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नई दिल्ली, 6 जून 2024

 

मुट्ठी भर अंधेरा!

 

 

बादल चाहे जितना

आसमान को ढके

सूरज का तेज वह

ज्यादा देर सह नही पायेगा।

 

 मुट्ठी  भर अंधेरा,

उजेला को रोक नही पायेगा।

 

 कभी किसी ने

कहा था-

बात निकलेगी

तो दूर तक जायेगी

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व्यंग्य की गंगवार !

 

व्यंग्य के गैंग वार ने

खींचा दलदल का पाला

 

साहित्य मनीषी नहीं

जरा भी उससे गाफिल हैं

बड़े बड़े सिपहसलार

तक  गैंग में शामिल है

 

व्यंग्य की आपाधापी

हमे कहाँ तक ले जाएगी

 

पता नहीं हमे यह

समझ कहाँ तक ले जायेगी!

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-अनूप श्रीवास्तव

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