कौन सी होली, किसकी होली!
हमने पूछा
बुधई, चम्पा-चमेली
और घसीट, मंगनू से
कहिये आप सब इस बार,
कहाँ, कैसे मनाएंगे अपनी होली?
वे बिगड़ कर बोले-
कौन-सी होली,
किसकी होली?
क्यों रचा रहे हैं हमारी जिंदगी में,
महँगाई की रंगीली ?
अपनी होनी, तो बिना हुए ही होली।
बाजार का यह हाल है ,
गाहक का मुँह पीला है,
महँगाई का मुँह लाल है.
यह सब चंद बड़ों के ,
गले मिलने का कमाल है!
मैंने कहा- मेरे भाई !
होली में भी रूसवाई ?
जहां तक गले मिलने का
सवाल है होली मे ?
होली मनाने का मौका तो
साल में हर साल ,
पर गले पड़ने का ,
पूरे पाँच साल में एक बार आता है।
जब बड़े से बड़ा राजनेता ,
चुनाव में रजाई की तरह,
धुन दिया जाता है.
कैसा चुनाव, कैसी रजाई?
हमने भी है कैसी मति पाई,
कहते हैं पूरे देश में -
बड़ा विकास हुआ है.
लेकिन हमागा वोट ,
आज भी वैसा का वैसा है,
जरा भी बड़ा नहीं हुआ है.
पिछले पचहत्तर सालों से,
हमारे ही हाथों से ,
वे ही हर बार चुने जा रहे हैं .
और अपनी क्या कहें,
हम तो कोल्हू के बैल है,
इस राजनीति के कोल्हू में
घुन की तरह पिससे जा रहे हैं।
इसलिए अब
काहे का त्योहार
किस बात की होली
होली उनकी होती है,
जिनकी जेबें भरी पूरी है .
हम तो फुटपाथिये हैं,
उनके लिए तो
सजे धजे माल हैं
हमारे बाप दादो की
शहादत जंग खा रही है
हमारी कमजोरियां
मजबूरियां भुना रही है
अब ऐसे में,
आप ही बताइये-
हम भला होली कैसे मनाएंगे?
हम खाली पेट रहकर,
होली के अधबीच चुनाव में,
गरीबी की छौंक किस बूते लगाएंगे!
हमारे बाप दादों की
शहादते जंग खा रही हैं
हमारी कमजोरियां
मजबूरियां भुना रही है
अब ऐसे में-
आप ही बताइये,
हम होली किस बूते मनाएंगे.
खाली पेट रहकर भला
गरीबी का त्योहार कैसे मनाएंगे।
--------------
We must explain to you how all seds this mistakens idea off denouncing pleasures and praising pain was born and I will give you a completed accounts..
Contact Us