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आज का संस्करण

नई दिल्ली, 23 अप्रैल 2024

अनूप श्रीवास्तव    

A person with glasses and a blue shirt

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हार्ट अटेक भी क्या शाहीना बीमारी है। इसने तपेदिक को भी पछाड़ दिया। डॉक्टर खुश और मरीज भी गदगद। इस बीमारी को पहाड़ी हवा से ज्यादा अस्पताल की हवा रास आती है। पहले हजारों आदमी रोज हार्ट अटैक का शिकार होते थे।करोना ने सबकी बीमारी का जिम्मा अपने सिर ले लिया। उस महामारी में एक भी आदमी के दिल की बीमारी से मरने का आंकड़ा नहीं है। हार्ट अटैक के हादसे कितने ,कहाँ हुए किसी को मालूम नही।सब करोना के खाते में। इतनी ऐयाश बीमारी। लाखो का खर्च। स्टेज पर स्टेज।  जिसको हार्ट अटैक पड़े वह तो भुगते ही परिवार,रिश्तेदार,मित्र   भी चिंतातुर हो जाते  हैं।  प्रियजन के हार्ट अटैक की खबर सुनते ही भले ही मामूली गैस का प्रकोप हो लोगों के होश उड़ जाते है। कई बार तो डॉक्टर को बुलाने का मौका भी नही मिलता, मरीज सोते सोते ही चला जाता है। पंछी उड़ जाता है लोग हाथ मलते रह जाते हैं।



लेख एक नज़र में

हार्ट अटेक एक गंभीर बीमारी है, इस बीमारी को पहाड़ी हवा से ज्यादा अस्पताल की हवा रास आती है। पिछले समयों में हजारों लोगों के रोजगार हार्ट अटेक से खतरा पर थे, लेकिन कोरोना वायरस ने अपने सिर पर लिया है और इसके कारण शिकायत की गई है कि अब दिल की बीमारी से मरने वाले कोई नहीं है।

हार्ट अटेक के शिकार के लोगों के परिवार व रिश्तेदार भी चिंतित रहते हैं। हार्ट अटेक की दवा की जरूरत होती है, लेकिन उसका सही और सस्ता इलाज क्या होगा, इस सवाल पर चिंता है। कुछ लोगों का जिगरा इतना मजबूत होता है कि वे बीमारी में भी चहकते रहते हैं, जबकि दूसरे लोगों का दर्दे दिल एक दूसरे से भी अलग होता है।

कुछ लोगों का दर्दे दिल शायराना होता है, जिनके लिए मैकदे जाना अच्छा होगा। अस्पताल में जाने से पहले लोगों को सोचना चाहिए कि वहां कौन सी सेवा मिलेगी और उसका कितना लागवारा होगा। अस्पताल में जाने से पहले लोगों को अपने दर्दे दिल के साथ सही निर्णय लेना चाहिए।



 

 

 लेकिन कुछ लोगों का जिगरा इतना मजबूत होता है, वे बीमारी में भी चहकते रहते हैं।  वे हार्ट अटैक को महज दर्दे दिल समझते है।

 मेरे एक  अभिन्न मित्र को हार्ट अटैक पड़ा।लगा पैरों तले जमीन खिसक गई। पता लगाकर अस्पताल पहुंचा। सोच रहा था , कैसे उन्हें तस्कीन दूंगा। मित्र के हार्ट अटैक की खबर से व्यथित भी था। लेकिन अस्पताल में नजारा एक दम उल्टा दिखा। मित्र प्रवर लेटे  मुस्करा रहे थे। मिलते ही चहके, यार!  लोग कहते थे मेरे पास दिल ही नहीं है, अगर ऐसा होता तो दिल का दौरा कैसे पड़ता? ख़ैर, यह उनका जज़्बा था लेकिन इससे बीमारी का रुतबा कम नही हो जाता।

कभी कभी हार्ट का फेल्योर ऐसा झटका देता है   कि बड़े बड़ों के होश उड़ जाते हैं। मेरे ममेरे भाई ने सुबह फोन करके कहा दादा! बहुत दिन हो गए आपसे मिले हुए आज शाम या कल दिन में आता हूँ   , शाम को मन हुआ पूछूँ कब आएंगे?जवाब मिला दादा    वे तो  कल दोपहर को  खाना खाकर लेटते ही  चले गए। क्या मतलब?

हार्ट फेल्योर  से।  न किसी से कुछ कहा,सुना,  डॉक्टर  ने देख कर बोला-ही इज डेड। हार्ट फेल हो गया । सब हाथ मल ते रह गए। पंछी उड़ गया। अब इसे चाहे हार्ट फेल कहें या दर्दे दिल।

 जाने कितने दोस्त अहबाब दिल के धोखा के झटके को बर्दाश्त न कर सकने पर निकल लिए। मेरे खास दोस्त और कवि नवाब शाहाबादी खुद डॉक्टर होते हुए  दिल का दौरा बर्दाश न कर निकल लिए। महेश्वर तिवारी,गुरदेव नारायण भी दर्दे दिल का चाक होना बर्दाश्त न कर सके।

           दर्दे दिल की बात तो सभी करते हैं लेकिन वे यह नहीं बता सकते कि यह कितनी तरह का होता है। शायरों और कवियों का दर्दे दिल दूसरी तरह की बीमारी है। जिन्हें वाकई दिल की बीमारी होती है उन्हें डॉक्टर के पास जाना पड़ता है।एलोपैथ चिकिसक कहता है कि बाई पास सर्जरी जरूरी है और कोई होम्योपैथ बताता है कि भैया काहे लफड़े में पड़ते हो कार्डिकेयर सुबह शाम दस बूंद पीते रहो।ठीक हो जाएगा। यह नुस्खा एलोपैथ के मुकाबले सस्ता है।

अब सवाल यह है कि दर्दे दिल को सस्ता इलाज चाहिए या महंगा ?मेरी समझ मे जैसा दर्दे दिल हो और जेब मे जितना पैसा हो,उसी के अनुसार डॉक्टर ढूढना और इलाज किया जाना चाहिए।

    मेरे एक पड़ोसी थे,उम्र मेरी जैसी ही।उनके पास पैसा था और मेरे पास वोडका की एक बोतल। उन्होंने बाई पास सर्जरी कराई।चूंकि में उनका दोस्त और शुभ चिंतक था। साथ मे कुछ और शुभ चिंतक भी थे। मित्र के हार्ट अटैक होने से हम सभी चिंतित थे। वे बियर लेकर आये  थे। बियर कम थी ।वे  दोनों मेरी तीन पैग व्हिस्की  भी पी गए। और सोफे पर ही सो गए। सुबह उठकर मैने उनके दीर्घायु ही नहीं नही जर्रायु होने की प्रार्थना की,लेकिन हमारा दुर्भाग्य देखिये कि ऑपरेशन के तीसरे दिन ही उनकी हालत खराब हो गयी और सांतवे दिन उनके घर मातम छा गया। उनके परिवार वालों ने रो रो कर बताया कि उनके दिल के इलाज के लिए उन लोगो ने बारह लाख तकरीबन खर्च किये।कुछ तो मुझे अफसोस हुआ कुछ उन सज्जन पर गुस्सा  आया। अब मरना तो मुझे भी है।सबको है।लेकिन बाई पास कराकर,डॉक्टरों को भारी भरकम फीस देकर हजारों रुपयों की दवाएं खाकर मरना क्या जरूरी था। मेरे दोस्त ने भुनभुनाते हुए कहा यार मरेंगे हम दोनों ही। लेकिन चिकन  और मछली खाकर और व्हिस्की पीकर । यह तरीका सस्ता है,सुस्वाद भी है और सूखकर भी।

      पता नहीं जब दर्दे दिल उठता है तो कुछ लोग अस्पताल की तरफ क्यों भागते हैं। अहले दिल तो तुरन्त मैकदे की तरफ लपकते हैं। अस्पताल में है क्या?  नकचढ़े डॉक्टर, मुंह फुलाये नर्सें, जहरीले नश्तर जैसी सुइयां ,पानी मिला मिक्स्चर और जा नलेवा दवाएं  ।और इधर मैकदे में क्या नही है। जामो मीना है, सुराही है और सुराहीदार गर्दन वाली  साकी है। दोस्त हैं।हम प्याले हैं। कबाब है।कलेजी है। माना कि मैकदे की दीवारें अस्पताल की दीवारों की तरह चिकनी चुपड़ी नहींहैं।  एयर कंडीशन्ड  भी नही लेकिन जो आत्मीयता मैखाने में है वह अस्पतालों में कहां? माना कि पैसा वहां भी देना पड़ता है और यहां भी लेकिन  डॉक्टरों और अस्पतालों की भारी भरकम फीस की तुलना में मैकदे का बिल न के बराबर होता है।  मेरे अभिन्न मित्र यही बात कहते कहते ऊपर निकल लिए की उनकी बेबाक सलाह है कि   हर दर्दे दिल के बीमार को  अस्पताल के बजाय मैकदे से ही दिल लगाना चाहिए।

अस्पताल में आपको कौन मिलेगा ,मुंह फुलाये,आला लटकाए डॉक्टर जिनकी नजर आपके दिल की तरफ नही,बल्कि आपके जेब की तरह होगी और इधर मैकदे में आप जिधर देखेंगे  उधर दर्दे दिल की शान में एक से एक शानदार शेर पढ़ते हुए शायर मिलेंगे। मीर,ग़ालिबऔर मोमिन पर हो रही बहसें कानों में रस घोल रही होंगी। बहुत मुमकिन है कि हिंदी की सरस परम्परा  के कुछ कवि भी वहां जा पहुंचे जिन्हें भांग के बजाय मदिरा  बेहतर और प्रगतिशील पेय लगा हो तो वे भी बिहारी और रसखान पर बहस कर रझे होंगे। यह भी हो सकता है कि उनमें  से कुछ रीतिकाल  को पतनशील  और भक्तिकाल को बेहतर करार दे रहे हों। बाबजूद इसके  उनकी बहस  रसहीन  यथार्थवादी  के बजाय रससिक्त कविता पर ही केंद्रित होरही होगी।क्या यह भी दर्दे दिल नहीं है।

       अब इतनी बकवास के बाद ग़ालिब का यह शेर याद आना लाजमी है।" इब्ने मरियम हुआ करे कोई,मेरे दुख की दवा करे कोई"। मरियम का बेटा यानी ईसामसीह कोई है तो हुआ करे।अगर वह मेरे दुख की दवा  नहीं कर सकता तो वह भी मेरे ठेंगे पर है।

तो फिर वही सवाल दर पेश है कि दर्दे दिल की दवा क्या है? असल बात यह है कि हर एक का दर्दे दिल  अलग अलग तरह का होता है और उसकी दवा भी। जाहिर है कि अलग ही होगी। अगर आपको बाई पास की जरूरत है तो अस्पताल की तरफ दौड़िये और अगर आपका दर्दे दिल शायराना है तो मैकदे के अलावा और चारा भी क्या है। जैसा कि एक दोस्त शायर गाफ नून अदब ने कहा है कि-"मत उधर जा ,यह हर किसी ने कहा,मैकदे चल यह तिश्नगी ने कहा" ।

तो मित्रो जैसा दर्दे दिल हो वैसा ही इलाज करना चाहिए। बिना वजह  सिरदर्द मोल लेने  और पैसा बर्बाद करने से क्या फायदा। अस्पताल की लाखो की रकम भरने । हजारों की दवा खरीदने के बजाय दर्दे दिल के नाम पर गुलाब के कांटो को मसलने से क्या मिलेगा ! सिर्फ़ दर्दे दिल!

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