थापित करने की घोषणा की थी, लेकिन अब जब वो घर ही गिरा दिया गया है, तो परसाई मार्ग कहां बनेगा। टूटी ईंटें अब जब परसाई प्रेमी जबलपुर आएंगे और उनसे वो मकान दिखाएंगे, तो क्या कहेंगे?



 

 

जिनकी दिनों-दिन बढ़ती लोकप्रियता, चकित करने वाली उनकी रचनाओं की प्रासंगिकता, उनके चाहने वालों की बढ़ती संख्या को देखकर ये टूटी ईंटों को छूते हुए आंखें नम हैं, ये टूटी ईंटें विलाप करते हुए उलाहना दे रहीं हैं कि वाह रे परसाई तुम इस धरती पर अपने नाम से एक इंच जमीन पर कब्जा नहीं कर पाए,न ही थोड़ी सी ईंटें लेकर टूटा फूटा एक कमरा भी नहीं बनवा पाए। जीवन भर किराए के टूटे फ़ूटे मकान के छोटे से कमरे में पड़ी खटिया पर पड़े पड़े पूरी दुनिया को देखते रहे और अपनी कलम से समाज /मनुष्य को बेहतर बनाने के काम में लगे रहे।अनेकानेक कालजयी व्यंग्य रचनाएं लिखकर व्यंग्य की बहुमंजिला इमारत तो खड़ी कर दी,पर अपना सर छुपाने के लिए अपने नाम की एक छोटी सी छत का भी इंतजाम नहीं कर पाए ।

             इस फोटो की टूटी ईंटें के वेदनामय स्वर कह रहे हैं कि इन्ही टूटी ईंटों की दीवार से टिककर परसाई ने कहा था कि मैं बहुत दुखी आदमी हूं,दुखी होकर लिखता हूं... मैं इसीलिए दुखी हूं कि देखो मेरे समाज का क्या हाल हो रहा है, मेरे देश का क्या हाल हो रहा है, मेरे लोगों का क्या हाल हो रहा है, मनुष्य का क्या हाल होता जा रहा है, ये सब दुख मेरे भीतर हैं, करुणा मेरे भीतर है.... मैं बहुत संवेदनशील आदमी हूं,इस कारण से करुणा की अन्तर्धारा मेरे व्यंग्य के भीतर रहती है।इस प्रकार जैसे मैं विकट ट्रेजेडी को व्यंग्य और विनोद के द्वारा उड़ा देता हूं,उसी प्रकार उस करुणा के कारणों को भी मैं व्यंग्य की चोट से मारता हूं या उन पर विनोद करता हूं।

             इसी दौरान एक टूटी ईंट उछल कर मेरे पैरों के पास गिर गई, मैंने बड़े आदर से उसे उठाया,वो रोते हुए कहने लगी - अभी अगस्त में जब परसाई जी की जन्मशती चालू हुई थी तो महापौर ने परसाई मार्ग और परसाई जी की प्रतिमा स्थापित करने की घोषणा की थी,शहर के सारे अखबारों और मीडिया कवरेज था, अब जब महापौर ने दल बदल कर लिया और जब वो घर ही गिरा दिया गया तो अब परसाई मार्ग कहां बनेगा,इस जगह पर तो मल्टी स्टोरी काम्प्लेक्स बनने की तैयारी चल रही है, जीवन भर परसाई के साथ रहने वालीं हम ईंटों का भरोसा नहीं हम कहां किस कचरे की शान बनेंगी । नम आंखों से हमने उन ईंटों को छू छू कर देखा, फिर सोचा कि अब जब परसाई प्रेमी जबलपुर आएंगे और हमसे कहेंगे कि परसाई जी का वो मकान दिखाओ जहां वे जीवन भर रहे,तब हम उन लोगों को क्या कह पाएंगे ?

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