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हॉकी के जादूगर को भावपूर्ण श्रद्धांजलि

प्रशांत गौतम

A person in a suit

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नई दिल्ली | सोमवार | 2 दिसंबर 2024

दिसंबर 3 , भारतीय खेल इतिहास में एक ऐसा दिन है, जब हम अपने महान खिलाड़ी, हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। ध्यानचंद का नाम सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि विश्व स्तर पर भी सम्मान के साथ लिया जाता है। उनके खेल का जादू ऐसा था कि वह न केवल भारत के लिए स्वर्णिम इतिहास रचते रहे, बल्कि दुनिया भर के खेल प्रेमियों के दिलों में अपनी जगह बना ली।

उनका खेल और जीवन हमें यह सिखाता है कि अगर इंसान में जुनून, मेहनत और लगन हो, तो वह हर कठिनाई को पार करके महानता हासिल कर सकता है।

मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ। साधारण परिवार में जन्मे ध्यानचंद के जीवन में बचपन से कोई विशेष सुविधाएँ नहीं थीं। उनके पिता सेना में थे, जिसके कारण उनका बचपन अलग-अलग स्थानों पर बीता।

 

लेख एक नज़र में
3 दिसंबर को हम भारतीय हॉकी के महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। उनका जन्म 29 अगस्त 1905 को प्रयागराज में हुआ था। साधारण परिवार से आने के बावजूद, उन्होंने अपने जुनून और मेहनत से हॉकी में अद्वितीय सफलता प्राप्त की। ध्यानचंद को "हॉकी का जादूगर" कहा जाता है, और उन्होंने 1928, 1932, और 1936 के ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीते। उनके करियर में 570 गोल करने का रिकॉर्ड है, जो आज भी अटूट है।
उनका जीवन हमें सिखाता है कि कठिनाइयों का सामना करके भी महानता हासिल की जा सकती है। ध्यानचंद ने न केवल खेल को लोकप्रिय बनाया, बल्कि युवा खिलाड़ियों को प्रेरित भी किया। 3 दिसंबर 1979 को उनका निधन हुआ, लेकिन उनकी विरासत आज भी हमें प्रेरित करती है। मेजर ध्यानचंद को श्रद्धांजलि देते हुए, हमें उनके अनुशासन और मेहनत से सीख लेनी चाहिए और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना चाहिए।

ध्यानचंद का असली परिचय हॉकी से तब हुआ जब वह 16 साल की उम्र में सेना में भर्ती हुए। सेना के अनुशासन और खेल के प्रति समर्पण ने उनके भीतर छिपे हॉकी के अद्भुत खिलाड़ी को बाहर निकाला। अपने शुरुआती दिनों में ध्यानचंद केवल मनोरंजन के लिए हॉकी खेलते थे, लेकिन उनकी प्रतिभा और मेहनत ने उन्हें खेल के मैदान का जादूगर बना दिया।

ध्यानचंद को उनकी अद्वितीय ड्रिब्लिंग और गोल करने की कला के कारण "हॉकी का जादूगर" कहा जाता है। उनकी स्टिक पर गेंद इस तरह चिपकी रहती थी जैसे कि वह उनकी नियंत्रण में पूरी तरह से हो। उनकी खेल प्रतिभा को देखते हुए यह कहा जाता है कि एक बार जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने उन्हें अपने देश की सेना में शामिल होने का प्रस्ताव दिया था, जिसे उन्होंने विनम्रतापूर्वक ठुकरा दिया।

उनके करियर का सबसे बड़ा क्षण 1928, 1932 और 1936 के ओलंपिक खेलों में आया, जब उनकी अगुआई में भारतीय हॉकी टीम ने स्वर्ण पदक जीते। 1936 के बर्लिन ओलंपिक के फाइनल में भारत ने जर्मनी को 8-1 से हराया, जिसमें ध्यानचंद का प्रदर्शन अविस्मरणीय था।

  • ध्यानचंद ने अपने करियर में कुल 570 गोल किए, जो आज भी विश्व हॉकी में एक रिकॉर्ड है।
  • उन्होंने तीन बार ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतकर भारत को विश्व हॉकी का सिरमौर बनाया।
  • उनकी खेल भावना और अनुशासन ने उन्हें न केवल महान खिलाड़ी बनाया, बल्कि एक प्रेरक व्यक्तित्व भी।
  • भारतीय सरकार ने उनके सम्मान में उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में घोषित किया।

मेजर ध्यानचंद का जीवन देश और खेल को समर्पित रहा। हॉकी से संन्यास लेने के बाद उन्होंने अपनी जिंदगी का बड़ा हिस्सा युवा खिलाड़ियों को प्रशिक्षित करने में बिताया।

3 दिसंबर 1979 को यह महान खिलाड़ी इस दुनिया से विदा हो गया। उनके निधन के साथ भारतीय हॉकी के एक युग का अंत हो गया। हालाँकि, उनकी उपलब्धियाँ और प्रेरणादायक जीवन आज भी हमें प्रेरित करता है।

ध्यानचंद से सीखने की प्रेरणा

मेजर ध्यानचंद का जीवन हमें यह सिखाता है कि सफलता का रास्ता कभी भी आसान नहीं होता। साधारण परिस्थितियों से शुरू होने वाला उनका सफर मेहनत, अनुशासन और खेल के प्रति असीम प्यार की मिसाल है।

ध्यानचंद का हर कदम यह बताता है कि यदि आप अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित हैं, तो दुनिया की कोई भी बाधा आपको रोक नहीं सकती। उनकी विरासत सिर्फ खेल के मैदान तक सीमित नहीं है, बल्कि हर युवा को यह प्रेरणा देती है कि सपने बड़े देखो और उन्हें पूरा करने के लिए पूरी ताकत झोंक दो।

मेजर ध्यानचंद ने न केवल हॉकी को लोकप्रिय बनाया, बल्कि उन्होंने भारत को गर्व करने का मौका भी दिया। उनकी पुण्यतिथि पर, हमें यह याद रखना चाहिए कि उनके जैसे महान खिलाड़ी न केवल एक देश के लिए गर्व का विषय होते हैं, बल्कि वे पूरी पीढ़ी को प्रेरणा देते हैं।

उनकी स्मृति हमें यह सिखाती है कि महानता केवल प्रतिभा से नहीं, बल्कि अनुशासन, मेहनत और लगन से हासिल होती है। ऐसे अमर व्यक्तित्व को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनकी विरासत को आगे बढ़ाएँ और हर क्षेत्र में उत्कृष्टता की कोशिश करें।

मेजर ध्यानचंद को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धा और सम्मान के साथ नमन।

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