इस देश मे गधों की कमी नहीं है बल्कि गधों की भरमार है। इसी लिए गधापन सर्वव्यापी है। आप को कदम कदम पर गधापन मिलेगा। ऐसा गधापन की आप अपना गधापन भूल जाएंगे। जिधर भी जाएंगे गधापन नजर आएगा। हर क्षेत्र में गधेपन की लक्ष्मण रेखा खिंची हुई है।
आपको पढ़ने और समझने की गलती न हो ,इसलिए प्रारम्भ में ही यह साफ कर देना चाहता हूँ कि मै किसी गधे को प्रणाम नही कर रहा हूँ। गधे को तो मैं पूज्य और आदरणीय प्राणी मानता हूँ लेकिन गधेपन के सख्त खिलाफ हूँ। इसके बावजूद मैं गधेपन को प्रणाम करना अपना कर्तव्य और दायित्व मानता हूँ। इसलिए नहीं कि इंसानों की दो टांगो की तुलना में उसकी चार टांगे हैं और वह इंसानों से श्रेष्ठ प्राणी है,बल्कि अपनी दो अतिरिक्त टांगों से इंसानों को टंगड़ी या दुलत्ती मार कर गिरा भी सकता है। ये दो टांगे उसे लोकतंत्र ने प्रदान की है।
चुनाव जीत कर जो भी जनप्रतिनिधि बनता है उसके अधिकार में दो अतिरिक्त (प्रशासनिक अधिकार वाली) टांगे जुड़ जाती हैं। ये टांगे सामान्य लोगों की तुलना में बहुत अधिक टँगड़ी मारने वाली होती हैं। देश की पुलिस बल इन्ही टांगो के बल पर लतियाया जाता है। क्या मजाल खाकी कानून का कवच ओढ़ सके। इधर उसने कोशिश की कि उधर पड़ी दुलत्ती और वह ताकत रिरियाने पर मजबूर हो जाती है। यही खाकी पर खादी की विजय है।
लेख एक नज़र में
इस देश में गधों की कमी नहीं है, बल्कि गधापन हर जगह फैला हुआ है। लेख में यह स्पष्ट किया गया है कि गधापन केवल जानवरों से संबंधित नहीं है, बल्कि यह राजनीति, सिनेमा और साहित्य में भी मौजूद है। लेखक गधों को आदरणीय मानते हैं, लेकिन गधेपन के खिलाफ हैं। वे बताते हैं कि राजनीतिक जनप्रतिनिधियों को अतिरिक्त अधिकार मिलते हैं, जो उन्हें कानून तोड़ने की छूट देते हैं।
लेख में यह सवाल उठाया गया है कि क्या कानून का पालन करना संविधान का कर्तव्य है या निर्वाचित प्रतिनिधियों की रक्षा करना। लेखक गधेपन को प्रणाम करते हैं क्योंकि यह समाज में गहराई से व्याप्त है। वे साहित्य में भी गधेपन की मौजूदगी की चर्चा करते हैं, जहां कलात्मकता अधिक महत्वपूर्ण होती है। अंत में, लेखक सलाह देते हैं कि हमें गधेपन को प्रणाम करते हुए उससे दूर रहना चाहिए, ताकि हम दुलत्तियों से बच सकें।
अब सवाल यह उठता है कि कानून क्या है वह सविधान,जो मूल विधि है, का चाकर है। यानी वह संविधान के लाखों,करोड़ों प्राविधानों की रक्षा करता है।इसके बावजूद वह उन लोगों की भी रक्षा करने को विवश है जो गाहे बिगाहे कानून तोड़ने हैं,लेकिन निर्वाचित जनप्रतिनिधि है।ऐसे में वह किसकी रक्षा करे? संविधान की या निर्वाचित जन प्रतिनिधि की। यह बड़ा पेचीदा सवाल है। आज तक इस सवाल का कोई सटीक उत्तर न तो समाज दे पाया है ,नही सरकार और न सुप्रीम अदालत।इसी को कहते हैं , गधापन और मैं इसी गधापन को एक बार फिर प्रणाम करता हूँ।
मित्रो!मुझे माफ़ करना।न माफ करना तो गरियाना। लेकिन इस सवाल पर गौर जरूर करना कि गधेपन की इस देश मे इतनी मान्यता क्यों है।
गधापन सिर्फ राजनीति में ही नहीं है। हॉलीबुड, बॉलीबुड और साहित्य में भी है। ऐसा नही होता तो 'फ्रेम टु प्रेम' अंग्रेजी फ़िल्म की नकल बॉलीबुड में क्यों होती। चूंकि हो रही है इसलिए मैं गधों को नहीं उनके गधेपन को प्रणाम करता हूँ। आप सबसे भी यही निवेदन करता हूँ कि इसे प्रणाम करें क्योंकि इसी में हमारा और आपका भविष्य सुरक्षित है। हमारे लोकतंत्र का भविष्य भी इसी में सुरक्षित है क्योंकि हमारे संविधान का अधिकांश गवर्मेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 से ही लिया गया है।
दोस्तों !मै कोई राष्ट्रद्रोही या जिहादी नहीं हूँ।मैं भी मदन मोहन मॉलवीय और नेहरू जैसा देशभक्त हूँ।मगर यह देश मेरी समझ से बाहर होता जा रहा है। पश्चिम में देखता हूँ तो एक लहर है। दक्षिण में देखता हूँ तो दूसरी लहर है। उड़ीसा में देखता हूँ तो लहर नहीं तूफान है। पूर्वोत्तर में देखता हूँ तो हर राज्य में राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा बने हुए हैं। यानी हर तरफ गधेपन की सीपों- सीपों सुनाई दे रही है। अगर कोई आपसे पूछे गर्दभ श्रीमान !अगर आप वाकई स्वतंत्र हो गए तो कहाँ कौन सा तीर मारोगे? सरकार में बैठे नौकरशाहों ने दुलत्ती लगा दी तो कहाँ जाकर गिरोगे?इन सवालों का जवाब गधेपन के अलावा और क्या होगा। इसलिए मैं पूर्वोत्तर गधेपन को भी प्रणाम करता हूँ ।
सबसे अधिक मैं साहित्यिक गधेपन का आभारी हूँ। कविता, कहानी। नाटक और आधुनिक उपन्यासों में जो कलात्मक गधापन दृष्टिगोचर होने लगा है,उसके प्रति मैं नतमस्तक हूँ। कहानी में कहानी कम है शिल्प उसके सीने पर सवार है। उपन्यास में न्यास कम विन्यास अधिक हैं। कविता में कविता से अधिक वक्तव्य है। कुछ कहूँ तो कवि जूता लेकर पिल पड़ेंगे। इसलिए चुप रहना बेहतर। गधेपन को दूर से साष्टांग प्रणाम करना बेहतर।
दुलत्तियों से बचने का एक मात्र उपाय यही है कि आप गधेपन को प्रणाम करते हुए,उससे दस फिट दूर रहकर चलें भले ही सड़क गड्ढा युक्त क्यों न हो । मगर विकास हो रहा है या कहीं अटका हुआ है इस बारे में मुंह न खोलें।कुछ न कहें। वरना उसकी दुलत्ती आप बर्दाश्त नही कर पाएंगे। गधे पन की भी लक्ष्मण रेखा होती है। इस सच को न भूलें। गधे को नही , सिर्फ गधेपन को प्रणाम करें।
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