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आज का संस्करण

नई दिल्ली, 7 मई 2024

 

दौर-ए-इलेक्शन में कहां कोई इंसान नजर आता है.।

 

कोई हिन्दू, कोई दलित तो कोई मुसलमान नजर आता है.।

 

बीत जाता है जब इलाको से इलेक्शन का दौर, तब हर इंसान रोटी के लिए परेशान नजर आता है.।

 

कुछ तो खासियत है, इस प्रजातंत्र में, कुछ तो बात है, इस करामाती मंत्र में !

 

वोट देता हूँ फकीरों को, कमबख्त शहंशाह बन जाते है, और हम हर बार, वहीं के वहीं रह जाते हैं..!!

 

रह जाते हैं हम हर बार, ऊँगली रंगाने के लिए! नए फकीरों को फिर, शहंशाह बनाने के लिए।

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