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आज का संस्करण

नई दिल्ली, 7 मार्च 2024

प्रदीप कपूर

A person with glasses and a mustache

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लखनऊ में पिछले पिचत्तर सालों में अड्डेबाजी का भी खूब दौर रहा है। ये अड्डे शहर में कई जगह थे जहां राजनीति, साहित्य, संस्कृति,कला और रंगकर्म के साथ ट्रेड यूनियन और छात्र आंदोलनों को नई दिशा और संचालन होता रहा है।

 

हजरतगंज का काफी हाउस 1940 से सबसे चर्चित अड्डा रहा है जहां बड़े बड़े राजनैतिक लोग, साहित्यकार, कलाकार, रंगकर्मी, ट्रेड यूनियन लीडर और छात्र नेता, वकील, जज, डॉक्टर्स बैठते रहे। एक तरह से काफी हाउस लखनऊ की साझा विरासत, राजनीति, और साहित्य का सबसे बड़ा केंद्र था।

 

कुछ साल पहले राम आडवाणी जी ने  बताया था कि वे पहले गांधी आश्रम वाले काफी हाउस जाते थे और बाद में जहागीराबाद बिल्डिंग में नियमित जाते थे।

 

एक बार हमीदा हबीबुल्लाह जी ने बताया कि उनकी ननद तजीन हबीबुल्लाह जिनके पिता लखनऊ यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर थे और भाई  इनायत हबीबुल्लाह ब्रिटिश फौज में बड़े अफसर थे फिर भी नियमित काफी हाउस जाती थी। तजीन यूनिवर्सिटी में छात्र नेता थी और छात्र  आंदोलन की गतिविधियों के लिए काफी हाउस जाती थी।

 

इसी तरह कई साल पहले मशहूर शायर अली सरदार जाफरी ने बताया कि आज़ादी से पहले और उसके बाद वे, मजाज और कैफ़ी आज़मी भी काफी हाउस में बैठते रहे।

 

काफी हाउस में प्रखर समाजवादी नेता आचार्य नरेंद्र देव और राम  मनोहर लोहिया भी बैठते रहे। जनेश्वर मिश्र भी जब तक जीवित रहे  नियमित बैठते रहे।

 

काफी हाउस में बैठनेवाले चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने तो सैय्यद सिब्ते रजी, मधुकर दिघे, आरिफ मो खान, माता प्रसाद और लालजी टंडन गवर्नर बने। मेरी सलाह पर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर अपने सहयोगी ओम प्रकाश श्रीवास्तव जी के साथ आखिरी बार काफी हाउस पहुंचे और पुराने मित्रों को याद किया।

 

काफी हाउस में बैठनेवाले हेमवती नंदन बहुगुणा, एन डी तिवारी, श्रीपति मिश्र, वीर बहादुर और मुलायम सिंह यादव प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

 

मुझे याद हैं वीर बहादुर सिंह जब मुख्यमंत्री थे तो अक्सर अपनी सिक्योरिटी को बाहर बरामदे में छोड़ कर अंदर दाखिल होकर महफिल में शामिल होते थे और सबके साथ कॉफी पकौड़ी और गप करते देखा है। वीर बहादुर सिंह ने कभी भी काफी हाउस में बैठनेवालों के द्वारा खिंचाई का बुरा माना और काफी हाउस में बैठने वालों ने कभी भी मुख्यमंत्री से किसी काम की सिफारिश भी नहीं की।

 

मुझे यहां है की जिस दिन वीर बहादुर सिंह ने मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दिया तो हम भी उनके साथ राज भवन में थे। अपना त्यागपत्र गवर्नर उस्मान आरिफ को नैनीताल भिजवा कर हमसे कहा की अब हम आजाद हैं और काफी हाउस चल कर बैठकी की जाय और काफी पी जाय।

 

उत्तर प्रदेश की राजनीति के दो बड़े नेता चौधरी चरण सिंह और सीबी गुप्ता कभी भी काफी हाउस नहीं गए। उनका मानना था उन दोनो खिलाफ राजनैतिक साजिश सब काफी हाउस में होती थी। वे काफी हाउस को चंदूखाना मानते थे और दूर रहते थे।

 

हमने काफी हाउस में हिंदी साहित्य की तीन महान हस्तियों यशपाल, अमृत लाल नागर और भगवती चरण वर्मा को एक साथ बैठते देखा और उनको चारों तरफ से काफी हाउस में बैठनेवालों से घिरा देखा।

 

लखनऊ के पूर्व मेयर डा. दाऊजी गुप्ता ने बताया कि सबलोग इन तीन महान हस्तियों से मिलने और सुनने के लिए काफी हाउस पहुंचते थे।

 

कुछ साल पहले वरिष्ठ पत्रकार विद्यासागर जी ने बताया था कि उनके सामने मजाज़ और दूसरे शायर सलाम मछली शहरी के बीच विवाद चल रहा था  कि एक ने कहा कि आप हम शूमा पर शायरी करते है तो दूसरे ने कहा वे हिरोशिमा पर शायरी करते है। लेकिन यह बात खूब मशहूर थी जब मजाज़ काफी हाउस के अंदर होते थे तो महिलाएं बाहर इंतजार करती थी की जब निकलते  हुए कुछ शेर सुना देंगे।

 

काफी हाउस में राजनीति की।नब्ज टटोलने कई दशक पहले अखबारों के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार जुटते थे।उनमें कुछ नाम प्रमुख हैं एम चेलापति राव, सीएन चित्तरंजन, एसएन घोष, अखिलेश मिश्र, पी एन बहल, विद्यासागर, राजनाथ सिंह, एसएम जाफर,सलाहुद्दीन उस्मान, सुरेंद्र चतुर्वेदी, रवि मिश्र, रमेश पहलवान, बिशन कपूर, लक्ष्मीकांत तिवारी, बीएन उनियाल, एन सप्रू, एससी काला , पीएस सेठी, गिरधारीलाल पाहवा, अवतार सिंह कालसी अनूप श्रीवास्तव वीरेंद्र सिंह सुदर्शन भाटिया आदि थे। ये सब लोग काफी हाउस में नियमित थे।

 

काफी हाउस में छात्र आंदोलनों को वहां बैठनेवाले बड़े राजनैतिक नेता और पत्रकारों का मार्गदर्शन मिलता था। सीपीआई के राष्ट्रीय सचिव अतुल अनजान जब लखनऊ यूनिवर्सिटी छात्र यूनियन के अध्यक्ष थे तो काफी हाउस में साथ में वीरेंद्र भाटिया, अशोक निगम, आलोक भारती भी साथ रहते थे।

 

इलाहाबाद हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज हैदर अब्बास ने बताया कि जब वे लखनऊ यूनिवर्सिटी के छात्र नेता थे तो घर में गमी होने के कारण दूसरे दिन अपनी गिरफ्तारी काफी हाउस से दी। उनके दो वकील दोस्त उमेश चंद्रा और अब्दुल मन नान भी खूब कॉफी हाउस में बैटकी करते थे।

लखनऊ की गंगा जमुनी तहजीब के नुमाइदे और अपने आपमें अंजुमन लालजी टंडन जी ने  अपने  राजनैतिक सफर की शुरुवात से लेकर दो साल पहले बिहार के गवर्नर बनने से पहले तक काफी हाउस की बैठकी मैं बराबर हिस्सा लेते रहे।

 

लालजी टंडन जी का मानना था काफी हाउस एक राजनैतिक पाठशाला थी जहां बहुत कुछ सीखने और समझने का मौका मिला। टंडन की कहना था कि एक ही टेबल पर विभिन्न विचारधारा के।लोग बैठते थे काफी और पकौड़ी पर बहस करते थे उनमें मतभेद तो होते थे लेकिन कभी मन भेद नहीं होता था।

 

टंडन जी हमेशा 1967 का लोकसभा चुनाव का जिक्र करते थे जब काफी हाउस में बैठनेवाले बुद्धिजीवियों ने शहर के सबसे बड़े पूंजीपति और कांग्रेस के कैंडिडेट वी आर मोहन के खिलाफ उर्दू शायर जस्टिस आनंद नारायण मूल्ला को खड़ा किया और जीता दिया। काफी हाउस ने समाज को एक दिशा दी   की पूंजीपति भी हराया जा सकता है।

 

कोरोना काल से पहले काफी हाउस में जब भी बैठकी होती थी तो चचा अमीर हैदर, डा रमेश दीक्षित, अतुल अंजान,  सत्यदेव त्रिपाठी  हैदर अब्बास, डा दाऊजी गुप्ता, राजेंद्र चौधरी, मधुकर त्रिवेदी, अतहर हुसैन, मो रशीद, इमरान, अरुण प्रकाश, सुभाष कपूर, अनूप सिंह, अवतार सिंह बाहर नियमित रहते थे।

 

लालजी टंडन जी का घर चाहे वो चौक का हो या वे जब मॉल एवेन्यू मैं थे या हजरतगंज हमेशा अड्डा रहा जहां दरवाजे खुले रहे। टंडन की घर किसी पार्टी का नेता हो और किसी भी विचारधारा को माननेवाला हो उसका स्वागत और सम्मान होता था।

 

टंडन जी खास बात थी कि वे अपने आप में अंजुमन थे चाहे जिस सब्जेक्ट पर बात करना हो बहुत जानकारी मिलती थी। उनकी चाट पार्टी की धूम पूरे देश में थी। अटल बिहारी वाजपई जी से लेकर देश के हर बड़े नेता ने टंडन जी की चाट पार्टी में हिस्सा लिया और उनकी मेजबानी का लुफ्त उठाया।

 

कई बार टंडन जी ने खास तौर से काफी हाउस में बैठनेवालों को।अपने घर चाट पार्टी और कुल्फी पर बुलाया। खास बात यह थी की टंडन जी का पूरा परिवार जिस तरह मेहमानों के देखभाल करता था उससे सीखना चाहिए की मेजबानी का मतलब क्या होता है।

 

कुछ साल पहले टंडन जी कहने पर मैंने उनके चौक आवास पर एक यादगार अदबी नशिस्त का आयोजन किया था जिसको दूरदर्शन ने रिकॉर्ड किया था। नशिस्त के बाद टंडन जी ने चाट का इंतजाम किया था उसके बाद काली गाजर का हलुआ और कुल्फी थी।आज भी सबलोग उस दावत की चर्चा करते हैं। (शब्द 1215)

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