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आज का संस्करण

नई दिल्ली, 8 मई 2024

किस शास्त्र में लिखा है पति परमेश्वर है ?

आरती शर्मा

 

ति परमेश्वर है। सोमवार का व्रत रखा करो। शिवजी को प्रसन्न कर दिया तो तुम्हें सुयोग्य वर मिलेगा। सावन के महीने में शिवजी को बेलपत्री चढ़ाकर पंचामृत से स्नान कराओ तो अच्छा हमसफर मिलेगा।

 

ऊपर की दी गई तीनों बातें कडवा सच है जो हिंदू समाज में पल बढ़ रही सभी कुंवारी लड़कियों को जन्म के बाद ही घुट्टी की तरह घोट-घोटकर सिखाई जाती हैं। हिंदू समाज में एक स्त्री के लिये उसका पति ही सब कुछ है। यानी वही उसका ईश्वर और वही परमेश्वर। घर के बड़े-बूढ़े से लेकर पंडित, साधु, सत्संगी, ज्ञानी लोग भी स्त्रियों को यही सलाह देते दिखाई देते हैं कि घर की चौखट मत लांघो, कुल की मर्यादा बनाये रखो और पति का भूल कर भी अनादर न करो।



लेख एक नज़र में

 

हिंदू समाज में, स्त्री के लिए पति ही सब कुछ है और उसे ईश्वर के रूप में माना जाता है। स्त्री को ही पति के लिए उपवास और व्रत रखने पर प्रेरित किया जाता है, पर लड़कों को भी अच्छी पत्नी पाने के लिए व्रत रखना क्यों नहीं सिखाया जाता है?

 गीता के तेरहवें अध्याय में लिखा है कि आत्मा शरीर से अलग है, पर शरीर का स्वामी है। पर पुरूष जाति ने अपनी स्वतंत्रता का दावा करके स्त्री जाति का स्वामी बना लिया है।

हिंदू समाज में विवाह के समय सात फेरे सात वचनों के साथ लिये जाते हैं, जिसमें पति-पत्नी के सम्मान के वादे किए जाते हैं, पर पति परमेश्वर का वादा कभी नहीं किया जाता है। हमें समझना आवश्यक है कि पति परमेश्वर का दावा कौन कर रहा है और क्यों?



सिर्फ लड़की को ही अच्छा पति पाने के लिये क्यों व्रत और उपवास रखने पड़ते है ? क्या लड़कों को अच्छी पत्नी पाने की चाह नहीं होती ? उनके लिये अच्छी पत्नी पाने के लिये कोई व्रत- अनुष्ठान क्यों नहीं होते। पत्नी देवी  । समान साक्षात् लक्ष्मी होती है, पर आज तक मैंने - विष्णु को तो कभी अपनी लक्ष्मी के लिये पूजा -करते नहीं देखा।

 

मेरी मां अपने पीहर से जो अलमारी दहेज में लाई थीं उसके दोनों पलड़ों पर लिखा थाः “दुल्हन वही जो पिया मन भाये" पर कुछ दिनों पहले मैंने एक ट्रक के पीछे यह लाइनें भी पढ़ी - "दुल्हन वही जो पिया मन भाये दूल्हा वही जो पी के घर आये।"

 

बात एकदम सही है। दुल्हन को हर वह काम करना चाहिये जिससे उसका पति खुश हो। चाहे उसके लिये वह सारी जिंदगी घुट-घुटकर बिता दे या अपने भाग्य को कोसती रहे। पर दूल्हा वही सबसे शानदार है जो पी के घर आए और जो मर्जी करे। पर बस उसकी दुल्हन उसके सारे अरमान पूरे करे।

 

चलो एक बार को हम मान भी लें कि पति परमेश्वर है पर ऐसा लिखा है?  किसने लिखा है? एक दो उदाहरण तो मिले जिससे विश्वास हो सके। इन सबका जवाब मिलता है ऐसा शास्त्रों में लिखा है, यह हिंदू समाज का नियम है या फिर यही हमारी लोक परंपरा है।

 

गीता के तेरहवें अध्याय में लिखा है: वह (आत्मा) देह में रहते हुआ भी देह से परे अर्थात् संबंध रहित है। वह शरीर के साथ संबंध रखने से उपद्रष्टा उसके साथ मिलकर सम्मति अथवा अनुमति देने से अनुमंता, अपने को उसका भरण-पोषण करने वाला मानने से भर्ता, उसके साथ सुख-दुख भोगने से भोक्ता और अपने को उसका स्वामी मानने से महेश्वर बन जाता है। लेकिन स्वरूप से यही परमात्मा कहा जाता है। इस पूरी बात का आसान सा अर्थ है कि इस शरीर में बसने वाली आत्मा ही परमात्मा है। वही इस

 

शरीर की स्वामी है चाहे फिर देह स्त्री की हो या पुरूष की। पर पता नहीं फिर भी कैसे पुरूष जाति ने अपने आप को स्त्री जाति का स्वामी बना लिया और आदेश जारी कर दिया कि हम तुम्हारे परमेश्वर है और हमीं को अपना परमात्मा मानो।

 

हमारे पूर्वजों की भाषा संस्कृत थी। सारा काम-काज उसी भाषा में हुआ करता था। इस कारण हमारे शास्त्र भी उसी भाषा में लिखे गये हैं। पर इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि इस भाषा (संस्कृत) में जो कुछ भी लिखा गया है वह सब कुछ शास्त्र है। आज किताबों की, खाने की, फिल्मों की कई तरह की विधाये चल निकली हैं तो उसका यह अर्थ नहीं है कि वो सभी ज्ञानपूर्ण और विश्वसनीय हों। इतनी छोटी-सी बात तो सभी की समझ में आती है। ठीक इसी तरह हमें यह समझना भी आवश्यक है कि उस समय यदि किसी ने अपने अधपके विचार संस्कृत में व्यक्त कर उसे शास्त्र का नाम दे दिया है तो वही सच होगा। गीता से बढ़कर और कौन-सा शास्त्र होगा ? अब आप गीता की दी गई परमात्मा की व्याख्या को सच मानेंगें या फिर फलां शास्त्र की बात को ? अगर गीता में दिया गया परमात्मा का स्वरूप सच है तो फिर पति परमात्मा कैसे हो सकता है ?

 

हिंदू समाज में विवाह के समय सात फेरे सात वचनों के साथ लिये जाने की परंपरा है। ये सभी वचन अग्नि के सामने उसे पावन मानकर लिये जाते हैं। इन वचनों में एक-दूसरे के प्रति निष्ठावान रहने, सम्मान देने, सुख-दुख, संम्पत्ति और लोक व्यवहार में साझी सहमति से काम करने के वादे किए जाते हैं। पर उस सब मे कहीं ऐसा नहीं कहा जाता कि तुम्हारे पति ही आज से तुम्हारा परमेश्वर होगा। हां, दोनों को एक-दूसरे का सम्मान करने के लिये जरूर कहा गया है।

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