समाज में बढ़ते तनाव और विभाजन के दौर में, जब राजनीतिक और सांस्कृतिक जटिलताएं हर ओर छाई हुई हैं, प्रसिद्ध आध्यात्मिक नेता डॉ. विनोद स्वर्ण गुरु ने एकता, समरसता, और मानवता के संदेश के साथ नई राह दिखाने का प्रयास किया है। हाल ही में दिल्ली में आयोजित एक सभा में अपने प्रेरक विचार साझा करते हुए उन्होंने राष्ट्रीय विकास और सामाजिक सद्भाव के लिए करुणा और समावेशिता को अपनाने की अपील की। उनकी बातें न केवल एक आदर्श समाज की ओर इशारा करती हैं, बल्कि तेजी से बदलते विश्व परिदृश्य में भारत की वैश्विक पहचान को सुदृढ़ करने की दिशा में भी प्रेरणा देती हैं।
अजमेर विवाद और सम्भल हिंसा जैसे संवेदनशील मुद्दों पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, “धार्मिक स्थलों को पूजा का स्थान मानना चाहिए, न कि विभाजन का मैदान.” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि धर्म और आस्था मानवता को जोड़ने का माध्यम है, न कि तोड़ने का.
गुरुजी ने अपने विचार में स्पष्ट किया कि “भारत की वैश्विक आकांक्षाओं की नींव उसकी विविधता और एकता में छिपी है.” उनका मानना है कि सामाजिक समरसता और समावेशिता के बिना नवाचार और विकास असंभव है.
पेरिस से आध्यात्मिक विज्ञान में डॉक्टरेट प्राप्त डॉ. स्वर्ण गुरु तर्कसंगत और अंधविश्वास-मुक्त आध्यात्मिकता के समर्थक हैं. उनकी संस्था स्पिरिचुअल सोल्स मानसिक स्वास्थ्य, नशा, और सामुदायिक विवाद जैसे मुद्दों पर काम कर रही है. समाज सेवा पर केंद्रित यह संस्था सामाजिक बदलाव लाने में अग्रणी है.
एक आदिवासी मां और पिछड़ा वर्ग के पिता के पुत्र के रूप में जन्मे, डॉ. स्वर्ण गुरु का जीवन भारत की विविधता का प्रतीक है. उन्होंने सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाओं को पार कर अपनी अलग पहचान बनाई. उनके विचार परंपरा और आधुनिकता का संतुलन प्रस्तुत करते हैं.
तेजी से बदलते परिदृश्य में, डॉ. स्वर्ण गुरु का संदेश अहिंसा, करुणा, और समावेशिता को अपनाने की प्रेरणा देता है. उनका मानना है कि विविधता में एकता भारत को शांति और प्रगति के पथ पर ले जाने में सहायक होगी.
डॉ. स्वर्ण गुरु की यह अपील आज के नेताओं और नागरिकों को प्रेरित करती है कि वे एक ऐसे भारत का निर्माण करें जो विभाजन से ऊपर उठे और सामूहिक कल्याण को प्राथमिकता दे. उनका दृष्टिकोण हमारे समय के लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक है.
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