कंगना राणावत की तरक़्क़ी हो गई है। वह अब न सिर्फ़ सांसद हैं, बल्कि अभिनय से आगे बढ़कर उन्होंने लेखन और निर्देशन की दुनिया में भी क़दम रख दिया है। लगातार फ़्लॉप-पर-फ़्लॉप फ़िल्म देनेवाली कंगना राणावत को जब दूसरों ने अपनी फ़िल्म में लेना छोड़ दिया तो उन्होंने प्रधानमंत्री के आशीर्वाद से फ़िल्म निर्माण के मैदान में क़दम रखा और ख़र्च बचाने के लिए ख़ुद ही फ़िल्म को लिखकर उसकी डॉयरेक्टर भी बन गईं। उन्होंने यह सोचकर ‘इमरजेंसी’ पर फ़िल्म बनाई कि सारे भक्त मिलकर उसे सुपर-डुपर हिट कर देंगे, लेकिन हाय अफ़सोस! मोदी सरकार के इशारों पर काम करनेवाला सेंसर बोर्ड ही उसकी रिलीज़ में रुकावट बन गया यानी ‘जिन पे तकिया था वही पत्ते हवा देने लगे’। कंगना ने यह फ़िल्म ग़लत वक़्त में बनाई। वह अगर उसको बनाने के लिए राहुल के सत्ता में आने का इंतिज़ार करतीं और काँग्रेस इसे रोकने की बेवक़ूफ़ी करती तो पूरा संघ परिवार उनके समर्थन में हाथ बाँधे खड़ा हो जाता और तब कोई आश्चर्य नहीं कि फ़िल्म सुपर हिट हो जाती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
कंगना राणावत की इस फ़िल्म ने ख़ुद मोदी सरकार के लिए समस्याएँ खड़ी कर दी हैं। इसको रोकने का सीधा मतलब यह है कि मोदी सरकार डर गई है। कंगना की ‘इमरजेंसी’ ने प्रधानमंत्री को इंदिरा गाँधीवाली ‘इमरजेंसी’ की याद दिला दी, जिसमें उन्होंने गिरफ़्तार होने के बजाय अंडर ग्राउंड होना पसंद किया था। यह कैसा डर है जो प्रधानमंत्री बन जाने के बाद भी नहीं जाता, बल्कि सत्ता छिन जाने के ख़ौफ़ से बढ़ जाता है? इस हक़ीक़त को साफ़ तौर से स्वीकार करते हुए कंगना कहती हैं कि— “सेंसर बोर्ड ने अभी तक मेरी फ़िल्म ‘इमरजेंसी’ को रिलीज़ का सर्टीफ़िकेट नहीं दिया।” कंगना राणावत ने सोशल मीडिया पर ‘वायरल’ अफ़वाहों का खंडन करते हुए कहा कि फ़िल्म के कुछ दृश्यों की वजह से सेंसर बोर्ड के सदस्यों को जान से मारने की धमकियाँ मिल रही हैं। सवाल यह है कि मोदी सरकार के होते हुए सेंसर बोर्ड अपने आपको असुरक्षित क्यों महसूस कर रहा है? अमित शाह उन्हें सुरक्षा प्रदान करने में नाकाम क्यों हैं?
सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ फ़िल्म सर्टिफ़िकेशन (सीबीएफ़सी) के डरे हुए होने का एलान करते हुए कंगना बोलीं कि— “उसने फ़िल्म की रिलीज़ का सर्टिफ़िकेट रोक दिया और अब फ़िल्म से इंदिरा गाँधी के क़त्ल और पंजाब के दंगों के दृश्य निकालने के लिए दबाव डाला जा रहा है।” ज़ाहिर है सेंसर बोर्ड यह दुस्साहस सरकार के इशारे पर ही कर रहा होगा, क्योंकि मोदी सरकार ने हर सरकारी संस्था की आज़ादी पूरी तरह छीन रखी है। इसपर दुख व्यक्त करते हुए कंगना कहती हैं कि— “अगर हम फ़िल्म से ये दृश्य ही निकाल देंगे तो क्या दिखाएँगे? मुझे भारत के चंद लोगों की सोच पर अफ़सोस है।”
सवाल यह है कि वे लोग कौन हैं? डरानेवाले, डरनेवाले या दोनों? यह तो सीधे-सीधे ख़ुद अपनी ही सरकार की कटु आलोचना है। कंगना ने फ़िल्म के पर्दे पर इंदिरा गाँधी बनने की कोशिश की, मगर हक़ीक़त में नाकाम स्मृति ईरानी बन गईं जिनको फ़िलहाल कोई पूछनेवाला नहीं है और ख़ुद को ख़बरों में रखने की ख़ातिर वह राहुल गाँधी की तारीफ़ के पुल बाँधने पर मजबूर हो गई हैं। स्मृति और कंगना की मीडिया लड़ाई ने सास-बहू की तरह अमित शाह और मोदी की नाक में दम कर रखा है। इन लोगों की समझ में नहीं आता कि इनका करें क्या?
कंगना ने अपनी ‘इमरजेंसी’ की तुलना हालीवुड फ़िल्म ‘ओपन हाइमर’ (Oppenheimer) से करते हुए जब कहा इसमें मैकबेथ का बादशाह बनना मुक़द्दर है, और ख़ंजर उसके पीछे आता है जब वह बादशाह को मार कर बादशाह बन जाता है। उसका ज़मीर उसे सताता है......फ़िल्म ‘इमरजेंसी’ का मुख्य आइडिया यह है कि हममें से बेहतरीन लोग भी घमंड का शिकार हो सकते हैं। ये जुमले इंदिरा गांधी पर फ़िट नहीं बैठते, जिनको कंगना ने ‘बेहतरीन’ लोग कहा। क्योंकि उन्होंने तो किसी की पीठ में ख़ंजर नहीं घोंपा था, बल्कि उन्हें पढ़ते हुए मोदी , आडवाणी और मार्गदर्शक मंडल के नज़्ज़ारे सामने आ जाते हैं। कंगना राणावत झुँझलाहट का शिकार होकर अपनी पार्टी और सरकार दोनों की अनजाने में नाराज़ी मोल ले रही हैं जो उन्हें महंगी पड़ेगी। अपनी बदज़बानी के लिए मशहूर कंगना राणावत ने जब उद्धव ठाकरे को बुरा-भला कहा था तो बीजेपी की चुनावी नज़र उनपर पड़ी। इसके बाद जब ख़ुद नशीले पदार्थों के सेवन को स्वीकार करनेवाली कंगना ने सदन में राहुल पर नशाख़ोरी का इल्ज़ाम लगाकर उनके नारको टेस्ट की माँग की तो संघियों की आँखों का तारा बन गईं, मगर फिर जाति आधारित जनगणना का विरोध और किसान आन्दोलन पर बे-बुनियाद आरोप लगाकर पार्टी के लिए धरम-संकट खड़ा दिया।
कंगना ने एक अख़बार को इंटरव्यू देते हुए कह दिया कि पंजाब में किसानों के आन्दोलन के नाम पर शरारती तत्व हिंसा फैला रहे हैं और वहाँ बलात्कार और क़त्ल हो रहे हैं। राणावत ने यह भी कहा था कि अगर बीजेपी का उच्च नेतृत्व मज़बूत न रहता तो किसानों के आन्दोलन के दौरान पंजाब बंगला देश में परिवर्तित हो चुका होता। उन्होंने कहा था कि तीन विवादित कृषि विधेयक वापस ले लिए गए, वर्ना ‘इन शरारती तत्वों’ की बहुत लम्बी योजना थी और वह देश में कुछ भी कर सकते थे। इस तरह की बदज़बानी से परेशान होकर बीजेपी ने तो पहले किसानों पर बयान से पल्ला झाड़ा और फिर पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अपने दफ़्तर बुलाकर फटकार भी लगाई। लोकसभा चुनावों में सफलता के बाद कंगना राणावत को पहला यादगार तोहफ़ा चंडीगढ़ हवाई अड्डे पर मिला था। वहाँ पर सीआईएसएफ़ की महिला पुलिसकर्मी ने अभिनेत्री और राजनेत्री कंगना राणावत पर थप्पड़ जड़ दिया। महिला पुलिसकर्मी कुलविंदर कौर की ओर से पंजाब में किसानों के ख़िलाफ़ बयान देने पर अभिनेत्री को थप्पड़ रसीद किया गया था, क्योंकि उनकी माँ भी किसान आन्दोलन में शामिल थीं। कंगना ने अगर इस थप्पड़ से सबक़ सीखकर अपनी ज़बान को लगाम लगाई होती तो जेपी नड्डा से डाँट खाने की नौबत नहीं आती।
थप्पड़वाली वीडियो जब सोशल मीडिया पर जंगल में आग की तरह फैलने लगी तो कई बॉलीवुड सितारों ने कंगना के पक्ष में बयानात दिए, मगर जाने-माने गायक विशाल ददलानी ने निलम्बित महिला पुलिस कर्मी का समर्थन करके सबको चौंका दिया। उन्होंने इंस्टाग्राम पर लिखा कि मैं कभी भी हिंसा का समर्थक नहीं हूँ, मगर सीआईएसएफ़ की महिला पुलिस कर्मी का ग़ुस्सा समझ सकता हूँ। ददलानी ने विश्वास दिलाया कि अगर महिला पुलिस कर्मी के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई की गई तो वह उसे एक और नौकरी की पेशकश करेंगे। इस घटना के बाद ठीक हरियाणा चुनावों से पहले जब कंगना राणावत ने किसान आन्दोलन के दौरान बलात्कार और क़त्लो-ग़ारतगरी के बे-बुनियाद आरोप लगाए तो विपक्ष को बेहतरीन मौक़ा मिल गया और संयुक्त किसान मोर्चा सहित काँग्रेस, आम आदमी पार्टी तथा अन्य पार्टियाँ कंगना के बयान की आड़ में बीजेपी पर हमलावर हो गईं । काँग्रेस ने कहा कि अगर बीजेपी अपनी सांसद की टिप्पणियों से सहमत नहीं है तो उसे पार्टी से निकाल बाहर करे। मल्लिकार्जुन खड़गे ने बयान दिया कि किसानों से किए गए वादों को पूरा करने में नाकाम मोदी सरकार की प्रोपेगंडा मशीनरी लगातार उनका अपमान करने में लगी है।
राहुल गाँधी ने एक्स पर लिखा, “बीजेपी की सांसद का 378 दिन के मैराथन संघर्ष के दौरान 700 साथियों की क़ुर्बानी देनेवाले किसानों को बलात्कारी और विदेशी शक्तियों का हथियार कहना बीजेपी की किसान विरोधी नीति और नीयत का एक और सुबूत है। यह शर्मनाक किसान विरोधी बयान पश्चिमी उतर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब सहित पूरे देश के किसानों का घोर अपमान है, जिसे किसी भी हाल में क़ुबूल नहीं किया जा सकता।” उन्होंने याद दिलाया कि, “किसानों के आन्दोलन की वापसी के वक़्त जो सरकारी समिति बनाई गई थी वह अभी तक ठंडे बस्ते में है, सरकार आज तक एमएसपी पर अपना पक्ष स्पष्ट नहीं कर सकी, शहीद किसानों के परिजनों को कोई राहत नहीं दी गई और उनका चरित्रहनन जारी है। किसानों की बेइज़्ज़ती और उनकी प्रतिष्ठा पर हमला करके मोदी सरकार का किसानों के साथ धोखा छिपाया नहीं जा सकता। नरेंद्र मोदी और बीजेपी कितनी ही साज़िशें करें ‘इंडिया’ किसानों को एमएसपी की क़ानूनी ज़मानत दिलवाकर रहेगा।”
इस तरह कंगना राणावत ने विपक्ष का बहुत बड़ा फ़ायदा कर दिया है। अब पूरा सिख समाज ‘इमरजेंसी’ फ़िल्म के ख़िलाफ़ युद्धरत हो गया है और जो फ़िल्म 24 नवंबर 2023 ई॰ को रिलीज़ होनेवाली थी वो 6 सितंबर 2024 को भी रिलीज़ नहीं हो सकेगी। यह तो कोई नहीं जानता कि फ़िल्म कब रजत पटल पर आएगी, मगर जब भी रिलीज़ होगी सुपर फ़्लॉप हो जाएगी। इस फ़िल्म का गीत ‘सिंहासन को ख़ाली करो’ अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मुँह चिढ़ा रहा है और कंगना ने जो समस्याएँ पैदा की हैंl
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