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आज का संस्करण

नई दिल्ली, 22 अप्रैल 2024

राजन चौधरी

An old person wearing glasses

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गर पालिका उद्यान में बैठे तीन मित्र बतिया रहे नथे। बातों का सिलसिला स्वदेशी-विदेशी पर चर्चा की ओर मुड़ गया।

 

विवेक ने कहा – 'हमारी स्वतंत्रता के बाद देश के लिये जो संविधान बना उस में लिखा गया- 'फार द पीपुल आफ इंडिया दैट इज भारत।' शब्द 'इंडिया' अपने देश के लिये पहले क्यों प्रयोग हुआ ? 'भारत' क्यों नहीं हुआ? यह भी विदेशी विचारधारा एवं मानसिकता का परिणाम है। आज भी हमारे खिलाड़ियों के गणवेश टीम के नाम, भवनों आदि पर इंडिया लिखा रहता है। ऐसा क्यों है?



लेख एक नज़र में

बुद्ध की कहानी से प्रारम्भ किए गए संवाद में, तीन मित्र ने अंग्रेजी भाषा और संस्कृति के बारे में चर्चा की।

विवेक ने पूछा कि स्वतंत्रता के बाद भारत के लिए लिखे गए संविधान में 'फार द पीपुल आफ इंडिया दैट इज भारत' शब्द क्यों हैं, जबकि 'भारत' हो सकता था। विनीत ने जवाब दिया कि यह विदेशी विचारधारा और मानसिकता का परिणाम है।

विकास ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद भी अंग्रेजी भाषा रोजगार से जुड़ी है, और अधिकांश प्रकरण में अंग्रेजी में होते हैं। विनीत ने भाषा संस्कृति की वाहिनी होने के बारे में भी बहस की।

विवेक ने कहा कि हिंदी चलचित्रों और दूरदर्शन में भी अंग्रेजी भाषा, वेशभूषा, जीवन शैली प्रस्तुत की जाती है। विनीत ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में दूरदर्शन का प्रभाव बहुत बुरा पड़ रहा है। विकास ने पूछा कि राष्ट्र प्रेम, राष्ट्र भाषा प्रेम कैसे बढ़ेगा। विनीत ने जवाब दिया कि अधिकांश लोग भारतीय दिनों, मासों, संवत् को भूल रहे हैं क्योंकि इनका प्रयोग घटता जा रहा है।



विकास- 'क्योंकि स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद भी अंग्रेजी रोजी-रोटी से जुड़ी भाषा है। प्रार्थना- पत्र, प्रमाण-पत्र, साक्षात्कार, अधिकाँश अंग्रेजी में होते हैं। कार्यालयों, न्यायपालिका में, विधान सभाओं, संसद में अंग्रेजी का वर्चस्व छाया रहता है। चुनाव के समय ही हमारे नेता हिन्दी और क्षेत्रीय भाषाओं का प्रयोग क्यों करते हैं? क्या ये बताने की जरूरत है?'

 

विनीत- 'लार्ड मॅकाले ने अंग्रेजी शासन की जड़ें जमाने एवं अंग्रेजियत फैलाने के लिये अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा प्रणाली प्रारंभ की थी। हमारा दुर्भाग्य है कि वह अब पहले से भी अधिक गति से चल रही है। तथाकथित स्वतंत्रता से पहले राष्ट्र प्रेम का जोश था, लोगों में होश था। सबसे प्राचीन और दुनिया की सबसे समृद्ध भाषा संस्कृत को राष्ट्र भाषा बनाने का प्रस्ताव दक्षिण भारत के नेताओं ने किया था किंतु वह मिस्टर ए.ओ. ह्यूम द्वारा प्रारंभ की गई कांग्रेस द्वारा नकार दिया गया। हिन्दी को भी पूरी तरह लागू करने के लिए नेहरू सरकार ने पंद्रह वर्ष का समय दिया जो आज तक समाप्त नहीं दिख रहा।'

 

विवेक- 'तुमने ठीक कहा। भाषा संस्कृति की वाहिनी होती है। इसीलिये इजरायल देश जब स्वतंत्र हुआ तो यहूदियों ने वहाँ अपनी भाषा हिब्रू को राष्ट्र भाषा बनाया यद्यपि वह मृत भाष- ओं में गिनी जाने लगी थी। गाँधीजी ने कहा था- 'मैं अंग्रेजी भाषा का विरोधी नहीं हूँ मैं अंग्रेजियत का विरोधी हूँ।' लेकिन आज हमारे देश में अंग्रेजी ही नहीं अंग्रेजियत भी पूरी तरह छाई हुई है।

 

विनीत - 'मैं तुमसे पूरी तरह सहमत हूँ। आज प्रायः हम जन्म दिन पर 'हैप्पी बर्थडे' कहकर बधाई देते हैं। केक में जलती हुई मोमबत्तियों को फूँक मारकर बुझाते हैं। जबकि ज्योति बुझाना हमारे यहाँ अशुभ माना जाता है। आज भी अनेक घरों में समाई में दीपक चौबीस घंटे प्रदीप्त रखे जाते हैं। अब तो पर्वों पर भी अंग्रेजी में बधाई दी जाती है। नागरी लिपि में छपे समाचार पत्र- पत्रिकाओं में अंग्रेजी शब्दों की भरमार रहती है।'

 

विकास- 'मैं मानता हूँ। प्रायः घरों में अभिवादन भी अंग्रेजी में होते हैं। खाने की चीजों, बर्तनों, वस्त्रों, सामानों आदि के नाम अंग्रेजी में लिये जाते हैं। बच्चे पहले नर्सरी में और बाद में अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों-विद्यालयों में पढ़ते हैं। उनका हिन्दी शब्द भण्डार घटता जाता है। किसी भी देश में काम-काज विदेशी भाषा में नहीं होता किंतु भारत में फिरंगी भाषा अंग्रेजी में होता है।'

 

विवेक- 'हिंदी चलचित्रों तथा दूरदर्शन के द्वारा भी प्रायः अंग्रेजी भाषा, वेशभूषा, जीवन शैली प्रस्तुत की जाती है। दूरदर्शन के हिंदी समाचार उद्घोषक टाई सूट में रहते हैं। भारतीय परिधान पहनने में हीनभावना अनुभव करते हैं। उनकी वेशभूषा भारतीय होनी चाहिए ताकि दूसरों को भी प्रेरणा मिले।

 

विनीत- 'मैं तो कहूँगा कि हिंदी चलचित्रों, दूरदर्शन का प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों में तो बहुत बुरा पड़ रहा है। वहाँ टाई सूट ही गौरवपूर्ण परिधान समझे जाने लगे हैं। मुझे एक महत्वपूर्ण घटना याद आ रही है। एक गाँव से बारात जा रही थी। बेटी वालों का गाँव निकट आ गया तो बाराती तरोताजा होने के लिये ठहरे। कुछ लघुशंका हेतु पास के खेतों में चले गये। दूल्हा टाई सूट में था। वह भी गया। लौटा तो उसकी कमर झुकी हुई थी। सब बड़े चिंतित हो गये। एक व्यक्ति साइकिल पर जा रहा था। उसने देखा। वह रुक गया। उसने कहा- 'दूल्हे को वायु लग गई है। मैं इसे ठीक कर सकता हूँ।' सब लोग खुश हो गये। इज्जत का मामला था। वह दूल्हे को खेत के पास ले गया। उसने पतलून का वह बटन जो कोट के काज में लगा हुआ था उसे खोल दिया। वह दूल्हे ने भूल से लगा दिया था। उसे ईनाम मिला। बारात आगे बढ़ी। ऐसा भी हो रहा है।'

 

विवेक- 'बहुत खूब। मैं दूरदर्शन पर एक हिंदी प्रतियोगिता देख रहा था। उसमें जीतने वालों को अंग्रेजी टोप (हैट) प्रदान किये जा रहे थे। ये भी हो रहा है।

 

विकास- 'बताइये इस प्रकार राष्ट्र प्रेम, राष्ट्र भाषा प्रेम कैसे बढ़ेगा?'

 

विनीत- 'अधिकांश लोग भारतीय दिनों, मासों,

 

संवत् को भूल रहे हैं क्योंकि इनका प्रयोग

 

घटता जा रहा है। दैनंदिनी- पंचाग का स्थान

 

अंग्रेजी डायरी -

 

कैलेंडर ने ले लिया है।

ममी-पापा, अंकल-आण्टी पुकारने में हम उन्नति-आधुनिकता समझने लगे हैं।

 

विवेक- 'अब अमेरिकन संबोधन मॉम-डैड भी प्रचलित हो रहे हैं। लोग अपनी भाषा अमेरिकन बनाने के लिए ही 'कर्ड' की जगह योगर्ट, 'पेट्रोल पंप' की जगह गैस स्टेशन आदि कहने लगे हैं। ऐसे सैकड़ों शब्द हैं।'

 

विकास- 'इस बात पर याद आया- अमेरिका में

 

दसवीं कक्षा को ग्रेजुएशन करना कहते हैं। दसवी तक वार्षिक परीक्षाओं के स्थान पर पूरे वर्ष प्रोजेक्ट-रिसर्च, प्रेजेंटेशन आदि को अधिक महत्व दिया जाता है। इससे छात्र आत्मनिर्भर बनते हैं। रहने को ही पर्याप्त नहीं समझा जाता। वहाँ अधिकांश लोग ऐसी ग्रेजुएशन तक शिक्षा निःशुल्क पाकर कारड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त करके नौकरी करने लगते हैं। कार, मकान लेकर माता-पिता से अलग रहने लगते हैं। उनका भाषा पर पूरा अधिकार और सामान्य ज्ञान का बहुत विकास हो जाता है। कम लोग विश्वविद्यालयों में जाते हैं। वहाँ दूसरे देशों के लोग अधिक पढ़ते हैं।

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