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आज का संस्करण

नई दिल्ली, 5 मार्च 2024

के. विक्रम राव

A person wearing glasses and a red shirt

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     क्या उत्थान, फिर पतन रहा भारतीय दूरसंचार का ! पिछले दिनों सरकारी फोन विभागीय कार्मिकों के साथ था। व्यथा गाथा सुनी। मुझे अपनी तरुणावस्था का दौर याद आया। काला चोगा होता था। आठ इंच लंबा-चौड़ा यह भाष्य यंत्र जिस  घर में रहता था उसकी प्रतिष्ठा मोहल्ले में ऊंची होती थी। मेरे स्मृति पटल पर सनातन फोन रिसीवर (चोगा) उभर आता है। उसके साथ लगभग दो-तीन फीट का तार जुड़ा रहता था। चोगा उठाकर लोग बात करते थे। रिसीवर का एक हिस्सा कान में तथा दूसरा हिस्सा मुँह के पास रखा जाता था। टेलीफोन की घंटी जब पूरे घर में गूंजती थी, तो खुशी की लहर दौड़ जाती थी। अगर दो चार मेहमान बैठे हुए हैं और उनके सामने टेलीफोन की घंटी बज जाए तो इसका अर्थ बहुत शुभ माना जाता था। गर्व से गृहस्वामी की आँखें चौड़ी हो जाती थीं कि देखो हमारे घर टेलीफोन की घंटी बज रही है। फिर आया मोबाइल का दौर। BSNL और MTLN बुलंदी पर रहे। मगर गिरावट आ गई जब निजी व्यापारी भी प्रतिस्पर्धा में आ गए। नतीजन आज सरकारी मोबाइल साढ़े नौ करोड़ पर गिरे। निजी तो सवा सौ करोड़ छू रहीं हैं।

     आज लैंडलाइन फोन के मात्र सवा दो सौ करोड़ ग्राहक हैं। निजी के तो कई गुना हैं। सरकारी कार्मिक लोग बेरोजगारी का सामना कर रहे हैं। उन्होंने अपनी व्यथा कथा सुनायी।

     भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) के नाम से  जानने वाली एक सार्वजनिक क्षेत्र की संचार कंपनी है। 31 मार्च 2008 को 24 प्रतिशत के बाजार पूँजी के साथ यह भारत की सबसे बड़ी संचार कंपनी थी। यह  भारत में सम्मानित सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में थी। मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियों में सबसे पहली कंपनी रही जिसने इनकमिंग कॉल को पूर्णतया फ्री किया। दूरसंचार के क्षेत्र में भारत सरकार का लोगो में विश्वास बढ़ाया।

     सरकारी फोन कंपनी से कांग्रेस सरकार की प्रतिष्ठा बढ़ी थी। तब हिमाचल के पं. सुखराम शर्मा संचार मंत्री थे। भारत में पहली मोबाइल बात इस मंत्री जी ने पश्चिम बंगाल की माकपा मुख्यमंत्री ज्योति बसु से 3 जुलाई 1995 में (कलकत्ता से नई दिल्ली) की थी। करिश्मा लगता था। फिर आया दुर्भाग्य का दौर। इस सार्वजनिक उपक्रम का घाटा करोड़ नहीं, अरबों रुपयों में होने लगा। तब संप्रग सरकार (मनमोहन सिंह) के मंत्री थे तमिलनाडु के द्रमुक के ए. राजा और मारन आदि। कुछ शीर्ष पत्रकारों ने भी बहती गंगा में हाथ धो लिया। लाइसेंस की लूट मची थी। नतीजन अब BSNL अपने पौने दो लाख कार्मिकों को वेतन तक  नहीं दे पा रही है। अचरज की बात है कि BSNL तो बंदी की कगार पर है मगर जियो, एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया जैसी प्राइवेट कंपनियां मुनाफा कमा रही हैं। कभी सबसे प्रतिष्ठित टेलिकॉम कंपनी मानी जाने वाली बीएसएनल के आज देश में 11.5 करोड़ मोबाइल यूजर हैं। देश में उसका मार्केट शेयर केवल 9.7 फीसदी है।

     एक कार्मिक ने उसे दौर का किस्सा बताया। BSNL के एक अधिकारी गुजरात गए थे। तब शाम को उनकी तबीयत गड़बड़ाई तो उन्हें डॉक्टर के पास ले जाया गया। इस पर कर्मचारी यूनियन के महासचिव बताते हैं : "डॉक्टर ने मुझसे कहा, आप पहले मेरी मदद करिए, तब मैं आपकी मदद करूंगा। मेरे पास BSNL का मोबाइल है। कॉल सुनने के लिए मुझे सड़क पर जाना पड़ता है। चिल्ला कर बात करनी पड़ती है। आप पहले मेरी समस्या का समाधान करिए।" एक्सपर्ट बताते हैं कि इस दौर में मंत्रालय से भी सहमति आने में भी वक़्त लग रहा था। टेलिकॉम सेक्टर मामलों के जानकार के मुताबिक़ स्थिति इतनी बिगड़ी कि बाज़ार में एक सोच ऐसी भी थी कि मंत्रालय में कुछ लोग कथित तौर पर चाहते थे कि बीएसएनएल का मार्केट शेयर गिरे ताकि निजी ऑपरेटरों को फ़ायदा पहुंचे।

     जब 2014 में लाल किले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिक्र किया था कि BSNL ने  "ऑपरेटिंग" मुनाफा कमाया है, तो आशा बंधी थी। मगर अब मोदी की गारंटी की प्रतीक्षा है कार्मिकों को। (शब्द 665)

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