क्यों सखि बनता ,ना सखि जनता!
छन्न पकैया छन्न पकैया
उड़ती जिनके दम कनकइया
लेकिन उसको कभी न गिनता
क्या सखि बनिता , न सखि जनता.
बिना खेल हो खेल दिखावे
ताली सबसे फिर बजवावे
पास न रोकड़ कहे कलन्त्री
क्या सखि तन्त्री , ना सखि मंत्री.
उल्टी चक्की रोज चलावे
उलटफेर पर खुशी मनावे
मौका लगते यस सर! यस सर!
क्या सखि चमचे , ना सखि अफसर.
मांग जांच कर काम चलावे
मूंद तान के विपदा गावे
उलटफेर पर बदले आसन
क्या सखि संसद , ना सखि शासन.
टीन बजाकर कहते खाली
जमा खर्च पर रोकड़ वाली
भूजीं भांग ना फिर भी टाटा
क्या सखि आटा , ना सखि चाटा.
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