मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के तीन हिंदी भाषी राज्यो मे प्रधान मंत्री मोदी को भाजपा द्वारा विधान सभा के चुनाव जीतने के बाद न केवल देश के राजनितिक परिहष्य मे परिवर्तन आया है बल्कि भाजपा की भी चीजें काफी तेजी से बदल रही है| कर्नाटक के चुनाव मे हार और मणिपुर की स्थिति के कारण बैकफुट पर आधी भाजपा को गुजरात लेनी अब आत्म विश्वास से लबेरज है| प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और उनके समर्थको को अब अपना राजनीतिक भविष्य पूरी तरह सुरक्षित लग रहा है और उनका विश्वास और को हट हुआ है की मोदी-शाह को सत्ता को न तो कोई खतरा विपक्षी दलों से है न ही भाजपा के उन्दा से है|
इस विश्वास के कारण ही प्रधान मंत्री मोदी ने तीनों राज्यों मे भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को किनारे लगा कर अपनी मर्ज़ी के मुख्य मंत्री इन राज्यों पर थोपे| इससे मोदी-शाह ने यह भी सिद्ध करने का प्रयास किया कि भाजपा पर उनकी पूर्ण और निरकुंश नियंत्रण है और पार्टी के छोटे बड़े नेताओं की परवाह किये बिना वह जो चाहे कर सकते है| इन चुनावो से पहले मोदी-शाह की जमात ने भाजपा पर संपूर्ण नियंत्रण के लिए एक और त्राल चली| केंद्र के तमाम नेताओं को मुख्यमंत्री पद का लालच दिखाकर राज्यों में विधानसभा के चुनाव लड़ने के लिए भेजा गया| उन्होंने पूरी मेहनत से भाजपा को जीतने के लिए कार्य किया| लेकिन चुनाव परिणाम आने के बाद उनको किनारे लगाकर बिल्कुल नए और बहुत कम राजनीतिक कद वाले नेताओं को मुख्यमंत्री बनाया गया|
चुनाव के प्रत्याशियों के चयन और चुनाव के बाद मुख्यमंत्री के चयन से मोदी-शाह की जोड़ी ने यह सिद्ध कर दिया कि पार्टी अब पूरी तरह उनकी ही है वैसे तो आर.एस.एस की वैचारिक प्रतिष्ठ भूमि से आई भारतीय जनता पार्टी मैं अन्य राजनीतिक दलों की तरह असहमति, असंतोष तथा विरोधी विमर्श के लिए कभी कोई स्थान था ही नहीं लेकिन महंगाई बेरोजगारी अदानी प्रकरण तथा मणिपुर पर विपक्षी दलों द्वारा मोदी सरकार पर किए जाने वाले तीव्र प्रहारों की प्रति हैवानी भाजपा के अंदर भी सुनी जाने लगी थी मोदी शाह की जोड़ी का प्रयास भाजपा के अंदर उमरते इन स्वरों को बंद करना था लगता है कि विधानसभा के चुनाव के बाद कम से कम वर्तमान समय के वह अपने मिशन में सफल रहे हैं |
जैसे वर्ष 2013-14 तक मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले की भाजपा और मोदी के सत्ता के आने के बाद की भाजपा नाम के तो एक है पर वैसे दो बिल्कुल अलग दल है इसी तरह से इन विधानसभा चुनाव के पूर्ण और उसके बाद उसकी भाजपा की मिलन है भाजपा अब एक प्रजातान्त्रिक राजनीतिक दल न रहकर मोदी-शाह की एक व्यक्तिगत सेना बन गई है जो बिना कोई प्रश्न किये वही करेगी जिसका उसे आदेश दिया जाएगा| तीन नए मुख्यमंत्री जन नायक न होकर प्रधानमंत्री के वफादार सिपासहालार है जो उनका कोई भी हुकुम बजाने के लिए तटपर है|
शायद पूरे आत्मविश्वास के साथ अगले वर्ष के लोकसभा चुनाव में उतरने के लिए मोदी-शाह को गुजरात लाबी को ऐसे ही भाजपा की आवश्यकता है पिछले दिनों सुना जा रहा था कि कांग्रेस तथा विभक्ष के बढ़ते प्रकाश के कारण भाजपा के वरिष्ठ नेता तथा आर.एस.एस. के शीर्ष पदाधिकारों मोदी के विकल्प की बात को सोच रहे हैं| सुब्रमण्यम स्वामो, करुण गांधी, नितिन गडकरो जैसे के विरोधी स्वर मोदी के नेहल से प्रशातुंष्ट को स्पष्ट दर्शा रहे थे| योगी आदित्यनाथ को स्वतंत्र कार्य शैली तथा राजनाथ सिंह जैसे वरिष्ठ नेताओं का मोन का मोदी शाह की बेचैनी का कारण था| यह बेचैनी तब और भी बढ़ गई जब टिकट वितरण के समय भाजपा के अंदर का असंतोष खुलकर सामने आया|
मोदी-शाह का प्रयास अगर भाजपा के असंतोष के रूप स्वरो को शांत करना था तो शायद वह अपने मिशन के इस समय सफल हो गये है| पर यह कहना मुश्किल है कि क्या यह स्थित लोकसभा चुनावो मे भाजपा को सफलता की गारंटी है| शषिर्थ नेतृत्व का विरोध करने को सामर्थ्य न जुटा पाना असंतोष नेताओ या कार्येकर्ताओ द्वारा चुनावों के जन सम्पर्क अभियान करके पार्टी का सफल बनाने की भी कोई गारन्टी नहीं है | शान्त होकर , घरो मे बैठ कर भी यह असंतुष नेता असहयोग कर पार्टी को चुनावो के नुकसान पुहचा सकते है |
क्या छोटे कद वाले अनुभवहोन नेताओ तथा उनके कार्येकर्ताओ के सहारे मोदी-शाह भाजपा के अगले वर्ष का लोक सभा का चुनाव जीता जायेगा| वह भी ऐसे समय के जन विपक्ष नयी उर्जा के साथ एक जुट होकर उनको कड़ी चुनौती दे रहा है| या फिर मोदी और उनके निष्ठावास सहयोगी यह समझते है की मोदी का नाम ही चुनाव जितने के लिए काफी है? अभी चुनाव के कम से कम तीन महीने का समय है| तब तक परिहष्य कैसे बदलता है और चुनाव का क्या परिणाम होगा यह तो भविष्य ही बताएगा? अभी कुछ कहना बेमानी होगा|
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