हाल ही में बेरूत में हिजबुल्लाह के नेता नसरुल्लाह के खात्मे के बाद, भारतीय-अफ्रीकी मूल की महिला और डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार कमला हैरिस के लिए अमेरिकी राजनीति में नया अध्याय लिखने का रास्ता खुल गया है। अगले महीने अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने वाले हैं, जो दुनिया के सबसे शक्तिशाली राजनीतिक पदों में से एक है। इस बार की उम्मीदें इस बात पर टिकी हैं कि कमला हैरिस पहली महिला अमेरिकी राष्ट्रपति बनेंगी, जो अपने तेज़तर्रार रवैये के लिए जानी जाती हैं।
चुनाव प्रचार का माहौल अब चरम पर है, और ऐसा लग रहा है कि उन्होंने रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप को अच्छी चुनौती दी है। यह सारा घटनाक्रम तब शुरू हुआ जब कमला हैरिस ने गर्भपात को महिलाओं का अधिकार बताते हुए खुद को एक "निःसंतान बिल्ली" कहकर मजाक में पेश किया। उनके इस बयान ने न सिर्फ अमेरिकी जनता का ध्यान खींचा, बल्कि दुनिया के कई हिस्सों में भी चर्चा का विषय बन गया, जिसमें भारत भी शामिल है।
हाल के हफ्तों में, कमला हैरिस और डोनाल्ड ट्रंप के बीच का फासला घटता दिख रहा था। हालांकि, गर्भपात के मुद्दे पर महिलाओं के अधिकार का समर्थन करते हुए कमला ने काफी समर्थन बटोरा है, खासकर उन रूढ़िवादी वोटरों से, जो इस मुद्दे को बेहद गंभीरता से देखते हैं। इज़राइल के प्रति उनका समर्थन भी उनकी जीत की संभावनाओं को बढ़ा रहा है।
गर्भपात का विरोध अमेरिकी संस्कृति में लंबे समय से मौजूद है। ब्रिटिशों ने जब अमेरिकी धरती पर अपना राज जमाने की कोशिश की थी, तब उन्होंने जनसंख्या बढ़ाने पर जोर दिया था। लेकिन समय के साथ अमेरिका में गैर-श्वेत आप्रवासन के कारण अमेरिकी सपने की परिभाषा बदल गई। भारतीय जड़ों से जुड़ी कमला हैरिस इस बदले हुए सपने की नई वाहक के रूप में देखी जा रही हैं। वे एक ऐसी महिला हैं, जो नस्लीय और लैंगिक भेदभाव के बावजूद अमेरिका को एक समानता की धरती के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रही हैं।
अमेरिका में बहुत कम लोग जानते हैं कि भारतीय महिलाओं को 1947 से लोकतांत्रिक अधिकार मिले हैं, जबकि अमेरिकी महिलाओं को मतदान का अधिकार 1920 में मिला था। 1776 में स्वतंत्र हुआ अमेरिका, 244 साल बाद भी, एक महिला राष्ट्रपति को चुने जाने के लिए संघर्ष कर रहा है। यहां तक कि हिलेरी क्लिंटन जैसी प्रभावशाली महिला को भी इस पद पर पहुंचने से वंचित रहना पड़ा। यह अमेरिकी समाज की सोच को दर्शाता है।
हालांकि, इज़राइल का समर्थन करने का बाइडेन प्रशासन का निर्णय कमला हैरिस के लिए एक सकारात्मक कदम साबित हो सकता है। इससे न केवल अमेरिकी राजनीति में बदलाव आएगा, बल्कि अब्राहमिक धर्मों में मौजूद महिलाओं के प्रति भेदभाव वाली मानसिकता को भी चुनौती मिलेगी। जबकि कुछ इस्लामिक देशों में महिलाओं को वोट का अधिकार मिला हुआ है, उनके मत की कीमत पुरुषों के मुकाबले कम समझी जाती है। पाकिस्तान और बांग्लादेश में महिला नेताओं ने राजनीतिक स्थिरता की दिशा में कदम बढ़ाए थे, लेकिन वहां के मौलवियों के कारण उनकी हत्या कर दी गई या सत्ता से हटा दिया गया।
इस बीच, कमला हैरिस ने गर्भपात के समर्थन में अपने रुख के चलते आलोचनाओं का सामना किया है। अमेरिकी समाज में गर्भपात के मुद्दे पर अभी भी मतभेद हैं, और इसने कमला के चुनावी भविष्य को अनिश्चित बना दिया है। एक भारतीय राजनयिक ने मजाक में कहा कि शायद कमला का रुख और सख्त होता, अगर वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सलाह लेतीं।
भारत में, राजनीति में महिलाओं की भागीदारी और सम्मान की परंपरा रही है। यहां तक कि अब्राहमिक धर्मों में परिवर्तित होने वाले भारतीय भी कर्म और महिलाओं के प्रति सम्मान के सिद्धांत पर विश्वास रखते हैं। भारत में महिलाओं की सुंदरता का सम्मान किया जाता है और उसे एक महत्वपूर्ण भूमिका में देखा जाता है।
कमला हैरिस का अमेरिकी राजनीति में सफलता पाने का यह प्रयास निश्चित रूप से एक कठिन काम है। अमेरिकी समाज उनकी "निःसंतान बिल्ली" वाली टिप्पणी पर क्या प्रतिक्रिया देगा, यह देखना बाकी है। लेकिन यह ध्यान देने वाली बात है कि भारत में इंदिरा गांधी के खिलाफ अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन द्वारा की गई अपमानजनक टिप्पणियों को भारतीय समाज ने कभी भुलाया नहीं। यह अमेरिकी समाज के लिए एक चुनौतीपूर्ण समय हो सकता है, जहां उन्हें एक सफल महिला नेता के नेतृत्व को स्वीकार करना होगा।
कमला हैरिस के पास भारतीय जीन का असर है, जो उन्हें अपनी मां से मिला है। अगर उन्हें व्हाइट हाउस में स्थान मिलता है, तो उम्मीद की जाती है कि वे न सिर्फ महिला अधिकारों के मुद्दों पर सुधार ला पाएंगी, बल्कि अमेरिका के पारंपरिक ढांचे में भी बदलाव करेंगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में अमेरिकी समाज उनके इस साहसिक कदम का किस तरह से स्वागत करता है।
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लेखक : राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया से जुड़े रहे हैं। पत्रकारिता और भू-राजनीति पर उनकी किताबें काफ़ी सराही गई हैं। ये उनके निजी विचार हैं।
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