सागर ज़िले के बरोदया नोनागीर गाँव में अंजना अहिरवार नामक लड़की की चलती ऐम्बुलैंस से गिरकर सन्दिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। क्या किसी ने चलती ऐम्बुलैंस से गिरकर भी किसी की मौत की घटना सुनी है? नहीं सुनी होगी, इसलिए कि ऐम्बुलैंस से अगर मरीज़ के रिश्तेदार गिरकर मरने लगें तो मरीज़ों और लाशों का क्या होगा? लेकिन अगर ऐम्बुलैंस का रंग भगवा हो और उसमें डबल इंजन लगा हो तो यह हो सकता है।
अंजना अहिरवार की मौत के लिए भगवा सरकार ज़िम्मेदार है। इस ज़ुल्म पर इंसाफ़पसंद लोग प्रतिरोध की आवाज़ बुलंद कर रहे हैं मगर केन्द्र की ‘हम दो और हमारे दो’ वाली सरकार ख़ामोश है। इसलिए कि गिरने वाली का नाम अंजना ओम कश्यप नहीं, बल्कि अंजना अहिरवार है। दलित समाज की बेटी को ज़ालिमों और क़ातिलों को बचाने की ख़ातिर मार दिया गया। इससे पहले हाथरस में पुलिस वालों ने घर वालों की ग़ैर-मौजूदगी में बलात्कार की शिकार दलित बेटी के शव को मिट्टी का तेल छिड़क कर जला दिया था। यूपी की तरह भगवा रंग की डबल इंजन सरकार एम.पी. में भी है। मुख्यमंत्री के ठाकुर योगी या पिछड़े यादव होने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता।
सागर ज़िले के बरोदया नोनागीर गाँव में एक दलित लड़की की चलती ऐम्बुलैंस से गिरकर मौत हो गई।
यह घटना दलित समाज के लिए एक बड़ा संकट है। बीजेपी सरकार के दलित अत्याचारों के बारे में कुछ नहीं कर रही है। इस घटना के बाद लोगों ने प्रदर्शन करने की आवाज़ बुलंद कर दी है।
हालाँकि बीजेपी के नेताओं ने दलित समाज के साथ कुछ नहीं किया है। इस घटना के बाद दलित समाज के लिए एक बड़ा संकट है। हमें इस समस्या के समाधान करने की जरूरत है।
अंजना अहिरवार को ऐम्बुलैंस से गिराकर अन्याय एवं अत्याचार की फ़ाइल को हमेशा के लिए बंद करने की कोशिश की गई है। इस मार्मिक कहानी की शुरुआत नौ महीने पहले हुई जब ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाने वालों ने अंजना के साथ छेड़खानी की। उसका भाई नितिन अहिरवार अपनी बहन की इज़्ज़त के लिए भगवाधारियों से भिड़ गया तो स्वाभिमानी नौजवान को क़त्ल कर दिया गया। माँ अपने बेटे को बचाने की ख़ातिर आगे आई तो उसे सार्वजनिक रूप से निर्वस्त्र कर दिया गया। अपनी भतीजी के लिए इंसाफ़ माँगने वाले चाचा को भी मौत के घाट उतार दिया गया और आख़िरकार पीड़ित युवती के ऐम्बुलैंस से गिरकर मर जाने की ख़बर उड़ा दी गई। इस पूरे मामले में भगवा डबल इंजन सरकार का वफ़ादार प्रशासन ज़ालिमों और क़ातिलों के साथ खड़ा रहा। पहले क़त्ल के बाद तीन अभियुक्तों को फाँसी के फंदे पर लटका दिया जाता तो ये तीन क़त्ल नहीं होते, लेकिन चूँकि इस ज़्यादती के अंदर सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के लीडर संलिप्त थे इसलिए भेदभाव किया गया।
भगवा दरिंदों ने दलित लड़की के यौन शोषण के बाद उसे ख़ामोश रहने की धमकी दी। बहादुर लड़की ने ज़्यादती के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कराने की कोशिश की तो रोका गया, लेकिन चूँकि वीडियो मीडिया में फैल चुकी थी, इसलिए मजबूरन शिकायत दर्ज की गई। प्रशासन ने लंपट नौजवानों की नकेल कसने के बजाय बीजेपी से संबंध रखने के कारण नरमी बरती और दलित परिवार पर समझौते के लिए दबाव डालने की खुली छूट दे दी। इसके बावजूद स्वाभिमानी परिजन समझौते पर राज़ी नहीं हुए तो सदियों से दलितों पर अत्याचार तोड़ने वालों ने इंसाफ़ की इस जंग को बग़ावत समझा। इस बग़ावत को कुचलने की ख़ातिर लड़की के भाई नितिन का खुले आम क़त्ल कर दिया गया, ताकि अन्य लोगों को भयभीत किया जाए और उनके अत्याचारों पर कोई ज़बान खोलने की जुर्रत न करे। अपने जिगर के टुकड़े को बचाने के लिए आगे आने वाली माँ पर ज़ालिमों का दिल नहीं पिघला बल्कि उन्होंने बुज़ुर्ग ख़ातून को सार्वजनिक रूप से निर्वस्त्र कर दिया। इस स्वाभिमानी परिवार ने फिर भी हार नहीं मानी और इंसाफ़ की लड़ाई जारी रखी। तीन दिन पहले लड़की के चाचा को भगवा दबंगों ने क़त्ल कर दिया क्योंकि उनके दिल से क़ानून का डर निकल चुका है। उन्हें यक़ीन दिला दिया गया है कि 4 जून को चार-सौ पार हो जाने के बाद मनुस्मृति लागू हो जाने पर ऐसे ज़ालिमों को सज़ा के बजाय पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा।
अंजना अहिरवार को जब अपने चाचा के मौत की ख़बर मिली तो वो उनकी लाश लेने के लिए अस्पताल गई, लेकिन वह ख़ुद अपने अंजाम से अंजान थी। वह बेचारी अपने चाचा की लाश के साथ लौट रही थी कि रास्ते में ऐम्बुलैंस से गिरकर उसकी मौत का एलान हो गया। इस तरह नौ महीनों के अंदर पीड़ित युवती समेत एक ही परिवार के तीन लोग मौत के घाट उतार दिए गए। इस अरसे में प्रधानमंत्री ने कई बार मध्य प्रदेश का दौरा किया, मगर एक-बार भी उन्होंने पीड़ितों की हमदर्दी में कुछ नहीं कहा, बल्कि दलितों के वोट पर डाका डालने की ख़ातिर सन्त रविदास मंदिर का उद्घाटन कर दिया। काँग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने उस वक़्त एक्स पर लिखा था , ‘मध्य प्रदेश के सागर ज़िले में एक दलित नौजवान को पीट-पीटकर मार दिया गया। ग़ुंडों ने उसकी माँ को भी नहीं बख़्शा। सागर में संत रविदास मंदिर बनवाने का ड्रामा करने वाले प्रधानमंत्री के मध्य प्रदेश में लगातार दौरे हो रहे हैं, मगर वह दलित और आदिवासी ज़ुल्म और नाइंसाफ़ी पर चूँ तक नहीं करते।’
उपर्युक्त दुखद घटना से सिर्फ़ एक महीना पहले बीजेपी लीडर प्रवेश शुक्ला ने मध्य प्रदेश के सीधी ज़िले में एक आदिवासी दशमत रावत के ऊपर पेशाब करके उसकी वीडियो फैलाने की जुर्रत कर दी थी। इसके बाद चुनावी नुक़्सान के ख़ौफ़ से पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उसे अपने घर बुलाकर उसके पैर धोए थे। इस घटना की ओर इशारा करते हुए काँग्रेस के दलित अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक्स पर लिखा था ‘मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री सिर्फ़ कैमरे के सामने ग़रीबों के पाँव धोकर अपना जुर्म छिपाने की कोशिश करते हैं। बीजेपी ने मध्य प्रदेश को दलित अत्याचारों की प्रयोगशाला बना दिया है। बीजेपी की सत्तावाली मध्य प्रदेश सरकार में दलितों के ख़िलाफ़ अपराधों की दर सबसे ऊँची यानी राष्ट्रीय औसत से भी तीन गुना ज़्यादा है।’
बीजेपी वाले इस तरह की नौटंकी करके पिछड़े वर्गों पर डोरे डालते हैं, हालाँकि उपर्युक्त घटना के सिर्फ़ एक महीने बाद ही सागर में जिस ज़ुल्मो-सितम की शुरूआत हुई वह अब अपनी इंतिहा को पहुँच गई। इस दौरान बीजेपी ने भारी बहुमत के साथ राज्य चुनाव जीत लिया। यह कामयाबी इस बात का सुबूत है कि फ़िलहाल देश का आम आदमी इस तरह के अत्याचारों पर आग बबूला नहीं होता और बड़ी आसानी से भगवाधारियों के झाँसे में आ जाता है। उस वक़्त काँग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने भी इस मामले पर बीजेपी पर हमला करते हुए कहा था कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों से संबंध रखने वाले ग़रीब लोगों पर बीजेपी के अत्याचार बढ़ रहे हैं। संत रविदास महाराज का मंदिर बनाने से उन ग़रीबों को कोई फ़ायदा नहीं होगा। उन्हें उनके अधिकार देने होंगे। अंजना और उसके चाचा का क़त्ल चीख़-चीख़कर कह रहा है कि दलित समाज अब भी अपने जायज़ अधिकारों से वंचित है।
मध्य प्रदेश के सागर ज़िले में घटित होने वाली इस ज़ुल्म और अत्याचार की दास्तान पर राहुल गाँधी ने कहा कि दलित परिवार के साथ बीजेपी नेताओं ने जो किया है वह सोचकर ही दिल दर्द से भर जाता है। नरेंद्र मोदी ने क़ानून का राज ख़त्म कर दिया है। राहुल गाँधी ने आगे लिखा कि यह शर्म की बात है कि बीजेपी की सरकारों में सरकार पीड़ित महिलाओं के बजाय मुजरिमों के साथ खड़ी मिलती है। इस तरह की घटनाएँ हर उस व्यक्ति की हिम्मत तोड़ देती हैं जिसके पास इंसाफ़ को पाने के लिए क़ानून के सिवा कोई रास्ता नहीं होता। उन्होंने विश्वास दिलाया कि वह एक ऐसी व्यवस्था बनाएँगे जहाँ कमज़ोर से कमज़ोर आदमी भी ज़ुल्म के ख़िलाफ़ भरपूर आवाज़ उठा सकेगा। उन्होंने दौलत और ताक़त पर इंसाफ़ की निर्भरता को ख़त्म करने का संकल्प किया। इस मामले में काँग्रेस पार्टी ने पीएम मोदी से पूछा कि आप तक यह ख़बर पहुँची? आपके जंगल राज में सरे-आम क़ानून की धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं, बेटियों का शोषण हो रहा है और समझौता न करने पर आपकी पार्टी के लोग क़त्ल करवा रहे हैं। आपने देश को बेटियों के लिए सबसे ज़्यादा असुरक्षित बना दिया है और हर बार की तरह इस बार भी आप दरिंदों के साथ खड़े होंगे, यह देश जानता है।
देश के अंदर दलित महिलाओं के ऊपर होने वाले अत्याचारों में पिछले दस सालों के अंदर अच्छी ख़ासी वृद्धि हुई है। उनपर संघ परिवार विरोध की आवाज़ बुलंद नहीं करता। ‘बहुत हुआ नारी पर अत्याचार’ का नारा लगाने वालों को इस विषय पर फ़िल्म बनाने का ख़्याल तक नहीं आता, बल्कि उन अत्याचारों की ओर से ध्यान हटाने के लिए कभी ‘दि कश्मीर फ़ाइल्स’ तो कभी ‘दि केरला स्टोरी’ या ‘बहत्तर हूरें’ जैसी दिग्भ्रमित करने वाली फिल्में बनाई जाती हैं। उपर्युक्त फिल्मों का मक़सद मुसलमानों और इस्लाम को बदनाम करके अपने दोषों की पर्दापोशी है। इसी सिलसिले की एक कड़ी के तौर पर ‘हम दो हमारे बारह’ नामक नई फ़िल्म बनाई गई है। इस फ़िल्म का मक़सद मुस्लिम आबादी के बढ़ने का अनुचित डर दिलाना और मुस्लिम समाज में महिलाओं पर अत्याचारों दिखाकर इस्लाम और मुसलमानों को बदनाम करना है, लेकिन जब इन काल्पनिक घटनाओं से समाज की कटु सच्चाइयाँ टकराती हैं तो वह शीशा टूटकर चकना-चूर हो जाता है। जिस दिन ‘हमारे बारह’ का टीज़र रिलीज़ हुआ, उसी दिन सागर के अत्याचारों की दर्द-भरी दास्तान मीडिया पर छा गई और उसने रिलीज़ होने से पहले ही ‘हमारे बारह’ की हवा उखाड़ दी। यह क़ुदरत का इंसाफ़ है।
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