रूस में राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन की तानाशाही से संघर्ष करते जनयोद्धा, वकील एलेक्सी नवेलनी की कल (16 फरवरी 2024) साइबेरिया के जेल में मृत्यु हो गई। वे मात्र 47 वर्ष के थे। उन्हें जेल में जहर देकर मारने की आशंका है। वे 19 साल की सजा काट रहे थे।
पुतिन की पार्टी यूनाइटेड रशिया को नवेलिनी "ठगों की पार्टी" बताते थे। मास्को में नवेलनी की पत्नी यूलिया ने कहा कि पुतिन को इसकी सजा जरूर मिलेगी। उन्होंने कहा : "मैं वैश्विक बिरादरी से रूस की शैतानी सरकार के खात्मे की अपील करती हूं।" मां ल्यूडमिला ने कहा कि मैं 12 फरवरी को बेटे से जेल में मिली थी, वो स्वस्थ और खुश था।
एक सफल वकील के रूप में अपनी पहचान नवेलनी ने कायम की। उन्होंने 2008 में एक ब्लॉग लिखकर सरकारी कंपनियों के घोटालों को उजागर किया था। वह 2013 में मास्को के मेयर पद के लिए खड़े हुए थे और दूसरे नंबर पर आए थे। बाद में उन्होंने राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने की कोशिश की लेकिन आपराधिक मुकदमों की वजह से उन पर रोक लगा दी गई। उन्होंने इन मुकदमों को राजनीति से प्रेरित बताया था।
रूस के खुफिया एजेंटों ने 2020 में नवेलनी को साइबेरिया में घातक जहर नोविचोक देकर मारने की कोशिश की थी। जर्मनी में इलाज के बाद उन्हें चेताया गया था कि उनका रूस लौटना सुरक्षित नहीं होगा। नवेलनी ने किसी की नहीं सुनी और कहा कि "मैं रूस लौटूंगा, जर्मनी में राजनीतिक प्रवासी नहीं बनूँगा।" नवेलनी कहते थे : "मुझे कैसा भय ? डर तो उनको (पुतिन) लगना चाहिए।"
याद आते हैं रूसी संपादक और नोबेल पुरस्कार से नवाजे गए पत्रकार दिमित्री मुरातोव। पुतिन के अन्याय का वह भी शिकार रहे। उन दिनों जेल में नजरबंद एलेक्सी नवेलनी पर दिमित्री मुरातोव ने कहा था : ''इस नोबेल पुरस्कार का असली हकदार नवलतनी ही हैं। वह जेल में पुतीन द्वारा दी जा रही असह्य यातना का शिकार है।'' नोबेल समिति से उनका आग्रह था कि अंतर्राष्ट्रीय यातना—विरोधी न्याय—प्राधिकरण का गठन हो। मानव की आत्मा की आजादी सुनिश्चित करने हेतु। उनकी घोषणा थी कि उन्हें मिला पारितोष मानव मुक्ति के लिये संघर्षरत हर पत्रकार के नाम है। यह प्रत्येक खोजी कलमकार के लिये है जो सत्यान्वेषी है। पनामा—पेडोंरा पेपर्स द्वारा उद्घाटित नामीगिरामी लुटेरों की भर्त्सना करते हुये दिमित्री ने अनवरत जद्दोजहद की मांग की। स्मरण रहे इस पनामा पेपर्स की रपट में इंडियन एक्सप्रेस ने जो लिखा है उसमें अमिताभ बच्चन, पतोहू ऐश्वर्या राय, विजय माल्या, मंत्री जयंत सिंन्हा, सचिन तेन्दुलकर, जहांगीर सोली सोराबजी, ब्रिटिश प्रधानमंत्री रहे टोनी ब्लेयर एवं स्वयं व्लादीमीर पुतीन सूची के शीर्ष पर रहे।
दिमित्री की मांग रही कि साइबेरिया के घने जंगलों में वृक्षों की निर्मम कटाई के खिलाफ हम पत्रकार दुनिया भर में आवाज बुलन्द करें। वर्तमान पत्रकारिता अंधेरी घाटी से गुजर रही है। अपने संघर्षशील साथियों से वे बोले : ''रिश्वतखोरों ने हमारे काम की सहजता को नष्ट कर दुश्वारियां पैदा कर दीं।''
(शब्द 505)
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