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आजकल के अंग्रेजी स्कूल और हिंदी दिवस: मातृभाषा की उपेक्षा

अंकुर गौतम

A person in a green shirt

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नई दिल्ली | बुधवार | 4 सितम्बर 2024

हिंदी दिवस हर साल 14 सितंबर को मनाया जाता है, ताकि हमें अपनी मातृभाषा हिंदी के महत्व का एहसास हो सके। लेकिन विडंबना यह है कि आजकल के अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में हिंदी को वह सम्मान और जगह नहीं मिल रही, जिसकी वह हकदार है। यह स्थिति न केवल हमारी भाषा बल्कि हमारी संस्कृति और पहचान के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन गई है।

आज के दौर में जब हम चारों तरफ अंग्रेजी के प्रभाव को देखते हैं, हमें यह सोचना जरूरी हो जाता है कि आखिर हिंदी का स्थान कहां है? खासतौर पर स्कूलों में, जहां बच्चों की शिक्षा और संस्कारों की नींव रखी जाती है। शिक्षा का माध्यम जो कि किसी भी बच्चे की सोच और समझ को आकार देने में अहम भूमिका निभाता है, वहां हिंदी की उपेक्षा स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।

बीते कुछ दशकों में अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की संख्या में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। इन स्कूलों का मकसद अंग्रेजी भाषा में शिक्षा देना है, जोकि अपने आप में बुरा नहीं है। लेकिन इन स्कूलों में जिस तरह से हिंदी को नज़रअंदाज किया जा रहा है, वह चिंताजनक है। बच्चों को अंग्रेजी सिखाने के नाम पर उनकी मातृभाषा को कमजोर और नीचा दिखाया जा रहा है। कई स्कूलों में हिंदी बोलने पर जुर्माना तक लगाया जाता है, ताकि बच्चे केवल अंग्रेजी में ही संवाद करें।

इस स्थिति का सबसे बड़ा असर बच्चों पर पड़ता है। वे अपनी जड़ों से दूर होते जा रहे हैं। हिंदी उनके लिए एक बोझ बनती जा रही है, जबकि अंग्रेजी को वे सफलता और उन्नति का माध्यम मानते हैं। हालांकि, यह सच है कि अंग्रेजी एक वैश्विक भाषा है और उसका महत्व है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम अपनी मातृभाषा को भूल जाएं या उसे कमतर आंकें।

 

लेख एक नज़र में
हिंदी दिवस हमें याद दिलाता है कि हमारी मातृभाषा हिंदी का महत्व क्या है। लेकिन आजकल के अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में हिंदी को वह सम्मान और जगह नहीं मिल रही, जिसकी वह हकदार है।
यह स्थिति न केवल हमारी भाषा बल्कि हमारी संस्कृति और पहचान के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन गई है। हमें जरूरत है कि हम हिंदी और अंग्रेजी के बीच एक संतुलन बनाएं और अपनी मातृभाषा को सम्मान दें।
स्कूलों और सरकार को भी इस दिशा में पहल करनी चाहिए, ताकि बच्चे हिंदी को अपनी पहचान के रूप में अपनाएं।

 

अंग्रेजी स्कूलों की लोकप्रियता के पीछे एक बड़ी वजह अभिभावकों की सोच भी है। आजकल ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में दाखिला दिलाना चाहते हैं। उनका मानना है कि अंग्रेजी में शिक्षा मिलने से उनके बच्चे बड़े अधिकारी बन सकेंगे, समाज में सम्मान पाएंगे और बेहतर करियर की संभावनाएं होंगी।

यह सोच आंशिक रूप से सही हो सकती है, लेकिन यह भी समझना जरूरी है कि भाषा केवल एक संवाद का माध्यम नहीं है, बल्कि यह हमारे विचारों, भावनाओं और संस्कृति की अभिव्यक्ति का साधन भी है। यदि हम अपनी भाषा को महत्व नहीं देंगे, तो हम अपने मूल्यों और संस्कारों से भी दूर हो जाएंगे।

हिंदी दिवस का उद्देश्य हमें यह याद दिलाना है कि हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर है। यह हमारी पहचान है और इसे सुरक्षित रखना हमारा कर्तव्य है। लेकिन आज की शिक्षा प्रणाली में, खासकर अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में, हिंदी को वह स्थान नहीं दिया जा रहा, जो उसे मिलना चाहिए।

हर साल हिंदी दिवस पर भाषण दिए जाते हैं, कार्यक्रम होते हैं और हिंदी के महत्व पर चर्चा की जाती है, लेकिन सवाल यह है कि क्या इससे स्थिति बदलती है? क्या हिंदी को वह मान-सम्मान मिल रहा है, जिसका वह हकदार है?

यह सच है कि आज के वैश्विक युग में अंग्रेजी का महत्व बहुत बढ़ गया है। यह व्यापार, विज्ञान, तकनीक और वैश्विक संचार की भाषा बन गई है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हम अपनी मातृभाषा को भूल जाएं। हिंदी हमारी जड़ें हैं, हमारी संस्कृति का आधार है।

हमें जरूरत है कि हम हिंदी और अंग्रेजी के बीच एक संतुलन बनाएं। अंग्रेजी सीखना और उसे अपनाना महत्वपूर्ण है, लेकिन अपनी मातृभाषा को नकारना नहीं। स्कूलों को इस दिशा में पहल करनी चाहिए। उन्हें बच्चों को हिंदी का महत्व समझाना चाहिए और यह सिखाना चाहिए कि किसी भी भाषा को सीखना बुरा नहीं है, लेकिन अपनी मातृभाषा को भूलना हमारी संस्कृति से दूर होने के समान है।

सरकार और शिक्षा नीति-निर्माताओं को भी इस पर ध्यान देना चाहिए। नई शिक्षा नीति में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के महत्व को बढ़ाने की बात की गई है, लेकिन इसे जमीनी स्तर पर लागू करने की जरूरत है। स्कूलों में हिंदी को एक सम्मानजनक स्थान मिलना चाहिए, ताकि बच्चे इसे केवल एक विषय के रूप में न देखें, बल्कि अपनी पहचान के रूप में अपनाएं।

इसके साथ ही, अभिभावकों को भी अपनी सोच बदलने की जरूरत है। उन्हें समझना चाहिए कि अंग्रेजी सीखना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी अपनी मातृभाषा को जानना और समझना है। बच्चों को दोनों भाषाओं में समान रूप से पारंगत बनाने की दिशा में काम करना चाहिए, ताकि वे किसी भी भाषा को न कमतर समझें और न ही किसी एक भाषा को अपने अस्तित्व से जोड़ें।

अंग्रेजी स्कूलों की बढ़ती संख्या और हिंदी की उपेक्षा एक गंभीर मुद्दा है, जो हमें हमारी जड़ों से दूर कर रहा है। हिंदी दिवस हमें यह याद दिलाने का अवसर है कि हमारी मातृभाषा हमारी पहचान और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। इसे संजोना और सम्मान देना हमारी जिम्मेदारी है। यदि हम आज की पीढ़ी को यह नहीं सिखा पाए कि अपनी भाषा का सम्मान करना कितना जरूरी है, तो हमारी सांस्कृतिक धरोहर खतरे में पड़ जाएगी।

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