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डॉ॰ सलीम ख़ान

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नई दिल्ली  | बुधवार | 24 जुलाई 2024

त्तर प्रदेश के दस विधानसभा क्षेत्रों में जल्द ही उप चुनाव होने वाले हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को दोहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। एक तो जनता द्वारा लोकसभा चुनावों की नीति को जारी रखते हुए उन्हें नकारने का डर है और दूसरा, अमित शाह द्वारा उनके खिलाफ साजिश रचने का खतरा है। इस स्थिति में उन्होंने 18 जुलाई 2024 को मुजफ्फरनगर पुलिस द्वारा एक विवादास्पद आदेश जारी करवाया।

 

पिछले साल भी इसी तरह की हरकत की गई थी, लेकिन इस बार इसका राजनीतिक लाभ उठाने के लिए आदेश का दायरा बढ़ाकर खाने-पीने के स्टालों और फलों के ठेलों को भी शामिल कर लिया गया। योगी आदित्यनाथ इस आदेश से अपनी डूबती नैया को पार लगाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन इससे विपक्ष एकजुट हो गया और उन्होंने इसे पक्षपातपूर्ण कार्रवाई बताते हुए कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग कर दी।

 

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि इस तरह के आदेश शांति भंग करेंगे। उन्होंने सवाल उठाया कि अगर किसी का नाम गुड्डू, मुन्ना, छोटू या फत्ते हो, तो कोई क्या समझ सकता है? उन्होंने इसे मुसलमानों के खिलाफ साजिश बताते हुए कोर्ट से इस आदेश का संज्ञान लेने की दरख्वास्त की। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, “माननीय न्यायालय वह स्वयं संज्ञान लेकर इस प्रशासनिक आदेश के पीछे छिपे सरकार के इरादों की बाबत जांच करवाकर उचित कार्रवाई करे।”

 

लेख एक नज़र में
 
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में पुलिस ने एक विवादास्पद आदेश जारी किया है, जिसके तहत दुकानदारों को अपने कर्मचारियों के नाम और धर्म की जानकारी देने के लिए कहा गया है।
इस आदेश का विरोध सभी विपक्षी दलों ने किया है, जिसमें समाजवादी पार्टी, कांग्रेस, एमआईएम, बीएसपी और एलजेपी शामिल हैं। सभी ने इसे साम्प्रदायिक सौहार्द को खराब करने वाला और मुसलमानों के खिलाफ साजिश बताया है।
एमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने इस आदेश की तुलना दक्षिण अफ्रीका के सरकारी भेदभाव और हिटलर के यहूदी बायकॉट से की है।
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने मुजफ्फरनगर पुलिस की आलोचना करते हुए इसे सरकारी संरक्षण में उग्रवाद करार दिया है। बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने भी इस आदेश की निंदा की है।
इस आदेश के बाद विवाद बढ़ गया और विपक्ष के हमले से सत्ताधारी पार्टी डर गई। समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा कि प्रशासन के कदम पीछे हटाने को प्रेम एवं सौहार्द से पैदा होने वाली एकता की जीत है।

 

 

एमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने इस आदेश की तुलना दक्षिण अफ्रीका के सरकारी भेदभाव और हिटलर के यहूदी बायकॉट से की। उन्होंने कहा कि यह संविधान की धारा-17 का उल्लंघन है और यूपी सरकार पक्षपात को बढ़ावा दे रही है। ओवैसी ने चुनौती दी कि अगर योगी आदित्यनाथ में हिम्मत है तो वे लिखित आदेश जारी करें ताकि मुसलमानों के साथ भेदभाव स्पष्ट हो सके।

 

ओवैसी ने आर्थिक पहलू की ओर भी इशारा किया। उनके अनुसार इस आदेश के बाद मुस्लिम कर्मचारियों को मुजफ्फरनगर के ढाबों से निकाल दिया गया है। ‘दि क्विंट’ की रिपोर्ट भी इस दावे की पुष्टि करती है कि पिछले साल के प्रतिबंध के कारण कितने लोगों का रोजगार छिन गया और कितनों के कारोबार तबाह हो गए। एक हिंदू ढाबे के मालिक ने माना कि उसने अपने मुस्लिम कर्मचारियों को छुट्टी दे दी थी।

 

कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने मुजफ्फरनगर पुलिस की आलोचना करते हुए इसे सरकारी संरक्षण में उग्रवाद करार दिया। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, “न केवल राजनीतिक पार्टियों को, बल्कि सही सोच रखने वाले तमाम लोगों और मीडिया को इसके खिलाफ उठ खड़ा होना चाहिए। हम बीजेपी को यह इजाजत नहीं दे सकते कि वह देश को अंधेरे काल में ढकेल दे।”

 

बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने भी इस आदेश की निंदा की। उन्होंने कहा, “कांवड़ यात्रा के रास्ते पर आने वाले तमाम होटलों, ढाबों, स्टालों आदि के मालिकों का पूरा नाम जाहिर करने का सरकार का नया आदेश एक गलत परंपरा है जो साम्प्रदायिक सौहार्द को खराब करती है। सरकार को इसे तुरंत वापस लेना चाहिए।”

 

एलजेपी और जेडीयू ने भी इस आदेश का विरोध किया। राष्ट्रीय लोकदल के प्रमुख जयंत चौधरी ने कहा कि कांवड़ यात्री जाति और धर्म की पहचान करके सेवा नहीं लेते, इसलिए इसे धर्म से न जोड़ा जाए।

 

पूर्व केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने भी इस आदेश की आलोचना की। उन्होंने लिखा कि “यह आदेश छूत-छात की बीमारी को बढ़ावा दे सकता है। आस्था का सम्मान जरूर होना चाहिए, लेकिन छूत-छात को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए।”

 

मुजफ्फरनगर पुलिस के इस आदेश के बाद विवाद बढ़ गया और विपक्ष के हमले से सत्ताधारी पार्टी डर गई। मुजफ्फरनगर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने कहा कि दुकानदार इस आदेश पर स्वैच्छिक रूप से अमल कर रहे हैं। यह सरासर झूठ है, जबकि सच्चाई यह है कि इस मूर्खतापूर्ण आदेश से हिंदू-मुसलमान सभी परेशान हैं।

 

समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा कि प्रशासन के कदम पीछे हटाने को प्रेम एवं सौहार्द से पैदा होने वाली एकता की जीत है। उत्तर प्रदेश के दस क्षेत्रों में उप चुनाव आयोजित होने वाले हैं, जहां कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच समझौता हो चुका है, वहीं बीजेपी वाले आपस में लड़ रहे हैं। इस विवाद के जरिए ध्यान हटाने की कोशिश की गई, लेकिन ऐसे तमाशों से चुनाव नहीं जीते जाते।

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