दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने अपने इस्तीफे की घोषणा करके राजनीति में एक नई लड़ाई की शुरुआत कर दी है। जेल में बिताए वक्त ने उनके अंदाज को नहीं बदला, और शायद यही बात उनके विरोधियों, खासकर भारतीय जनता पार्टी के लिए अप्रत्याशित साबित हुई। अब दिल्ली में चुनावी मुकाबला और भी गर्म हो गया है, जहां केजरीवाल की नई रणनीति और भाजपा की तैयारी के बीच कड़ा संघर्ष देखने को मिल सकता है। इस इस्तीफे ने दिल्ली की राजनीति को नई दिशा दे दी है।
पहले भी जब केजरीवाल ने इस्तीफा दिया था, तो उनकी पार्टी ने विधानसभा में बड़ी जीत हासिल की थी। इस बार क्या होगा, कहना मुश्किल है, लेकिन मुकाबला तेज़ हो गया है।
कोर्ट को भी सोचना पढ़ेगा कि उनकी पाबंदियां जनता के द्वारा चुनी हुई किसी मुख्यमंत्री पर लगाया जा सकता है क्या?. कोई मुख्यमंत्री या उनकी सरकार पुतले की तरह बुत बने तो नहीं रह सकती है.
भाजपा दो बार दिल्ली विधान सभा में शिकस्त के बाद लगातार केजरीवाल के दिल्ली सल्तनत को तरह तरह से नेस्तनाबूद करती रही. पर दिल्ली नगर निगम चुनाव भी आम आदमी पार्टी जीत गई.
आखिर में तो दिल्ली हुकुमरान के ज्यादातर हक नायब गवर्नर को देकर आम आदमी पार्टी का जीना मुश्किल कर दिया. ई डी और सीबीआई ने तथाकथित शराब घोटाले में आप के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, संजय सिंह से लेकर मुख्यमंत्री केजरीवाल को जेल की सैर करवा दी. अभी भी दो नेता जेल में है और भाजपा की राजनितिक रणनीति को तीखा कर रहें है.
नुक्सान आम आदमी पार्टी को हुआ या भाजपा का पता नहीं. भाजपा को केजरीवाल को परेशां करने में ख़ुशी मिली. और दिल्ली के शहरी सबसे ज्यादा भुगतते रहे. न ही मरकजी सरकार ने दिल्ली की खैर खिदमत की न ही आम आदमी पार्टी को करने दिया.
2015 के विधान सभा चुनाव के नतीजे आने के बाद आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने गाजियाबाद में संघ की एक सभा में बीजेपी के नेताओं द्वारा केजरीवाल के नाम का रोज जाप करने की आलोचना की थी. उन्होंने कहा था “एक नाचीज़ को दैत्य बना दिया”.
अब भाजपा खुश है कि हिंदुस्तान की तारीख में वे दो मुख्यमंत्री, केजरीवाल और झारखण्ड के हेमन सोरेन को जेल भेजने में कामयाब रहे. पिछले लगभग डेढ़ साल से भाजपा का मानना है की उन्होंने अभियान कर आम आदमी पार्टी को जनता की निगाह में गिरा दिया.
आम आदमी पार्टी को अपने कार्यकर्ताओं पर भरोसा है. उनकी चुनाव प्रचार की शुरुआत तो कल ही हो गयी. आप आज राष्ट्रीय दल है, पंजाब में उनकी सरकार है और गुजरात में भी 5 MLA है. हरयाणा में भी अपने दम पर 90 सीट लड़ रहें है.
भाजपा को लगता है की आप बदनाम हो चुकी है और लोग उकता गए है. क्या होगा यह तो चुनाव का नतीजा बताएगा पर यह सही है कि दिल्ली की किस्मत कुछ अजीब है. या शायद मुग़लों के आखरी दिनों से शायद ऐसी ही है. हुकूमत कोई चलने नहीं देता है. नहीं शायद बिलकुल ऐसा भी नहीं था. जब से यह राज्य बना है कुछ न कुछ तो अनहोनी होती ही रही. फिर भी 2015 तक दिल्ली की हुकूमत कुछ तकरारों के बावजूद अच्छी तरह चलती रही. पर 2012 के अन्ना हजारे के आन्दोलन के बाद से तो लगातार जलजले आते रहें. अब देखना है दिल्ली की अवाम किसको तवज्जुह देती है आप या भाजपा को पर चुनावी तमाशा लोगों को अगले फरवरी तक मनोरंजन करती रहेगी.
जी हाँ फरवरी से पहले शायद ही चुनाव हो. चुनाव आयोग की वोटर लिस्ट जनवरी के 6 तारीख तक आएगी. उसके बाद ही दिल्ली के चुनाव का ऐलान होगा. तब तक वोटर मस्त, सियासत का पता नहीं.
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