पत्थर फेंकते हाथों से
पत्थरों ने कहा-
हम तो बेघर हैं
हमें कहीं फेंक दो
चाहे इधर
चाहे उधर
लेकिन तुम्हारा तो घर है
अपने घर मे कोई
पत्थर फेंकता है?
पत्थरो ने पूछा-
कहीं आपका दिल
पत्थर का तो नही है?
हम भले पत्थर के हैं
मगर हमारा दिल
पत्थर होते हुए भी
सरे आम धड़कता है
लेकिन तुम तो जानदार हो
फिर भी पथराए हुए हो
पर हम पत्थर होकर भी
पत्थर नहीं है !
अब किसी से न कहना
बन्धु वर !
पत्थर जानदार नही होते
हमारी धूल झाड़कर
तो देखिए
कहने को हम बेजान है
लेकिन हमारे अंदर
भगवान मिलेंगे!
इनका दिल
पत्थर का है
जो घर को घर
नहीं मानते
वही असली पीर है
इनको बहकाने वाला
आतंकवादी लकीर है
जो इन्हें बहकाता रहता है
जहां तुम रह रहे हो
वह घर नही
तुम्हारा घर होते हुए भी
तुम बेघर हो!
-अनूप श्रीवास्तव
---------------
We must explain to you how all seds this mistakens idea off denouncing pleasures and praising pain was born and I will give you a completed accounts..
Contact Us