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टी-20 का विश्व कप विजय 

अरुण जैमिनी

 

नई दिल्ली, 1 जुलाई 2024

 

क्रिकेटेरिया

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मेरे पड़ोसी हैं

नाम क्रिकेटास्कर

पत्नी का नाम -बाउंसर

क्रिकेट ही तन -मन -धन

घर का नाम पैवेलियन

 

उनका क्रिकेटेरिया

किस तरह कुनबे की ढोता है

यह बच्चों के नाम से भी प्रकट होता है

पहले का नाम 'लेग -ब्रेक '

दूसरे का 'नो -बॉल '

और तीसरे का 'लेट -कट'

 

 एक दिन हमने पूछा -

'हमने देखे बड़े-बड़े दीवानों के ताम -झाम

 पर कभी

सुनने में नहीं आए

बच्चों के ऐसे -ऐसे नाम '

वो सहवाग की तरह

एक्सपर्ट कमेंट करते हुए बोले -'यू नो !

उन दिनों किस्मत हमसे रूठी थी

'लेग- ब्रेक 'तब पैदा हुआ

जब मेरी टांग टूटी थी

दूसरी न चाहते हुए भी

पैदा हो गई अगले ही साल

इसलिए उसका नाम रखा -नो  बॉल

और जब

बुढ़ापे में बाप बनने का स्वाद चख लिया

 तो तीसरे का नाम 'लेट -कट 'रख दिया

 

एक दिन वह बुमराह की  तरह

नथुने फुलाए

मेरे घर आए

अखबार का बाउंसर मेरे मुंह पर मारा

 चयन समिति का गुस्सा मुझ पर उतारा

बोले -'देख लो ...देख लो

रोज घोटालों के फायर पे फायर

 यह देश के नेता हैं या पाकिस्तानी अंपायर '

मैंने कहा -'छोड़ो नेताओं की दलदल

चलो हो जाए ड्रिंक्स इंटरवल

वो जडेजा की तरह

फ़ौरन कुर्सी पे रपटे

फिर नाश्ते की प्लेट पर

शिखर धवन की तरह झपटे

समोसे को मुंह में कैच करते हुए बोले

'चटनी की तरह मन खट्टा हो रहा है

 क्रिकेट हो या राजनीति

हर तरफ सट्टा हो रहा है

सांप्रदायिकता

अफगनिस्तान  के हौसलों की तरह बढ़ रही है

और महंगाई

के एल राहुल  के रन रेट की तरह चढ़ रही है भ्रष्टाचार में रोहित जैसा जोश है

और  ईमानदारी 

कोहली की तरह खामोश है

कानून भुवनेश्वर की तरह घायल पड़ा है

जातिवाद अंपायर की उंगली -सा खड़ा है

देश के कर्णधार ही देश को

रन -आउट कराने पर अड़े हैं

विवशताओं के फील्डर

कैच करने के लिए घेरे खड़े हैं

देश झेल रहा है लगातार

चारों तरफ से

बुराइयों की गेंदों का प्रहार

कभी आतंकवादियों का इन- स्विंगर

कभी दलालों का आउट-स्विंगर

कभी अमेरिका का यॉर्कर

कभी अपराधों का बाउंसर

कभी पिच पर तोड़फोड़ के क्रैक

कभी पाक और चीन का डबल स्पिन अटैक

कभी जयचंदों की चुगली

कभी सफेदपोश देशद्रोहियों की गुगली

 

आज़ादी  के बाद

खूब चौके -छक्के उड़ाते रहे भ्रष्टाचारी

मैदान की हरियाली चरते रहे अत्याचारी

देश ने तो बस

आंसू पिए और जख्म खाए

पिछतर साल बीत गए

पर अभी तक हम

अच्छाइयों के

अर्द्ध शतक तक भी नहीं पहुंच पाए।

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