प्रशांत गौतम
नई दिल्ली | शुक्रवार | 25 अक्टूबर 2024
आज के युग में शिक्षा और विज्ञान की ताकत से दुनिया कहां से कहां पहुंच चुकी है। एक नज़र डालें चीन पर, जिसने अपनी शिक्षा और वैज्ञानिक तरीकों का प्रयोग करके एक नई दिशा में कदम रखा है। चीन ने टेक्नोलॉजी और विज्ञान में इतनी तरक्की की है कि वहाँ के होटल, इंजीनियरिंग, और यहां तक कि मजदूरों के काम भी रोबोट कर रहे हैं। हर क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), रोबोटिक्स और ऑटोमेशन का इस्तेमाल हो रहा है। दूसरी तरफ, अगर हम अपने देश की स्थिति देखें, तो हम धार्मिक आयोजनों, भंडारों, कावड़ यात्राओं, और समाज के धार्मिक मतभेदों में उलझे हुए हैं।
चीन ने जिस तरह से अपने शिक्षा तंत्र को मजबूत किया है, वह सराहनीय है। वहाँ के विद्यार्थी वैज्ञानिक और तकनीकी ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। उनके स्कूलों और विश्वविद्यालयों में बच्चों को रोबोटिक्स, कोडिंग, और इंजीनियरिंग के गुर सिखाए जाते हैं। परिणामस्वरूप, चीन ने खुद को तकनीकी रूप से इतना सक्षम बना लिया है कि वहाँ हर सेक्टर में रोबोट काम करते नज़र आ रहे हैं।
लेख एक नज़र में
आज के समय में शिक्षा और विज्ञान की शक्ति से दुनिया तेजी से आगे बढ़ रही है, खासकर चीन में, जहाँ तकनीकी विकास और रोबोटिक्स ने हर क्षेत्र में क्रांति ला दी है। चीन ने अपनी शिक्षा प्रणाली को मजबूत कर विद्यार्थियों को विज्ञान और तकनीकी ज्ञान से लैस किया है। इसके विपरीत, भारत धार्मिक आयोजनों और मतभेदों में उलझा हुआ है, जिससे हमारी प्रगति रुक रही है।
धार्मिक आयोजनों में भाग लेना हमारी संस्कृति का हिस्सा है, लेकिन जब ये हमारी शिक्षा और करियर पर हावी हो जाते हैं, तो समस्या उत्पन्न होती है। हमें संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है। अगर हम चीन जैसी उन्नति चाहते हैं, तो हमें शिक्षा और विज्ञान पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
हमें अपने बच्चों को आधुनिक शिक्षा देकर तकनीकी विकास की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। तभी हम एक बेहतर समाज और देश का निर्माण कर सकेंगे।
चाहे होटल में स्वागत करना हो, इंजीनियरिंग की बारीकियां हों, या फैक्ट्री में काम करना, चीन ने इंसानी कामों को तकनीकी मदद से आसान बना दिया है। जहाँ एक तरफ़ चीन हर दिन नए आविष्कार कर रहा है, वहीं दूसरी ओर हमारे यहाँ पढ़ाई और वैज्ञानिक सोच को उतनी तवज्जो नहीं दी जा रही है। हम इस बात को नजरअंदाज करते हुए धार्मिक आयोजनों में उलझे रहते हैं और इसी पर जोर देते हैं कि कौन सा समाज कैसे सुधरेगा।
भारत जैसे देश में, धार्मिक आयोजन और त्यौहार हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं, और इसमें कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन समस्या तब शुरू होती है जब हम इन आयोजनों को अपने जीवन का केंद्र बना लेते हैं और अपनी शिक्षा, करियर, और भविष्य को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। नवरात्र, माता जागरण, भंडारे, सवामणि, कावड़ यात्रा, मंदिर-मस्जिद के मतभेद—इन चीज़ों पर हम इतना ध्यान देने लगते हैं कि हमारी वास्तविक प्रगति रुक जाती है।
यह धार्मिक क्रियाएँ और आयोजन हमारे सामाजिक जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन हमें यह समझना होगा कि यह हमारी पूरी जिंदगी नहीं हो सकते। अगर हम अपनी ज़िम्मेदारियों को नज़रअंदाज कर सिर्फ इन्हीं चीजों में उलझे रहेंगे, तो हम प्रगति की दौड़ में बहुत पीछे रह जाएंगे।
समाज को सुधारने की बात करना आसान है, लेकिन सबसे पहले हमें खुद को सुधारने की ज़रूरत है। हम समाज में दूसरे लोगों की कमियां निकालते हैं, लेकिन खुद कितने बेहतर हैं, इस पर शायद ही ध्यान देते हैं। शिक्षा, विज्ञान, और तकनीकी विकास पर जोर देने के बजाय हम धार्मिक आयोजनों और मतभेदों में उलझे रहते हैं।
हमें यह सोचना चाहिए कि जब पूरी दुनिया तकनीकी विकास और वैज्ञानिक खोजों के रास्ते पर बढ़ रही है, तब हम अपने समय और संसाधनों का सही उपयोग क्यों नहीं कर रहे हैं। नवरात्र, माता जागरण, या कावड़ यात्रा में हिस्सा लेना हमारी आस्था का हिस्सा हो सकता है, लेकिन हमें संतुलन बनाए रखने की ज़रूरत है। आस्था और विज्ञान में एक संतुलन होना चाहिए ताकि हम व्यक्तिगत और सामाजिक रूप से दोनों ही क्षेत्रों में उन्नति कर सकें।
चीन की तरह हमें भी अपनी शिक्षा प्रणाली को मजबूत करना होगा और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना होगा। अगर हम तकनीकी और वैज्ञानिक विकास पर ध्यान देंगे, तो हमारे देश में भी रोबोटिक्स, AI, और नई तकनीकों का विकास हो सकता है। इसके लिए सबसे जरूरी है कि हम अपने बच्चों को आधुनिक शिक्षा दें और उनका भविष्य सुनहरा बनाएं।
धार्मिक आयोजनों और समाज सुधार के चक्कर में हम इतना न उलझें कि हम खुद की प्रगति और समाज के वास्तविक विकास को भूल जाएं। अगर हम चीन जैसी उन्नति चाहते हैं, तो हमें शिक्षा, विज्ञान, और तकनीकी विकास को प्राथमिकता देनी होगी।
आज का युग वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति का युग है। चीन ने अपनी शिक्षा और विज्ञान की बदौलत पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाई है। हमें भी यह समझना होगा कि धार्मिक आयोजनों और समाज सुधार की कोशिशों से कहीं ज्यादा जरूरी है खुद को सुधारना और शिक्षा के माध्यम से आगे बढ़ना।
अगर हम आज से ही अपनी शिक्षा और वैज्ञानिक सोच पर ध्यान देंगे, तो भविष्य में हम भी किसी से पीछे नहीं रहेंगे। इसलिए, चलिए खुद को सुधारे और एक बेहतर समाज और देश का निर्माण करें।
---------------
We must explain to you how all seds this mistakens idea off denouncing pleasures and praising pain was born and I will give you a completed accounts..
Contact Us