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साहसी निर्णय लेने वाला एक सौम्य व्यक्ति

प्रो प्रदीप माथुर

A person with white hair and glasses

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नई दिल्ली | सोमवार | 30 दिसम्बर 2024

कुछ नेताओं को उनके कार्यकाल में सराहा जाता है, लेकिन जब वे सत्ता से बाहर हो जाते हैं, तो उनकी आलोचनाओं का दौर शुरू हो जाता है। वहीं, कुछ ऐसे भी नेता होते हैं जिन्हें सत्ता में रहते हुए आलोचना का सामना करना पड़ता है, लेकिन सत्ता से बाहर होने के बाद उनकी सराहना होती है। डॉ. मनमोहन सिंह ऐसे ही नेता थे। उनके जीवन और कार्यों का इतिहास भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उन्होंने न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था को संकट से उबारा, बल्कि कई ऐतिहासिक सुधारों को लागू किया, जिनके प्रभाव आज भी महसूस किए जा रहे हैं। आइए, हम डॉ. मनमोहन सिंह के जीवन, उनके योगदान और उनके कार्यकाल पर विस्तार से चर्चा करें।

मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर, 1932 को पंजाब के गाह गांव में हुआ था, जो आज पाकिस्तान में स्थित है। भारत के विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आकर बस गया। यह कठिन समय था, लेकिन उन्होंने जीवन के इस कठिन दौर को सहन किया और शिक्षा के प्रति अपने समर्पण को कभी कम नहीं होने दिया। उनका परिवार सरल और मेहनती था, और मनमोहन सिंह ने भी अपनी पढ़ाई में अव्‍वल बनने के लिए बहुत मेहनत की।

 

अनूठी उपलब्धि
सन १९८७ में उपरोक्त पद्म विभूषण के अतिरिक्त भारत के सार्वजनिक जीवन में डॉ॰ सिंह को अनेकों पुरस्कार व सम्मान मिल चुके हैं जिनमें प्रमुख हैं: -
•       २००२ - सर्वश्रेष्ठ सांसद
•       १९९५ में इण्डियन साइंस कांग्रेस का जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार,
•       १९९३ और १९९४ का एशिया मनी अवार्ड फॉर फाइनेन्स मिनिस्टर ऑफ द ईयर,
•       १९९४ का यूरो मनी अवार्ड फॉर द फाइनेन्स मिनिस्टर आफ़ द ईयर,
•       १९५६ में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय का एडम स्मिथ पुरस्कार
डॉ॰ सिंह ने कई राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। अपने राजनैतिक जीवन में वे १९९१ से राज्य सभा के सांसद तो रहे ही, १९९८ तथा २००४ की संसद में विपक्ष के नेता भी रह चुके हैं।

मनमोहन सिंह ने अपनी शुरुआती शिक्षा पंजाब विश्वविद्यालय से प्राप्त की, और फिर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (UK) से अर्थशास्त्र में पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद, उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से डी.फिल. (Doctor of Philosophy) की डिग्री भी हासिल की। उनके शैक्षिक सफर के दौरान, उन्होंने उन समय के कुछ प्रमुख अर्थशास्त्रियों से शिक्षा ली, जो बाद में उनकी नीतियों पर प्रभाव डालने वाले थे।

1991 में, जब भारत के प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव थे, उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था के सुधार के लिए डॉ. मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री नियुक्त किया। यह एक ऐतिहासिक निर्णय था, क्योंकि डॉ. सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा दी और उसे अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप ढाला। 1991 में भारत विदेशी मुद्रा संकट से जूझ रहा था, और इसके परिणामस्वरूप डॉ. सिंह को भारतीय मुद्रा के अवमूल्यन (devaluation) के कठिन कदम को उठाना पड़ा।

डॉ. सिंह ने आयात-निर्यात नीति को लचीला बनाया, लाइसेंस राज को समाप्त किया और निजी क्षेत्र को अधिक स्वायत्तता दी। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को खुला और प्रतिस्पर्धात्मक बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। इन सुधारों का उद्देश्य था कि भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक बाजार के साथ जोड़कर इसे मजबूती प्रदान की जाए। उन्होंने सरकारी कंपनियों में विनिवेश (disinvestment) और निजीकरण के कदम उठाए, जिनसे भारतीय अर्थव्यवस्था में नई जान आई। हालांकि, इन सुधारों के दौरान उन्हें कई आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा, खासकर सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण को लेकर, लेकिन बाद में इन कदमों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई।

डॉ. सिंह का मानना था कि भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को स्वतंत्र रूप से चलाने का अधिकार होना चाहिए। उन्होंने भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में सुधार किए और बैंकों को अधिक स्थिर बनाने के लिए कदम उठाए। इसके साथ ही, उन्होंने विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए नीतियां बनाई। उनके इन सुधारों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी और भारत को वैश्विक आर्थिक मंच पर एक मजबूत स्थान दिलाया।

2004 में, डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया गया। उनका प्रधानमंत्री बनने का मार्ग आसान नहीं था, क्योंकि उनकी छवि एक गंभीर और तकनीकी अर्थशास्त्री की थी, जो राजनीति से दूर रहते थे। हालांकि, उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया और कई अहम योजनाओं की शुरुआत की।

उनकी सरकार के दौरान, उन्होंने कई महत्वपूर्ण योजनाओं को लागू किया, जिनमें "राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना" (MGNREGA), "खाद्य सुरक्षा कानून", और "शिक्षा के अधिकार कानून" शामिल हैं। इन योजनाओं ने भारत के गरीबों और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए नई उम्मीदें बनाई। MGNREGA के तहत, सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को रोजगार देने की व्यवस्था की, जिससे लाखों लोगों को रोजगार मिला और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली।

इसके अलावा, उन्होंने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए सुधार किए। इससे गरीब और जरूरतमंद लोगों को सस्ती दरों पर अनाज और अन्य आवश्यक वस्तुएं उपलब्ध हो सकीं। उन्होंने खाद्य सुरक्षा कानून के माध्यम से देश के नागरिकों को भोजन का अधिकार सुनिश्चित किया, जो एक ऐतिहासिक कदम था।

डॉ. सिंह के कार्यकाल के दौरान उन्हें कई आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। उनके आलोचकों का कहना था कि वे एक कमजोर प्रधानमंत्री थे और सोनिया गांधी के प्रभाव में रहते थे। इसके अलावा, 2008 में भारत में आए आर्थिक संकट के बाद उनकी सरकार को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। उनके खिलाफ दूरसंचार स्पेक्ट्रम आवंटन और कोयला खनन में अनियमितताओं के आरोप लगे। इसके अलावा, हर्षद मेहता के शेयर बाजार घोटाले में भी उनका नाम लिया गया।

हालांकि, डॉ. सिंह ने कभी भी इन आलोचनाओं को व्यक्तिगत रूप से नहीं लिया। उन्होंने हमेशा कहा कि "इतिहास मेरे बारे में वह निर्णय करेगा, जो समकालीन मीडिया और विपक्षी दलों के विचार से परे होगा।" उनकी सरकार ने मंदी के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था को संभालने का काम किया। उनकी बैंकिंग नीति और मजबूत आर्थिक बुनियादी ढांचे के कारण भारत को कम से कम नुकसान हुआ और वह वैश्विक मंदी के प्रभाव से बच सका।

जीवन के महत्वपूर्ण पड़ाव
•       १९५७ से १९६५ - चंडीगढ़ स्थित पंजाब विश्वविद्यालय में अध्यापक
•       १९६९-१९७१ - दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रोफ़ेसर
•       १९७६ - दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में मानद प्रोफ़ेसर
•       १९८२ से १९८५ - भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर
•       १९८५ से १९८७ - योजना आयोग के उपाध्यक्ष
•       १९९० से १९९१ - भारतीय प्रधानमन्त्री के आर्थिक सलाहकार
•       १९९१ - नरसिंहराव के नेतृत्व वाली काँग्रेस सरकार में वित्त मन्त्री
•       १९९१ - असम से राज्यसभा के सदस्य
•       १९९५ - दूसरी बार राज्यसभा सदस्य
•       १९९६ - दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में मानद प्रोफ़ेसर
•       २००१ - तीसरी बार राज्य सभा सदस्य और सदन में विपक्ष के नेता
•       २००४ - भारत के प्रधानमन्त्री

डॉ. सिंह की सबसे बड़ी विशेषता उनकी विनम्रता और ईमानदारी थी। उन्होंने कभी भी अपने पद का गलत उपयोग नहीं किया और न ही अपने परिवार या व्यक्तिगत लाभ के लिए सरकारी संसाधनों का उपयोग किया। उनकी ईमानदारी और निष्कलंक चरित्र ने उन्हें पूरे देश में सम्मान दिलाया। वे हमेशा अपनी नीतियों और फैसलों के बारे में खुले तौर पर बात करते थे, और आलोचनाओं को सकारात्मक रूप में लेते थे। उनकी सरकार के दौरान, उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि हर योजना और नीति जनहित में हो और किसी भी तरह के निजी हितों से परे हो।

उनकी विनम्रता ने उन्हें राजनीति के विभाजन से ऊपर उठने की क्षमता दी। उन्होंने हमेशा सभी पक्षों के साथ संवाद की कोशिश की और राजनीतिक मतभेदों के बावजूद सामूहिक हित में काम करने का प्रयास किया। उनका नेतृत्व इस बात का उदाहरण था कि कैसे एक नेता अपनी ईमानदारी, दृष्टिकोण और समर्पण से राजनीति में अंतर ला सकता है।

डॉ. मनमोहन सिंह का योगदान भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था में कभी नहीं भुलाया जा सकता। उनके द्वारा किए गए सुधारों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाया। उनके प्रधानमंत्री बनने से पहले, भारत की अर्थव्यवस्था काफी संकटग्रस्त थी, लेकिन उन्होंने उसे स्थिर किया और उसे वैश्विक आर्थिक मंच पर एक मजबूत स्थान दिलाया।

उनकी सरकार ने समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की। खासकर मुस्लिम समुदाय की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर ध्यान देने के लिए उन्होंने सच्चर समिति की स्थापना की, जो भारतीय मुस्लिम समुदाय के मुद्दों पर एक ऐतिहासिक रिपोर्ट लेकर आई। इस रिपोर्ट ने मुस्लिम समुदाय की गरीबी, बेरोजगारी और शिक्षा में कमी को उजागर किया और इसके लिए सरकारी नीतियों में सुधार की आवश्यकता बताई।

डॉ. सिंह के नेतृत्व में, भारत ने कई ऐतिहासिक कदम उठाए। उनके नेतृत्व की विशेषता धर्मनिरपेक्षता और समावेशी विकास के प्रति उनकी प्रतिबद्धता थी। उनके कार्यकाल में, भारतीय समाज में कई बदलाव हुए, जिनका सकारात्मक प्रभाव आज भी देखा जा सकता है। उन्होंने एक ऐसे भारत की कल्पना की, जिसमें हर नागरिक को समान अवसर मिलें और किसी भी व्यक्ति को उसके धर्म, जाति या क्षेत्र के आधार पर भेदभाव का सामना न करना पड़े।

डॉ. मनमोहन सिंह का जीवन और कार्य भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था के इतिहास में एक अमूल्य धरोहर बन चुके हैं। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को न केवल वैश्विक मानकों के अनुरूप ढाला, बल्कि समाज के हर वर्ग को लाभ पहुंचाने वाली योजनाओं को लागू किया। उनका व्यक्तित्व एक नेता की तुलना में अधिक एक इंसान के रूप में उभरा, जो न केवल ईमानदार था, बल्कि अपने देश के प्रति समर्पित भी था।

आज, जब हम भारत को एक मजबूत आर्थिक शक्ति के रूप में देखते हैं, तो इसके पीछे डॉ. सिंह की दूरदर्शिता और उनकी नीतियों का बहुत बड़ा योगदान है। उनका नेतृत्व, उनकी ईमानदारी और उनके द्वारा किए गए सुधार आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे।

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