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आज का संस्करण

नई दिल्ली, 23 फरवरी 2024

अनूप श्रीवास्तव

A person with glasses and a blue shirt

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एक किश्त मंत्री:एक किश्त भत्ता !

लदल में पूछते हैं क्या हुआ,

हर   तरफ  है   हुक्की -  हुआ

राजनीति तो है बस अंधा कुँआ

चुप गुमसुम है लोकतंत्र का सुआ

 

नेता    है     पीट     रहे       मत्था,

पकड़े   हैं   महंगाई   का     हत्था.

एक   पे   वोट   दूजे   पर   खत्ता,

एक किश्त मंत्री,एक किश्त भत्ता.

 

पता  है  हर  एक   को  राई   रत्ता,

कहाँ  पे   खाई,  कहाँ   पे    खत्ता.

वादे      पुराने   हुए    ऐसे     लत्ता,

झरते   हैं   जैसे    हवा     में   पत्ता.

 

सोचते हैं पढ़ लिख के क्या हुआ

हर   तरफ  है  नैकरी  का जुआ.

बेरोजगारी भत्ता  भी सपना हुआ,

खोदिये अब यहां घर घर मे  कुआं.

 

लीडरों को  अब पाठ  पढ़ाने लगी  जनता,

नेताओं की  तरह  रूप  दिखाने लगी जनता

जो मुल्क के सवाल करे हल वही लीडर

इस बात को उद्देश्य बनाने लगी जनता.

(शब्द  135)

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