image

के. विक्रम राव

A person wearing glasses and a red shirt

Description automatically generated

नई दिल्ली | शुक्रवार | 9 अगस्त 2024

     कुछ पर्व, चन्द तिथियां ऐसी होती हैं जिनपर समय के थपड़े सिलवट या शिकन नहीं डाल पाते। अगस्त क्रान्ति का पहला दिन (नौ अगस्त 1942: भारत छोड़ो) आज भी वैसे ही तरोताजा हो जाता है, जैसा 79 वर्ष पहले था। हर बार इसका नया तेवर, अलग अन्दाज दिखता है जो कभी फिरंगियों का सामना करते समय उभरा था। सन् 42 की जुलाई की एक शाम थी दो अंग्रेज युवतियां लम्बी, सलेटी कार में ब्रिटिश सेनाध्यक्ष के निवास (तीनमूर्ति) से वायसराय हाउस (राष्ट्रपति भवन )की ओर चलीं। उनकी बातचीत का विषय थाः दिल्ली का खुश्क मौसम, बिनी बान्र्सकी फिल्म ‘थ्री ग्लर्स’ और पिछली रात का डिनर-डांस। सीटपर पड़े अखबार के बड़े अक्षरोंवाले शीर्षक को देख एक बोली, ''इन कांग्रेसियों ने बम्बई में अगर हमारे खिलाफ कुछ किया, तो इनकी कैद लम्बी होगी। पापा बता रहे थे।''

 

    वायसराय लार्ड लिनलिथगो और कमाण्डर-इन-चीफ सर आर्चिबाल्ड वेवेल की इन बेटियों की बात सुन रहा था मौन हिन्दुस्तानी ड्राइवर। उसे वायसराय साहब की पुत्री को वेवेल साहब के निवासस्थान (आज का तीनमूर्ति) से घर (आज राष्ट्रपति भवन) लाने का आदेश हुआ था।

 

 

लेख एक नज़र में
 
९ अगस्त १९४२ को भारत छोड़ो आन्दोलन की शुरुआत हुई थी। इस दिन कांग्रेस के मुम्बई अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू ने पूछा था, "दो सौ साल के विदेशी शासन के बाद आजादी मांगना क्या गुनाह है?" इसी दिन महात्मा गाँधी ने कहा था, "मैं रहूं या चला जाऊं, भारत स्वाधीन होकर रहेगा।" इसके बाद देश भर में गिरफ्तारियां हुईं और कांग्रेस के नेता जेल में डाल दिए गए। लेकिन इस आन्दोलन ने देश को आजादी की ओर अग्रसर किया।
 
इस घटना के विषय में काफी लिखा और कहा गया है। लेकिन सबसे सजीव विवरण घटनास्थल (गवालिया टैंक) के समीपस्थ एक पुरानी किताब की दुकान के वृद्ध मराठी मालिक से छह दशक पूर्व मैंने सुना था। उनकी आंखों के समक्ष पूरा चित्र उतर आया। बदली छायी थी। मौसम नम था। शामियाने में बैठे बीस हजार लोगों में खद्दरधारी तो थे ही, रंगीन व भड़कीले लिबास में महिलाएं काफी थी।
 
इस आन्दोलन ने देश को आजादी की ओर अग्रसर किया और हमें आजादी की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मोड़ दिया।

 

      राष्ट्रीय कांग्रेस के मुम्बई अधिवेशन में शरीक होते एक कांग्रेसी नेता को दिल्ली स्टेशन ले जाते समय उनके ड्राइवर ने बताया, ''साहब, इस बार आप शायद जल्दी वापस न लौटें। मेरे साथी से, जो बड़े लाटसाहब के यहां काम करता है, पता लगा कि कम से कम जापानियों की हार होने तक रिहाई की गुंजाइश नहीं है।''

 

    इतिहास ने इस घटना को ''भारत छोड़ो आन्दोलन'' बताया। विंस्टन चर्चिल ने इसे ''बगावत जो कुचल दी गयी'' कहा। क्रान्तिकारी जनवाद के पुरोहित कम्युनिस्टों की नजर में यह हिटलरी षडयन्त्र था। विभाजन के पक्षधर चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की राय में यह अविवेकी कदम था।

इस रोमांचक वाकये के विषय में इस दौर में काफी लिखा और कहा गया। लेकिन सबसे सजीव विवरण घटनास्थल (गवालिया टैंक) के समीपस्थ एक पुरानी किताब की दुकान के वृद्ध मराठी मालिक से छह दशक पूर्व (टाइम्स आफ इंडिया के रिपोर्टर के नाते) मैंने सुना था। उनकी आंखों के समक्ष पूरा चित्र उतर आया। बदली छायी थी। मौसम नम था। शामियाने में बैठे बीस हजार लोगों में खद्दरधारी तो थे ही, रंगीन व भड़कीले लिबास में महिलाएं काफी थी। विजयनगरम के महाराज कुमार किक्रेटर विज्जी और उद्योगपति जे.आर.डी. टाटा शामिल थे। पैंतीस हजार वर्ग फीट के मैदान में उपस्थित थे 350 पत्रकार जिनमें रूसी संवाद एजेन्सी तास के प्रतिनिधि और चीनी संवाददाता भी थे। मंच पर कार्यसमिति के लोगों के साथ एक गैर-सदस्य भी थाः जेल से छूटकर आये, दक्षिण के जनप्रिय नेता एस. सत्यमूर्ति। उन्होंने राजगोपालाचारी के असहयोग की क्षतिपूर्ति कर दी। कार्यवाही की शुरूआत में वन्देमातरम् हुआ, जिसे सुनकर यूरोपीय अखबारवाले भी खडे़ हो गये।

 

     प्रस्ताव पेश करते हुये जवाहरलाल नेहरू ने पूछा: ''दो सौ साल के विदेशी शासन के बाद आजादी मांगना क्या गुनाह है'' तालियों की धुन के बीच अनुमोदक सरदार वल्लभभाई झवेरभाई पटेल ने अंग्रेजों से सीधी अपील की, ''शासन मुस्लिम लीग को दो, चाहे डाकुओं को, पर हिन्दुस्तानियों को सौंपकर भारत से तो जाओ।'' अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आजाद ने कहा, ''सत्ता का हस्तान्तरण इसी वक्त हो।''

 

     महात्मा जी सौम्य थे, शायद वक्त की गम्भीरता के कारण। उनके शब्द सन्तुलित थें, ''मैं रहूं या चला जाऊं, भारत स्वाधीन होकर रहेगा।'' बिजली कौंधी, पण्डाल में गूंजा ''‘करेंगे या मरेंगे।''

 

     दूसरे दिन गोधूलि के समय ढाई सौ प्रतिनिधियों में सिर्फ 13 ने ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव का विरोध किया ; 12 कम्युनिस्ट थे और तेरहवें ने अपने कम्युनिस्ट बेटे के कहने पर ऐसा किया था। अधिवेशन के इस निर्णय से देश को दिशा मिली, जनता को कर्म का सन्देश।

 

प्रस्ताव के बाद गिरफ्तारियां

 

     बाजी अब सरकार की थी। जापान से करारी चोट खाकर, बहादुरी से पीछे भागते अंग्रेजों ने निहत्थे कांग्रेसी नेता व कार्यकर्ता पर फतेह पाने की पूरी तैयारी कर रखी थी। सूरज निकलने के पहले ही गिरफ्तारियां इस तेजी से हुई कि कुछ लोगों की गुसल आधी रह गयी, कुछ अपना चश्मा भूल गये, कई अपने कपड़े और किताबें छोड़ आये।

अल्टामाउण्ट रोड स्थित मकान के दरवाजे पर दस्तक सुनकर अधूरी नींद से चौबीस-वर्षीया इन्दिरा प्रियदर्शिनी ने किवाड़ खोले। सामने कुछ गोरों को देखकर वह समझी अमरीकी टेलिविजन कम्पनी के लोग पिता जवाहरलाल नेहरू का पूर्व-निर्धारित इण्टरव्यू लेने आये है। जब ज्ञात हुआ सादी पोशाक में यूरोपीय पुलिस वाले हैं। तो नेहरू ताली पीटते खिलखिला उठे, ''अहा, आ गये, वे लोग आ गये।''

 

     सिर में भारीपन महसूस कर दो एस्प्रीन की टिकिया चाय के साथ लेकर मौलाना आजाद पिछली शाम के अध्यक्षीय भाषण की थकान दूर कर रहे थे। घड़ी ने भोर के चार बजाए। किसी ने उनका पांव छुआ कि वे उठ गये, देखा मेजबान भूलाभाई देसाई का बेटा भूरा (वारन्ट) कागज लिये पैंताने खड़ा है। डेढ़ घण्टे बाद वे पुलिस की गाड़ी में सवार हुए।

 

     ब्रह्यमुहूर्त में महात्मा गाँधी आदतन उठ गये। महादेव देसाई ने सूचना दी कि बाहर खड़े पुलिस कमिश्नर बटलर ने पूछा है कि चलने के लिए कितना समय चाहिए। बिरला हाउस घिर गया था।

 

      गांधीजी ने नियमित ढंग से बकरी का दूध और फल के रस का जलपान किया। सबने मिलकर ‘वैष्णवजन तो तेणे कहिए’ गाया। कुमारी अमतुल सलाम ने कुरान की कुछ आयातें पढ़ी। कुमकुम लगने और हार पहनने के बाद गाँधी जी मीरा बहन और देसाई के साथ चले। पुलिस के साथ सैनिक अधिकारी भी थे।

---------------

  • Share:

Fatal error: Uncaught ErrorException: fwrite(): Write of 425 bytes failed with errno=122 Disk quota exceeded in /home2/mediamapco/public_html/system/Session/Handlers/FileHandler.php:407 Stack trace: #0 [internal function]: CodeIgniter\Debug\Exceptions->errorHandler(8, 'fwrite(): Write...', '/home2/mediamap...', 407) #1 /home2/mediamapco/public_html/system/Session/Handlers/FileHandler.php(407): fwrite(Resource id #9, '__ci_last_regen...') #2 [internal function]: CodeIgniter\Session\Handlers\FileHandler->write('95427e3e0d0ca64...', '__ci_last_regen...') #3 [internal function]: session_write_close() #4 {main} thrown in /home2/mediamapco/public_html/system/Session/Handlers/FileHandler.php on line 407