उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में साम्प्रदायिक हिंसा और राजनीतिक माहौल ने एक नया मोड़ लिया, जब बीजेपी विधायक सुरेश्वर सिंह ने अपनी ही पार्टी के स्थानीय नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई। यह मामला तब चर्चा में आया जब विधायक पर उनके ही पार्टी के सदस्यों द्वारा हमला किया गया, लेकिन इसके पीछे की कहानी कहीं अधिक गहरी और जटिल है।
बहराइच में साम्प्रदायिक दंगे भड़काने की कोशिशें तब शुरू हुईं, जब महाराजगंज क्षेत्र में एक ब्राह्मण व्यक्ति, राम गोपाल मिश्रा की हत्या हुई। इस घटना को लेकर कई जगहों पर नफरत फैलाने वाली खबरें और अफवाहें फैलने लगीं। हालात और बिगड़ने लगे जब दंगाइयों ने मिश्रा की लाश को बहराइच मेडिकल कॉलेज के गेट पर रखकर प्रदर्शन किया, जिससे पूरे क्षेत्र में तनाव बढ़ गया।
इस माहौल में जब बीजेपी विधायक सुरेश्वर सिंह ने शांति बहाल करने की कोशिश की, तो उन पर ही हमला किया गया। पार्टी के स्थानीय अध्यक्ष अर्पित श्रीवास्तव और अन्य कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर एक भीड़ ने विधायक की गाड़ी पर पत्थरबाजी और फायरिंग की। उनके बेटे अखंड प्रताप सिंह पर भी हमले का प्रयास हुआ, लेकिन वह बाल-बाल बच गए। यह हमला स्पष्ट रूप से दंगाई भीड़ द्वारा शांति प्रयासों को विफल करने के लिए किया गया था।
लेख एक नज़र में
बहराइच जिले में हाल ही में साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाओं ने राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है। बीजेपी विधायक सुरेश्वर सिंह ने अपनी ही पार्टी के स्थानीय नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई, जो तब हुई जब उन पर पार्टी के सदस्यों द्वारा हमला किया गया। यह हिंसा तब भड़की जब एक ब्राह्मण व्यक्ति, राम गोपाल मिश्रा की हत्या के बाद नफरत फैलाने वाली अफवाहें उड़ने लगीं।
विधायक ने शांति बहाल करने का प्रयास किया, लेकिन उन पर और उनके बेटे पर हमले हुए। एफआईआर में प्रमुख रूप से पार्टी के स्थानीय अध्यक्ष अर्पित श्रीवास्तव का नाम शामिल है। यह घटनाक्रम योगी आदित्यनाथ की सरकार के लिए एक बड़ा झटका है, क्योंकि यह पार्टी के भीतर साम्प्रदायिक हिंसा के आरोपों को उजागर करता है।
मीडिया की भूमिका भी चिंताजनक रही है, जिसने गलत जानकारी फैलाकर स्थिति को और बिगाड़ा। सरकार ने कुछ अभियुक्तों को गिरफ्तार किया, लेकिन एपीसीआर ने बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की। इस स्थिति ने योगी सरकार के फैसलों पर सवाल खड़े कर दिए हैं और चुनावों में जनता की प्रतिक्रिया को प्रभावित कर सकता है।
सुरेश्वर सिंह ने हमले के बाद एफआईआर दर्ज करवाई, जिसमें पार्टी के स्थानीय नेताओं समेत आठ लोगों को अभियुक्त बनाया गया। इनमें बीजेपी के स्थानीय अध्यक्ष अर्पित श्रीवास्तव का नाम प्रमुख था। इस एफआईआर के जरिए विधायक ने पार्टी के भीतर छिपे दंगाइयों का पर्दाफाश किया, जिनका मकसद साम्प्रदायिक हिंसा को बढ़ावा देना था।
यह कदम योगी आदित्यनाथ की सरकार और बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ, क्योंकि पार्टी के भीतर ही साम्प्रदायिक हिंसा के आरोपों ने सरकार की साख पर सवालिया निशान लगा दिए। अब सवाल यह है कि योगी सरकार इस पर क्या कार्रवाई करेगी? क्या इन आरोपियों को गिरफ्तार किया जाएगा, या फिर इसे नजरअंदाज किया जाएगा?
बहराइच की साम्प्रदायिक हिंसा के दौरान मीडिया का रवैया भी बेहद चिंताजनक रहा। कई प्रमुख न्यूज़ चैनलों ने गलत जानकारी फैलाकर हालात को और बिगाड़ने की कोशिश की। राम गोपाल मिश्रा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया, जिसमें उनके साथ बिजली का करंट देने और उनके नाखून निकालने जैसे झूठे दावे किए गए। इस तरह की अफवाहों ने हिंसा को और भड़काने का काम किया।
बहराइच की पुलिस ने इन भ्रामक खबरों का खंडन किया और स्पष्ट किया कि मिश्रा की मौत गोली लगने से हुई थी। इसके बावजूद, मीडिया ने अपनी गलतियों को मानने या सुधारने की कोई कोशिश नहीं की। नतीजतन, साम्प्रदायिक माहौल को और जहरीला बनाने में मीडिया की भूमिका भी सवालों के घेरे में आ गई।
विधायक पर हमले के बाद, सरकार ने पांच अभियुक्तों को गिरफ्तार किया, जिनमें से दो को एनकाउंटर में घायल कर दिया गया। सरकार ने यह दावा किया कि वे नेपाल भागने की कोशिश कर रहे थे, और उनके पास से हत्या में इस्तेमाल हुआ हथियार भी बरामद हुआ। इसके अलावा, बहराइच में गरीबों के घरों और दुकानों पर बुलडोजर चलवाने की भी तैयारी की गई। इस कार्रवाई को सरकार की ओर से कानून-व्यवस्था मजबूत करने की कवायद के रूप में पेश किया गया।
हालांकि, एपीसीआर (एसोसिएशन फ़ॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ सिविल राइट्स) ने इस कार्रवाई के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसके बाद कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी। यह मामला सरकार की बुलडोजर राजनीति पर एक और सवाल खड़ा करता है, जो अक्सर गरीब और अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाती है।
योगी आदित्यनाथ की सरकार पर लगातार दबाव बढ़ रहा है। जहाँ एक ओर उनके विधायक ही अपनी पार्टी के नेताओं के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर अदालतें भी उनके फैसलों पर सवाल खड़े कर रही हैं। मदरसों की फंडिंग बंद करने के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार के फैसले पर रोक लगा दी है। यह स्थिति संकेत देती है कि सरकार को अपने फैसलों पर पुनर्विचार करना होगा, अन्यथा आने वाले चुनावों में जनता का बुलडोजर सरकार पर भारी पड़ सकता है।
बहराइच की साम्प्रदायिक हिंसा और बीजेपी विधायक द्वारा दर्ज की गई एफआईआर ने प्रदेश की राजनीति में एक नई हलचल मचा दी है। यह घटना न केवल योगी सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े करती है, बल्कि मीडिया और प्रशासन की भूमिका को भी उजागर करती है।
***************
We must explain to you how all seds this mistakens idea off denouncing pleasures and praising pain was born and I will give you a completed accounts..
Contact Us