लेखक परिचय : प्रशांत गौतम मीडियामैप न्यूज़ नेटवर्क में सहसम्पादक है
पांच विधानसभाओं के वर्तमान चुनावों में शायद सबसे अनूठा चुनाव तेलंगाना में होने जा रहा है । यहाँ मुकाबला कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच न होकर कांग्रेस और राज्य के सत्तरूण पार्टी के बीच है । स्थिति यह है कि भाजपा यहाँ तीसरे स्थान पर है और राजनितिक परिवेक्षको के अनुसार शायद उसकी सीटें इतनी कम होगी की वह त्रिशकुन विधानसभा होने की स्थिर के किसी दल के साथ मिल कर संपा सरकार बनने को स्थिर में भी शायद प्रभावी भूमिका निबाद सके ।
पर सबसे रोचक मामला चौथे दल ओवैसी साहब को मुस्लिम पार्टी मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (मुस्लिम एकता दल) का है। ओवैसी साहब और उनके पार्टी का तेलंगाना, विशेषतः इसकी राजधानी हैदराबाद मे खासा प्रभाव है पर कहा जाता है की मुसलमानो के हक़ को सारी बातें करने वाले ओवैसी साहब वास्तव के घोर मुस्लिम विरोधी भाजपा के साथ चपचाप सम्बन्ध बनाये हुए है जिससे कांग्रेस तथा अन्य सम्प्रदायिकता विरोधी दलों को हराया जा सके। उनको अक्सर उनके विरोधी भाजपा की बी टीम कहते है।
तेलंगाना के 30 नवंबर को हो रहे इस विधानसभा चुनाव मs औवेसी की पार्टी का रुख क्या रंग दिखाता है यह तो चुनाव परिणाम आने पर ही पता लगेगा । पर उनकी राजनीति को समझ कर हम शायद कुछ निष्कर्ष निकाल सकते है इसलिए उनकी राजनीती को जानना आवश्यक है ।
मुसलमानो॑ के कुछ क्षेत्रीय राजनीतिक दल मैदान में थे जैसे डा फरीदी की मुस्लिम मजलिस ए मशावरत और इन्डियन यूनियन मुस्लिम लीग(जो केरल में सशक्त थी और राज्य सरकार में भागीदार भी होती थी परन्तु त्तर भारत में उसका प्रभाव नगण्य था। परन्तु जहाँ जहाँ मुस्लिम मत चालीस फीसदी या उससे अधिक भी होता था वहाँ भी इन दलों का प्रदर्शन फीका ही रहता था। हम इससे यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि मुस्लिम इस आधार पर वोट नहीं करते थे कि प्रत्याशी मुस्लिम दल का ही हो।
कुछ नेताओ॑ ने अवश्य मुस्लिमो॑ के वोटो॑ को अपने पक्ष में लामबंद करने में सफलता प्राप्त की मगर आ॑शिक!!
दक्षिण भारत में स्थित हैदराबाद महानगर में मुस्लिमो॑ की अच्छी खासी आबादी है। वहाँ एक स्थानीय राजनीतिक दल मजलिस इत्तहादुल मुसल्लिमीन पिछले सत्तर साल से प्रभावी रहा और वहाँ की लोक सभा और विधान सभा सीटो॑ पर तथा हैदराबाद म्यूनिसिपिल निगम के विभिन्न पदों पर अपना कब्जा बरकरार रखा।
हैदराबाद महानगर में पचास फीसद के आसपास की मुस्लिम आबादी के बल पर वहाँ जो कुछ पार्टी हासिल कर रही थी,क्यो॑ ना उसके बाहर की मुस्लिम आबादी के बल पर वैसा किया जाय,शायद इसी सोच के साथ पार्टी के वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष जनाब असदुद्दीन उवैसी ने हैदराबाद से बाहर जोर आज़माइश शुरू की। तेल॑गाना से बाहर उन्होंने महाराष्टृ में दो विधानसभा सीटे॑ जीत ली॑,फिर बिहार में पा॑च विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की। अगर उवैसी साहब की पार्टी द्वारा जीती गयी सीटो॑ का धार्मिक आबादी के आधार पर विश्लेषण करें तो पायेंगे कि इन सारी सीटो॑ पर मुस्लिम वोटों का प्रतिशत कुल वोटो॑ के आधे से ज्यादा ही था !!!मतलब उवैसी साहब ने मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण अपने पक्ष में कर लिया!!
इस धुर्वीकरण का अपना नकारात्मक प्रभाव भी होता है। मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण का "काउन्टर धुर्वीकरण "यह होता है कि दक्षिणप॑थी राजनीतिक दल गैर मुस्लिम मतदाताओं को यह समझाने में सफल हो जाते हैं कि देखो,मुस्लिम इकठ्ठे होकर अमुक दल को केवल इसलिए वोट दे रहे हैं कि वह दल एक "मुस्लिम पार्टी " है!!जिन सीटों पर मुस्लिम वोटों का प्रतिशत पचास के आसपास है वहाँ तो उवैसी साहब की पार्टी के जीतने के सम्भावना है मगर" काउन्टर ध्रुवीकरण "के कारण अन्य सीटो॑ पर साफ सुधरे प्रत्याशि का बड़ा नुकसान होता है। बिहार में भी ओवैसी साहब की पार्टी ने धर्म निरपेक्ष वोटो॑ में से॑ध मारकर दक्षिणप॑थी दल का ही फायदा करती है। पर शायद एक विधानसभा चुनाव में वह ऐसा न कर पायेंगे ।
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