बुद्ध के उपदेश केवल शब्द नहीं, जीवन जीने की प्रेरणा हैं। उनके द्वारा कही गई बातें तब तक महत्व नहीं रखतीं, जब तक हम उन्हें अपने जीवन में नहीं अपनाते। बुद्ध का जीवन एक ऐसा उदाहरण है, जो हमें त्याग, करूणा, और अहिंसा का संदेश देता है। उनके जीवन से जुड़े अनेक स्थल हैं, पर श्रावस्ती का महत्व सबसे अलग है। यह वह स्थान है, जहाँ बुद्ध ने अपने जीवन के 25 वर्ष व्यतीत किए और जहां उन्होंने सबसे अधिक उपदेश दिए।
श्रावस्ती में बुद्ध ने अपना अधिकांश जीवन व्यतीत किया, और यही वह स्थान है, जहाँ उनके जीवन की अनेक महत्वपूर्ण घटनाएँ घटित हुईं। बुद्ध और उनके अनुयायी कहीं एक जगह स्थायी रूप से नहीं रहते थे। उन्हें श्रमण कहा जाता था क्योंकि वे लगातार भ्रमण करते और अपने उपदेशों का प्रचार-प्रसार करते थे। वर्षा का मौसम उनके लिए चुनौतीपूर्ण होता था, क्योंकि उनके वस्त्र बारिश से बचाने में सक्षम नहीं होते थे। बुद्ध और उनके अनुयायी किसी राजमहल में शरण नहीं लेते थे, भले ही उन्हें कई राजाओं ने आमंत्रित किया हो। बुद्ध ने राजसी जीवन त्यागा था और साधारण जीवन को अपनाया था।
बुद्ध ने महाजनपदों के राजकुमारों का आतिथ्य स्वीकार नहीं किया, बल्कि उन्होंने आम्रपाली जैसी गणिका का आतिथ्य स्वीकार किया। आम्रपाली बुद्ध के उपदेशों से इतनी प्रभावित हुई कि उसने अपना जीवन बुद्ध को समर्पित कर दिया और धम्मसंघ में सम्मिलित हो गई। यह बुद्ध की उदारता और समानता के सिद्धांत का उदाहरण है।
श्रावस्ती एक प्राचीन नगर था, जो कभी कोशल राज्य की राजधानी हुआ करती थी। यह स्थान वर्तमान उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले में स्थित है। श्रावस्ती का नाम आज सहेत-महेत के नाम से जाना जाता है, लेकिन इसका पुराना गौरवशाली इतिहास इसे एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक केंद्र बनाता है। बुद्ध के जीवन से जुड़ी कई जगहें जैसे लुम्बिनी, सारनाथ और कुशीनगर आज भी विकसित हो चुकी हैं, लेकिन श्रावस्ती का उतना विकास नहीं हो पाया है।
श्रावस्ती के सेठ सुदत्त, जिन्हें अनाथपिण्डक कहा जाता था, ने बुद्ध के लिए जेतवन विहार का निर्माण कराया था। यह स्थल बुद्ध के लिए ध्यान और उपदेश देने का केंद्र बना। राजकुमार जेत ने इस भूमि को अनाथपिण्डक को बेचने से मना कर दिया था, लेकिन अनाथपिण्डक की भक्ति और समर्पण ने जेत को प्रभावित किया और उन्होंने भूमि का एक हिस्सा उपहार स्वरूप दे दिया।
श्रावस्ती का एक और दिलचस्प और प्रेरणादायक पहलू अंगुलिमाल की कथा है। अंगुलिमाल एक डाकू था, जिसने अपने गुरु की सलाह पर हजारों लोगों की हत्या की थी और उनकी उँगलियों की माला बनाकर पहनी थी। लेकिन बुद्ध की करुणा और उपदेशों ने उसके जीवन को पूरी तरह बदल दिया। बुद्ध ने उसे समझाया कि अगर वह किसी को जीवन नहीं दे सकता, तो उसे किसी का जीवन लेने का भी अधिकार नहीं है। इस संवाद से अंगुलिमाल का हृदय परिवर्तन हुआ और वह बुद्ध का शिष्य बन गया।
बुद्ध का जीवन और उनके उपदेश आज के समय में भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उनके समय में थे। अहिंसा, करुणा और समानता के सिद्धांत आज की दुनिया में भी उतनी ही ज़रूरत हैं। बुद्ध का यह संदेश कि "अप्प दीपो भव" यानी "अपना प्रकाश स्वयं बनो" हमें प्रेरित करता है कि हम अपने जीवन में आत्मज्ञान प्राप्त करें और अपने रास्ते का स्वयं निर्माण करें।
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