आज का संस्करण
नई दिल्ली, 31 जनवरी 2024
अमिताभ श्रीवास्तव
आज से लगभग २२ साल पहले जब देहरादून के ओ एन जी सी सभागार में बुद्धिनाथ मिश्र ने अपनी मधुर आवाज में गाया-
'एक बार फिर जाल फेंक रे मछेरे
जाने किस मछली की फिर फंसने की चाहत हो'
तो समझ नहीं पाया ऐसा कौन प्राणी होगा जिसे जाल में फंसने की चाहत हो सकती है और वो भी बार बार।
आज २०२४ में जाकर बोधि ज्ञान प्राप्त हुआ कि जाल में फंसने की चाहत शायद जानवरों में न हो लेकिन इंसानों में जरुर होती है।
विशेषकर राजनीति प्रजाति के प्राणियों में, और इसमें महिला पुरुष जैसी कोई बाध्यता नहीं होती।
जाल कभी ईडी,कभी सीबीआई और कभी जाति का बना होता है और कभी कभी सीधे सीधे सत्ता का प्रलोभन हो सकता है।
कई बार जाल फेंकने वाला खुद जाल में फंस जाता है और यह समझ आने पर खिसिया कर खंबा नोचते हुए बाहर आ जाता है, कसम खाते हुए कि अब नहीं।
लेकिन वो नहीं कभी फाइनल नहीं होती।सेमी फाइनल भी नहीं।
ऐसे तमाशे उत्तर प्रदेश, कश्मीर, बिहार और उत्तराखंड की जनता को कई बार देखने को मिले हैं।और मिलते रहेंगे।
भारत की राजनीति की यही तो विशेषता है जिसकी वजह से हम विश्व गुरु कहलाते हैं।
विश्वास न हो तो पिछले दस सालों की पी आई बी की फाइल उठा कर देख लें।
दुनिया का कौन सा माई का लाल है जो विश्व गुरु के साथ सेल्भी खिंचवाने में गौरवान्वित नहीं होता।
एक इजरायल का प्रधानमंत्री है जिसे पिछले तीन चुनावों में बहुमत नहीं मिला और चुनाव के बाद कोई भी दल उनके साथ मिलकर सरकार नहीं बनाना चाहता।ये तो वहां के राष्ट्रपति हैं जो नेटेन्यू को जबरदस्ती प्रधानमंत्री बना देते हैं।
और एक हमारे बीमारू राज्य के नेता हैं जो एक दिन बिना सत्ता के नहीं रह पाते।
वैसे वो परिवारवाद के सख्त खिलाफ हैं इसलिए सारी रेवड़ी अकेले ही खाते हैं।
सुशासन और ईमानदारी के चाहने वालों के लिए वो रोल मॉडल हैं।
बिहार में उन्होंने शराब बन्दी कर दी है लेकिन सत्ता का नशा खुले आम करते हैं।
शायद इसीलिए ज्योतिष जानने वाले बताते हैं कि विश्व गुरु के असली उत्तराधिकारी यही होंगे।
बाकी नागपुर वाले जानें और गुजरात वाले क्योंकि फ्रैंकली, मुझे विश्व गुरु (घंटाल)बनने में कोई दिलचस्पी नहीं है।( शब्द 390)
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