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आज का संस्करण

नई दिल्ली, 21 मई 2024

अनूप श्रीवास्तव

क मस्तिष्क विशेषज्ञ डाक्टर मानव मस्तिष्क पर रिसर्च कर रहा था. उसने अनगिनत मस्तिष्कों की चीरफाड़ की वी. आई पी महापुरुषों, नेताओं, मंत्रियों समाजसुधारकों, कवियों, कलाकारों, दार्शनिकों के मस्तिष्क देख डाले थे. परंतु वह संतुष्ट नहीं था.

उसका असिस्टेंट एक दिन एक नया मस्तिष्क ले आया प्रयोगशाला में चीरफाड़ के बाद डाक्टर ने उस मस्तिष्क से मीरा के मधुर गीतों की लय सुनी, कबीर की उलटबांसियों का अर्थ लिखा हुआ देखा, वह सूरदास के वात्सल्य और श्रृंगार रस की झांकियों पर मुग्ध हुआ। उसने तुलसीदास के विनय के पदों की लोच की सीमाओं का अवलोकन किया। प्रसाद, पंत, महादेवी के छायावाद की छायाओं को देख सकने का सौ भाग्य उसे प्राप्त हुआ. प्रेमचंद, जैनेंद्र, इलाचंद्र, यशपाल के उपन्यास के पात्रों की भिन्न-भिन्न बोलियां सुनीं। पश्चिम के मनोविश्लेवण का भारतीय रंग देखा। फ्रायड, माक्र्स, सार्ज, नीत्शे की मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक सूक्ष्मताएं समझीं।

लेकिन डाक्टर के चेहरे पर संतोष की लहर न उठी।   उसने अपने असिस्टेंट से पूछा, "यह किसका मस्तिष्क उठा ले आये हो?"

 

असिस्टेंट ने उत्तर दिया -हिंदी की एक पत्रिका के संपादक का ! माथा ठोक कर डाक्टर ने कहा, "तभी तो मुझे इसके मस्तिष्क में स्वतंत्र चितन का केंद्र नहीं मिल रहा है ! ऐसा केंद्र जो कायस्थवाद से परे हो, ब्राहमण रचनाकारों का पक्षपाती न हो, साहित्यिक दलबंदियों से ऊपर उठा हो, मालिक की धार्मिक और राजनैतिक नीतियों का विरोधी हो, भाई -भतीजावाद से दूर हो, शहर, जनपद, प्रांत की धारणाओं से अछूता हो."

ऐसा मस्तिष्क मिलना तो भारत में असंभव है." असिस्टेंट ने अपनी असमर्थता प्रगट की.

"तब तो यहां कई एकलव्य और शंबूक अनजाने ही मरते रहेंगे।निराला, प्रेमचंद, प्रसाद बनने के पूर्व कई लोग सुनसान मरघट की गोद में सोते रहेंगे। डाक्टर ने आवेश में कहा.

ऐसा तो होता ही रहा है और आगे भी होता ही रहेगा." असिस्टेंट ने अपना मत अभिव्यक्त किया।

 

"अरे भाई! गाये गीत जब इतने सुंदर हैं, तो ये गीत जो अनगाये रह गये, कितने सुंदर होंगे। इन अनगाये गीतों की खोज कौन करेगा? कौन उन्हें सुनना चाहेगा और लोगों तक पहुंचाना चाहेगा? क्या दुनिया को गये हुए गीतों के स्वर फीके पड़ जाने का इतना डर है?" डाक्टर  ने अपना दुख व्यक्त किया.

"लगता तो मुझे भी ऐसा ही है." असिस्टेंट ने अपनी लाचारी दिखायी.

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