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अनूप श्रीवास्तव

नई दिल्ली, 25 जून 2024

 

सिर्फ हुक्की हुआ !

 

चाहे 'हेड' पड़े

 या फिर टेल,

 कोई फर्क नहीं पड़ता

 किसी के भी हाथ रहे

 सत्ता की नकेल

 जनता के तो,

हाथ लगनी है-

 हर हाल में, सिर्फ दलेल।

 

एक सत्तासीन होकर

 कुर्सी पर टेक लगाकर

 टुकुर-टुकुर देखता है

ख़ुद पर ईमानदारी का

ठप्पा लगाकर,

अपनी असहायता का बोध

करता है और दूसरा,

हो-हल्ला मचाकर

 आंगन में शोर मचाता है

कुर्सी के डंडों को हिलाता है

और फिर, बैठे-ठाले ही

भत्ते लेकर, ठंडे बस्ते में

 चुपचाप चला जाता है !

 

चाहे पक्ष हो या प्रतिपक्ष,

 सत्ता की दलाली में,

दोनों ही है- उभय पक्ष  !

 

इसका मतलब,

पूरी तरह से साफ है।

सत्ता दरअसल में,

सिर्फ दो मुहाँ साँप है।

 

एक नागनाथ,

 तो दूसरा सापनाथ है,

और सत्ता की,

पारसमणि झटके बिना,

दोनों ही अनाथ हैं।

 

भ्रष्टाचार की बांबी में,

 पाते दोनों ही पनाह है।

 सबकी अलग-अलग

 भूमिका है- एक करता

 वाह! वाह !! है, तो

दूसरा आह! आह  है !!

 

राजतंत्र हो या फिर

हो प्रजातंत्र हर बार

 हमें तंत्र धोखा दे जाता है

 और बेहद भली ,

अच्छी-खासी

 व्यवस्था को खा जाता है  !

 

लोकनायक ने लड़ी थी-

 एक और आज़ादी,

लेकिन क्या उससे,

रुकी हमारी बर्बादी

उसके बाद क्या हुआ ?

हुआ-सिर्फ हुक्की-हुआ  !

 

अली बाबा और

चालीस चोर की

कहावत का--

 जमाना और था

 अब तो चारों तरफ

 चोर ही चोर है

जिन्हें बेईमानी में भी

 ईमानदारी की तलाश है

 

 वे हर उस फार्मूले के साथ है।

सत्ता जिसके आस-पास है।

ये वैचारे तो हैं सिर्फ

सुख-सुविधा के मारे

 चिन्ता सिर्फ यही है

एक हजारे के आस पास भी

 बढ़ रहे हैं चारों तरफ

हजारे ही हजारे  !

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