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डॉ. सलमान अरशद

 

नई दिल्ली | गुरुवार | 22 अगस्त 2024

मोदी सरकार और आरएसएस हमेशा भारतीय संस्कृति और उसकी रक्षा की बात करते हैं, लेकिन सच्चाई इससे कोसों दूर है। जिस देश में संस्कृति की बात की जाती है, वहां मासूम बच्चियों के साथ दिन-प्रतिदिन होने वाले बलात्कार की घटनाएं सरकार और समाज की नाकामी को दर्शाती हैं। यह कैसी संस्कृति की रक्षा की जा रही है, जब बच्चियों की चीखें सुनने वाला कोई नहीं है? सरकार और संगठन सिर्फ भाषणों और नारों तक सीमित हैं, लेकिन जमीनी हकीकत बिल्कुल अलग है। मासूमों के साथ बढ़ते अत्याचारों पर चुप्पी साधने वाले ये नेता किस संस्कृति की बात कर रहे हैं?

देश में हर दिन महिलाएं और बच्चियां असुरक्षित हैं, और इसके बावजूद मोदी सरकार और आरएसएस अपने तथाकथित संस्कृति रक्षा के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं। अगर यही भारतीय संस्कृति की रक्षा है, तो इसका मतलब सिर्फ खोखले दावे और असल समस्याओं से आंखें मूंद लेना है। बलात्कार की घटनाएं हमारे समाज और सरकार के विफल होने का स्पष्ट उदाहरण हैं। यह सरकार अगर सच में संस्कृति की रक्षा करना चाहती है, तो सबसे पहले उसे इन घिनौने अपराधों को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने होंगे, वरना 'संस्कृति' शब्द केवल एक दिखावा बनकर रह जाएगा।

कोलकाता में हुई हालिया बलात्कार की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। एक मासूम लड़की के साथ जो बर्बरता हुई, उसने मानवता को शर्मसार कर दिया है। उस मासूम की चीखें आज भी हमारे कानों में गूंजती हैं, जो अपनी अस्मिता और जीवन के लिए लड़ती रही। लेकिन उन दरिंदों ने उसकी आवाज को बेरहमी से दबा दिया। इस जघन्य कृत्य ने न केवल उसकी अस्मिता को रौंदा, बल्कि हमारी इंसानियत को भी तार-तार कर दिया है। यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर हमारे समाज में ऐसे अमानवीय अपराध कब तक होते रहेंगे?

 

लेख एक नज़र में
 
भारत में बलात्कार की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। मोदी सरकार और आरएसएस संस्कृति की रक्षा की बात करते हैं, लेकिन सच्चाई इससे कोसों दूर है।

देश में हर दिन महिलाएं और बच्चियां असुरक्षित हैं, और इसके बावजूद सरकार और संगठन अपने तथाकथित संस्कृति रक्षा के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं।

बलात्कार की घटनाएं हमारे समाज और सरकार के विफल होने का स्पष्ट उदाहरण हैं। हमें एक नई सोच और एक मजबूत कदम की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में किसी भी महिला को इस तरह के भयावह अनुभव का सामना न करना पड़े।

 

अलिगढ़ में पिछले साल एक दलित लड़की के साथ हुए दुष्कर्म की घटना ने समाज को हिला कर रख दिया। उस नासमझ लड़की को बलात्कार का शिकार बनाया गया और इसके बाद पुलिस ने उसके शव को जला दिया, जिससे उसकी जघन्यता और भी बढ़ गई। यह घटना न केवल मानवता के लिए एक गहरा धक्का थी, बल्कि यह भी दर्शाती है कि हमारे समाज में अभी भी कितनी बड़ी दरिंदगी और अन्याय मौजूद है। इस अमानवीय कृत्य ने पूरे देश को झकझोर दिया और न्याय की मांग को लेकर सड़कों पर उतरने पर मजबूर कर दिया। यह दर्दनाक घटना एक कड़ा संदेश देती है कि दलितों के खिलाफ हिंसा और अत्याचार को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। समाज और सरकार को चाहिए कि वे सख्त कदम उठाएं और सुनिश्चित करें कि ऐसा अन्याय फिर कभी न हो।

ऐसी ही एक दर्दनाक घटना 2012 में हुई थी, जिसे हम सभी ‘दामिनी कांड’(निर्भया)  के नाम से जानते हैं। उस रात एक मासूम लड़की के साथ दरिंदों ने हैवानियत की सारी हदें पार कर दी थीं। उसकी चीखें आज भी हमारी आत्मा को झकझोरती हैं, जब वह अपनी इज्जत और जिंदगी के लिए उन दरिंदों से लड़ती रही। वह घटना पूरे देश के लिए एक सबक थी, एक चेतावनी कि हम कब तक चुप बैठे रहेंगे? दामिनी का संघर्ष और उसका बलिदान आज भी हमें याद दिलाता है कि हमें ऐसे अपराधों के खिलाफ खड़ा होना होगा।

लेकिन भारत में सिर्फ भारतीय महिलाएँ ही नहीं, विदेशी महिलाएँ भी सुरक्षित नहीं हैं। झारखंड के दुमका जिले में एक विदेशी महिला के साथ 7 दरिंदों ने सामूहिक बलात्कार किया। यह महिला अपने पति के साथ बाइक से दुनिया की यात्रा कर रही थी। उनका ताल्लुक स्पेन से था, और इस यात्रा के दौरान वे अपने अनुभव सोशल मीडिया पर साझा करती थीं। लेकिन उनके टेंट में आराम के दौरान उन पर हमला किया गया और चाकू की नोक पर उनकी इज्जत को तार-तार कर दिया गया। यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारा देश अब बलात्कार की घटनाओं के लिए कुख्यात हो चुका है?

हर दिन देशभर में बलात्कार के लगभग 90 मामले दर्ज होते हैं। यानी हर 18 मिनट में एक महिला इस भयावह अपराध का शिकार बनती है। यह आंकड़ा 2022 का है, लेकिन आज यह और भी बढ़ चुका है। और यह तो केवल वे मामले हैं जो दर्ज होते हैं; असल में ऐसे कई मामले हैं जो अपमान और डर के कारण दर्ज ही नहीं हो पाते। अगर सभी मामले दर्ज किए जाएं, तो यह संख्या सैकड़ों में पहुंच जाएगी।

 

ऐसी घटनाएँ तब और गंभीर हो जाती हैं जब यह किसी विदेशी महिला के साथ होती हैं, क्योंकि तब प्रशासन, मीडिया, और समाज की नींद कुछ समय के लिए खुल जाती है। लेकिन जब हमारे देश की बेटियाँ इस प्रकार के अपराधों का शिकार होती हैं, तो उन्हें न्याय के लिए वर्षों संघर्ष करना पड़ता है। फर्नांडा के मामले में भी ऐसा ही हुआ; हालांकि कुछ आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है, लेकिन क्या यह पर्याप्त है?

बलात्कार एक सामाजिक और सांस्कृतिक समस्या बन चुकी है। हमारे देश में दलित और आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएँ सदियों से होती आ रही हैं। आज़ादी के बाद भी इस समस्या पर पूरी तरह से काबू नहीं पाया जा सका है। मणिपुर की घटनाओं को कौन भूल सकता है, जहाँ महिलाओं के साथ खुलेआम बलात्कार किया गया और उन्हें नग्न घुमाया गया। ऐसी घटनाएँ हमारी न्याय व्यवस्था और प्रशासन की विफलता को उजागर करती हैं।

आज के समय में जब बलात्कार जैसे घृणित अपराध इस स्तर पर हो रहे हैं, तो हमें धर्म, संस्कृति, नैतिकता और कानून की गहराई से समीक्षा करने की आवश्यकता है। कोई पुरुष जन्म से बलात्कारी नहीं होता; वह इसी समाज में पला-बढ़ा होता है, और समाज के ताने-बाने में मौजूद विकृतियाँ उसे इस कदर अपराधी बना देती हैं।

हमारे समाज में जब एक विदेशी महिला के साथ बलात्कार होता है, तो प्रशासन जाग जाता है क्योंकि इसका संबंध देश की प्रतिष्ठा से होता है। लेकिन जब देश की बेटियाँ इस तरह के अपराधों का शिकार होती हैं, तो उन्हें न्याय पाने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ता है। हमें इस स्थिति को बदलने के लिए एक व्यापक सामाजिक सुधार की आवश्यकता है।

बलात्कार के मामलों में सिर्फ दरिंदों को सजा देना काफी नहीं है। हमें समाज के हर वर्ग को, चाहे वह प्रशासन हो, न्याय व्यवस्था हो, या हम सभी आम नागरिक, हमें इस लड़ाई में शामिल होना होगा। तभी हम इस घिनौने अपराध से अपने समाज को मुक्त कर पाएंगे और भविष्य में किसी बेटी को यह दर्द सहना नहीं पड़ेगा।

यह केवल एक घटना की बात नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज की गहरी जड़ों में बसी विकृति की ओर संकेत करती है। हमें एक नई सोच और एक मजबूत कदम की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में किसी भी महिला को इस तरह के भयावह अनुभव का सामना न करना पड़े।

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