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नेहरु के व्यक्तित्व निर्माण में जीवनसंगनी का योगदान

के. विक्रम राव

A person wearing glasses and a red shirt

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नई दिल्ली | सोमवार | 12 अगस्त 2024

     ब मोतीलाल नेहरू ने अपने छब्बीस-वर्षीय पुत्र जवाहरलाल नेहरू की शादी सोलह बरस की कमला कौल (7 फरवरी 1916) से की थी, तब उसकी तह में एक दैवी कारण था। भाई वंशीधर नेहरू, जो ज्योतिषी थे, की राय में पुरानी दिल्ली के सीताराम बाजार मे जन्मी इस कश्मीरी कन्या के वंशजों को राजयोग बदा था, (पृष्ठ-66, ‘‘नेहरू डाइनेस्टी’’, वाणी प्रकाशन, लेखक के. एन.रावः कमला नेहरू की कुण्डली)। उनके पति, पुत्री और नाती भारत के प्रधानमंत्री बने। अब उनके नवासे की दुल्हन रह गई| उनका पुत्र भी कतार में दीखता है। लेकिन नेहरू परिवार और भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन की त्रासदी रही कि नियति पुरूष की इस पत्नी को उचित महत्ता नहीं मिल पायी।

 

     सौ साल पूर्व, 1 अगस्त 1899 को जन्मी कमला कौल एक आध्यात्मिक हस्ती थीं, जो सिर्फ सैंतीस वसन्त ही देख पायी। आधे से अधिक ये वसन्त भी उनके जीवन में शिशिर ऋतु जैसे ही थे। उनका स्वाथ्य पतझड़ जैसा था, क्योंकि टी.बी. (तपेदिक) से उन्हें कभी निजात नहीं मिली। हालांकि उनकी बेटी इन्दिरा ने अपने तपेदिक पर काबू पा लिया था। कमला कौल की कुण्डली में राजयोग वाले ग्रहों का योग देखते समय मोतीलाल नेहरू ने गौर नहीं किया था कि शुक्र लग्न और अष्टम स्थान में राहु की दशा, फिर बृहस्पति छठे स्थान में रहा तो स्वास्थ्य कभी नहीं सुधर सकता है, भले ही हकीम लुकमान और वैद्य धन्वन्तरि कोशिश कर डालें। कमला की अल्पायु के आसार के बावजूद उसके राजयोग वाले सितारों के प्रभाव से ही नेहरू परिवार ज्यादा आकृष्ट रहा। वर्ना अपनी पत्नी स्वरूप रानी, जो ताउम्र बीमार रहीं, को देखकर मोतीलाल नेहरू उनकी कुण्डली का पूरा आकलन करने के बाद कमला को अपनी बहू बनाने में अवश्य हिचकते। मगर जब स्वरूपरानी नेहरू ने दिल्ली की एक कौटुम्बिक विवाहोत्सव पर इठलाती हिरनी जैसी एक स्वस्थ सलोनी कन्या को देखा तो उन्होंने प्रथम दृष्टि में ही तय कर लिया था कि इंग्लैंड में पढ़ रहे उनके बेटे के लिए यही माफिक पत्नी रहेगी। यह कमसिन कन्या कोई अन्य नहीं बारह-वर्षीया कमला ही थीं। उस वक्त जवाहरलाल नेहरू बाइस वर्ष के थे।

 

लेख एक नज़र में
कमला कौल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू की पत्नी, एक आध्यात्मिक हस्ती थीं, जिनका जीवन संक्षिप्त था। उनका विवाह मोतीलाल नेहरू द्वारा तय किया गया था, जिसके पीछे एक दैवी कारण था।

कमला की कुण्डली में राजयोग वाले ग्रहों का योग था, लेकिन उनका स्वास्थ्य कभी नहीं सुधरा। उनका जीवन अल्पायु था और वे सिर्फ 37 साल जीवित रहीं। नेहरू परिवार में कमला की उपेक्षा हुई और उनके बारे में बहुत कम लिखा गया।

उनका विवाह जवाहरलाल नेहरू से 1916 में हुआ था, लेकिन उनके रिश्ते में नवविवाहितों की सहज ऊष्मा कभी नहीं रही। कमला की चाची और मोतीलाल नेहरू द्वारा तय किया गया विवाह एक भयावह भूल थी।

 

 

     कैसी विद्रूपता है कि नेहरू परिवार के सभी लोगों, विजयलक्ष्मी पण्डित से सोनिया गांधी तक, पर कई किताबें छपीं है, लेकिन इस वंश की गौरव कमला नेहरू पर शुरु में केवल एक पतली सी पुस्तक छपी थी। वह भी सुनी सुनाई बातों पर। भारत के नियति की इस नियामिका का उसके भाग्य के बूते पर फलने वालों ने बस हल्का, सतही उल्लेख ही किया। उपेक्षा का मंजर तो ऐसा रहा कि कमला के पिता का नाम ही इन आत्मजनों को याद न रहा। नेहरू वंश के इतिहास के लेखक बी.आर. नन्दा के अनुसार कमला के दादा पण्डित किशनलाल अटल के पांचवे पुत्र जवाहरमल कौल की प्रथम सन्तान थीं वह। मगर कमला के पिता का नाम अर्जुनलाल कौल लिखा कृष्णा हठीसिंह ने जो जवाहरलाल नेहरू की सगी छोटी बहन थी। अपने ससुर के परिवार वालों के बारे में जवाहरलाल नेहरू ने कहीं भी उल्लेख करने की आवयकता तक नहीं महसूस की। बस इतना पता चलता है कि जवाहरमल कौल चान्दनी चौक में आटे की चक्की के मालिक थे। तब लाल किले के पास वाले थाने में मोतीलाल नेहरू के पिता गंगाधर नेहरू मुगल निजाम में चौकीदार रह चुके थे।

 

    कमला से जवाहरलाल नेहरू का पाणिग्रहण दिल्ली में एक वाकया बनी थी। प्रयाग से एक विशेष रेल में तीन सौ बराती 1916 की बसन्त पंचमी पर दिल्ली आये। सप्ताह भर समारोह चला। उन्हीं दिनों कुछ ही दूर भारत की राजधानी के रूप में नयी दिल्ली का निर्माण कार्य चल रहा था। दुल्हेराजा (जवाहरलाल) का होनेवाला आवास (तीनमूर्ति भवन) आधा बन चुका था। शादी के तुरन्त बाद कमला के ग्रहों ने जलवा दिखाया। तीन माह बाद पति पत्नी मधुचन्द्र के लिये श्रीनगर गये थे। वहीं कारगिल के निकट जार्जीला दर्रें में बर्फीली चट्टान खिसकने से जवाहरलाल फिसले और बह गये। शोधकर्ता स्टेनली वोलपोर्ट ने अपनी पुस्तक ‘‘‘नेहरू ट्रिस्ट विथ डेस्टिनी’’ (आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1996) में उल्लेख किया कि नवविवाहित जवाहारलाल द्वारा यह आत्महत्या का प्रयास भी माना जाता है। कमला का भाग्य था कि पति बच गया, बर्फीले बहाव से उबर आया। पति-पत्नी के शुरूआती रिश्ते में नवविवाहितों की सहज ऊष्मा कभी नहीं रही। खुद जवाहरलाल ने कमला से शादी पर नाखुशी व्यक्त करते हुए अपने पिता को लंदन से (22 दिसम्बर 1911) पत्र में लिखा था कि ‘‘मैं उस लड़की से विवाह करना नहीं चाहूँगा जिसे मैं जानता तक नहीं हूँ’’। उन्होंने पिता से सवाल भी किया था कि ‘‘क्या आप की राय में उससे मैं शादी करूँ जिससे मैं प्यार भी न कर पांऊ?’’ बाद में जवाहरलाल नेहरू की सगी भांजी नयनतारा सहगल ने अपनी किताब ‘‘इंदिरा गाँधी सी इमर्जेंस एण्ड स्टाइल’’, (विकास प्रकाशक, दिल्ली, पृष्ठ 27) में लिखा कि उनके माता-पिता की बेमेल शादी की छाया इन्दिरा गांधी में प्रतिबिम्बित होती रही। कमला कौल की चाची और मोतीलाल नेहरू द्वारा तय किया गया जवाहरलाल-कमला का विवाह एक भयावह भूल थी। दो एकदम विपरीत व्यक्तियों का असंगत योग था। यह तथ्य पुख्ता भी हो जाता है, जब अपनी जेल डायरी में नेहरू केवल इक्का-दुक्का उल्लेख ही कमला का करते है। यूं तो 1930 से 1935 तक एक हजार दिन कारागार में बिताने वाले नेहरू ने मौसम और पक्षियों के वर्णन में कहीं अधिक लिखा। हालांकि अपनी आत्मकथा उन्होंने समर्पित की कमला को जो तब तक नहीं रही।

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