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तीन ओलंपिक स्वर्ण पदकों के विजेता

प्रशांत गौतम

A person in a suit

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नई दिल्ली | गुरुवार | 29 अगस्त 2024

भारतीय खेल इतिहास में जब भी महान खिलाड़ियों की बात होती है, तो ध्यानचंद का नाम सबसे ऊपर आता है। उन्हें हॉकी का जादूगर कहा जाता है, और उनकी प्रतिभा ने न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में खेल के प्रति प्रेम और सम्मान बढ़ाया। ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज), उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनका असली नाम ध्यान सिंह था, लेकिन हॉकी के मैदान पर उनके अद्भुत प्रदर्शन के कारण उन्हें "ध्यानचंद" कहा जाने लगा।

ध्यानचंद का जीवन प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने अपने करियर में ऐसे अनगिनत रिकॉर्ड बनाए जो आज भी अनछुए हैं। ध्यानचंद ने अपने खेल जीवन में 3 ओलंपिक स्वर्ण पदक (1928, 1932, 1936) जीते। उस समय, भारत को 'हॉकी का राजा' कहा जाता था, और इसका मुख्य श्रेय ध्यानचंद की निपुणता को जाता है। उनके खेल कौशल ने भारत को विश्व मंच पर पहचान दिलाई और उन्होंने हॉकी को उस ऊंचाई पर पहुंचाया, जहां से इसे कभी नीचे नहीं देखा गया।

ध्यानचंद का जीवन संघर्षों और कड़ी मेहनत की कहानी है। एक साधारण परिवार से आने वाले ध्यानचंद ने अपने जीवन में कई कठिनाइयों का सामना किया। उनका परिवार आर्थिक रूप से कमजोर था, लेकिन उनके जुनून और मेहनत ने उन्हें महानता के शिखर तक पहुंचाया। बचपन में उनके पास हॉकी खेलने के लिए उचित संसाधन नहीं थे, लेकिन उन्होंने अपने जुनून को मरने नहीं दिया और साधारण साधनों से ही अभ्यास करते रहे।

 

लेख एक नज़र में
ध्यानचंद भारतीय खेल इतिहास के महान खिलाड़ियों में से एक हैं। उन्हें हॉकी का जादूगर कहा जाता है, और उनकी प्रतिभा ने न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में खेल के प्रति प्रेम और सम्मान बढ़ाया।
ध्यानचंद ने अपने करियर में 3 ओलंपिक स्वर्ण पदक जीते और भारत को विश्व मंच पर पहचान दिलाई। उनका जीवन प्रेरणा का स्रोत है, जो हमें सिखाता है कि कठिनाइयों का सामना करके भी हम अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं।
ध्यानचंद की जयंती पर हमें यह प्रण लेना चाहिए कि हम भी उनके जैसे अनुशासन, समर्पण और निष्ठा के साथ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ें। उनकी यादें हमें हमेशा प्रेरित करती रहेंगी और भारतीय हॉकी के इतिहास में उनका नाम सदा अमर रहेगा।

 

ध्यानचंद सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं थे, वे देशभक्ति की एक जीती-जागती मिसाल थे। 1936 के बर्लिन ओलंपिक में जब हिटलर ने उन्हें जर्मनी की ओर से खेलने का प्रस्ताव दिया और उन्हें उच्च पद और वेतन देने की पेशकश की, तो ध्यानचंद ने साफ इनकार कर दिया। उनके इस निर्णय ने दुनिया को यह संदेश दिया कि उनके लिए देश और देशप्रेम सबसे ऊपर है।

ध्यानचंद के व्यक्तित्व की सबसे खास बात यह थी कि वे बहुत ही विनम्र और सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। उन्होंने कभी अपने खेल कौशल का घमंड नहीं किया। उनके साथी खिलाड़ी और प्रतिद्वंद्वी भी उनके खेलभावना और आदर की प्रशंसा करते थे। वे न केवल एक महान खिलाड़ी थे, बल्कि एक महान इंसान भी थे।

आज के युवा खेल प्रेमियों के लिए ध्यानचंद एक प्रेरणा स्रोत हैं। उनकी जीवन यात्रा यह सिखाती है कि कठिनाइयों का सामना करके भी हम अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं। ध्यानचंद ने कभी हार नहीं मानी और अपने खेल के प्रति पूर्ण निष्ठा के साथ समर्पित रहे। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि सफलता उन्हीं को मिलती है जो मेहनत, अनुशासन और धैर्य से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं।

ध्यानचंद के सम्मान में भारत में 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन खेल और खिलाड़ियों के प्रति सम्मान व्यक्त करने का दिन है। इस दिन भारत सरकार खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को 'राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार', 'अर्जुन पुरस्कार' और 'द्रोणाचार्य पुरस्कार' से सम्मानित करती है। यह दिन हमें ध्यानचंद की महानता को याद दिलाता है और हमें उनके जैसे बनने की प्रेरणा देता है।

ध्यानचंद सिर्फ हॉकी के महान खिलाड़ी नहीं थे, वे सच्चे अर्थों में एक प्रेरणा थे। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि अगर आपमें जुनून और मेहनत की आग है, तो कोई भी बाधा आपके रास्ते में नहीं आ सकती। ध्यानचंद की जयंती पर हमें यह प्रण लेना चाहिए कि हम भी उनके जैसे अनुशासन, समर्पण और निष्ठा के साथ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ें। उनकी यादें हमें हमेशा प्रेरित करती रहेंगी और भारतीय हॉकी के इतिहास में उनका नाम सदा अमर रहेगा।

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