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डॉ दरवेश सिंह

 

नई दिल्ली,11 जून 2024

आज सूचना क्रांति का युग है।  अब संसार को एक" विश्व गांव" (ग्लोबल विलेज) माना जाता है जहा हजारों मील दूर की बात आधुनिकतम संचार साधनों द्वारा तुरंत पहुँच जाती है रेडियो और टीवी द्वारा हम घर में बैठे बैठे संसार का सारा हाल जान जाते है।

पर आजकल की फ़िल्में और दूरदर्शन की बातें मानवीय प्रदूषण को फैलाने का भी कारण है गाँधीजी ने कहा था कि यदि सुखी रहना चाहते हो तो अपनी जरूरतों को कम करो लेकिन रेडियो और दूरदर्शन जरूरतों की भूख बढने वाले टॉनिक का काम कर रहे हैं नित्यप्रति नयी नयी विलासिता बढ़ाने वाली वस्तुओं का निर्माण और फिर उनका धुआंधार विज्ञापन किसी अच्छे प्रोग्राम को देखने से पहले जब तक बंद नहीं किया जाता जब तक की आदमी अपना सिर दीवार में ना दे मारे 5 मिनट के विज्ञापन पर जितना रुपया हवा में उड़ाया जाता है उतना रुपया किसी मध्यम वर्ग के व्यक्ति ने पूरे जीवन में नहीं देखा होगा वहाँ एक टॉफी की ललक में लड़की पटाई जाती है, एक पान पराग के पैकेट में दहेज समाप्त हो जाता है, एक बिस्कुट खा कर पहलवान बना दिया जाता है, साबुन से नहाकर कपिल देव जैसे खिलाड़ी बन जाते हैं, क्रीम पोडर पोतकर हीरो हीरोइन बन जाते हैं, ईश्वर के गुण गाने की बात को मारिये गोली अब यूनाइटेड के गुण गांव संसार से तर जाओगे

 

लेख एक नज़र में

 

आज के युग में सूचना क्रांति ने संसार को एक "विश्व गांव" बना दिया है। लेकिन इस क्रांति ने मानवीय प्रदूषण को फैलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। टीवी और रेडियो के माध्यम से हमें संसार का सारा हाल मिल जाता है, लेकिन इनमें दिखाए जाने वाले विज्ञापन हमारी जरूरतों की भूख बढ़ाने वाले टॉनिक का काम कर रहे हैं। इन विज्ञापनों ने हमारे समाज में असंतोष, जलन, कुढ़न, फिजूलखर्ची और बर्बादी को बढ़ावा दिया है। हमें इस मानवीय प्रदूषण को रोकने के लिए कलम क्रांति से हृदय परिवर्तन करने की आवश्यकता है

 

 

भोले भाले और सादा जीवन बिताकर प्रसन्न रहने वाले गांवों की स्त्री पुरुषों में भी इन विज्ञापन की मोहक भाषा ने तृष्णाओं इच्छाओ वासनाओं की ऐसी भूख पैदा की है कि चाहे खाने को अनाज न हो इस पर रंगरोगन पाउडर लिपस्टिक और फैंसी कपड़े आवश्यक चाहिए घर में नहीं है दाने अम्मा चली भुनाने इसका परिणाम होता है असंतोष, जलन, कुढ़न , फिजूलखर्ची और बर्बादी निरोध मालाडी सहेली आदि नाना पाकर के गर्भनिरोधक उपकरणों का इतने धड़ल्ले से विज्ञापन भी वैवाहिक दंपतियों से अधिक इसके इस्तेमाल की कमान अविवाहित किशोर किशोरियों मैं जग जाती है और इस कामना को हवा देते हैं पूरा मुँह फाड़ कर लाउडस्पीकरों में बजने वाले ऐसे प्रेरक फिल्मी गाने की चोली के नीचे क्या है चुनरी के पीछे क्या है फिर तो घात लगाकर नीचे और पीछे देखना शुरू हो जाता है इन सब कारणों से जनसंख्या तो नहीं रुक पाई भ्रष्टाचार चौगुना बढ़ गया है सादा जीवन उच्च विचार वाली  अब उलटफेर ऊंचा जीवन नीचे विचार बन गई है

छोटे छोटे अबोध बच्चे जिन पर अभी ठीक से वर्णमाला भी नहीं आती वे भी अश्लील फिल्मी गानों के वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुए गलियां में, सड़कों पर, घरों में, आंख मिचकाते ,सेन चलाते, कुल्ले मटकाते, दिशुम दिशुम करते, फिल्मी अंदाज में कैश विन्यास वेशभूषा और चाल चलगत के नए तेवर लिए आपको ढेंगा दिखाकर निकल जाएंगेl  यह कौन सी सभ्यता और संस्कृति का उन्नयन है

चारों ओर यहाँ निषेध धूम्रपान निषेध आदि के नारे और विज्ञापन भी है और दूसरी ओर करोड़ों के शराबों के ठेके और बीड़ी सिगरेट, सुर्ती , खैनी आदि फैक्ट्रीयों को घूस ले लेकर लाइसेंस भी दिया जा रहा है हद हो गई पर्यावरण सुधार की नशीली ड्रग्स खिला खिलाकर नौजवानों को जीते जी मार देना अबोध बालक बस बालिकाओं के अपहरण कर उन्हें भीख चोरी वेश्यावृत्ति और इसमें लेगिंग कराना आतंक और उग्रवाद को बढ़ावा देने के लिए शास्त्रों का प्रशिक्षण देकर देशद्रोह की भावना पैदा करना विश्व के किस प्रदूषण से कम है वर्षा की कटान से सभी अधिक यहाँ सच्चाई ईमानदारी नी ति न्याय ओर सद्विचार काटे जा रहे हैं वायु प्रदूषण के विश्व से भी अधिक यहाँ छल छदम और अफवाहों से समाज में पथभ्रष्ट आ का जहर फैलाया जा रहा है ध्वनि परदुषण से भी अधिक इस देश में मसीहा यहाँ भय आतंक फुट और संप्रदायिकता बढ़ाने वाले भाषणों और बयानों से मानवता को बाहरी बनाने बनाएँ दे रहे हैं इस मानवीय प्रदूषण को रोकने के लिए कलम क्रांति से हृदय परिवर्तन करने की आवश्यकता है और यह काम राजनीति से अलग होकर सत्य और न्याय के पद पर चलने वाले देशभक्त पत्रकार भाई और कलम के वीर सिपाहियों कर सकते हैं अन्यथा वही हाल होगा जैसा कि किसी वंदिनी कवि ने कहा है

कल ही बेच देंगे चमन बेच देंगे जमीन बेच देंगे गगन बेच देंगे कमल के सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे

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