रोज की तरह मॉर्निंग वाक करके में पार्क की ब्रेंच पर बैठ गया। थोड़ी देर में रामजी लाल भी पास आकर बैठ गए। मैने उनके चेहरे की तरह देखा। कुछ उखड़े-उखड़े लग रहे थे। " क्यों क्या बात है ? सब ठीक तो है न घर-परिवार में ," मैने पूछा।
"हाँ सब ठीक है", वह मरी सी आवाज़ में बोले।
"फिर क्या बात है, उखड़े-उखड़े क्यों लग रहे हो ", मैने पूछा।
"क्या बताऐ समय ही कुछ ऐसा आ गया है। हर तरफ टकराव और संघर्ष का माहौल बन गया है। ऐसे में मन परेशान हो जाता है " वह बोले।
"अरे यह हमारे जैसे लोगो के लिए कोई परेशान होने की बात नहीं है। "चुनाव आने वाले है ऐसे में एक दूसरे पर छीटाकशी , सही गलत आरोप और गडे मुर्दे उखाड़ने जैसे बाते हो होगी ही। फिर मीडिया भी इन बातो को तूल देकर खूब उछलता है। इससे माहौल बिगड़ जाता है। इन बेकार की बातो पर मत ध्यान दिया करो। " मैने कहा।
"वह तत्ख स्वर में बोले", "यह ही तो समस्या है। तुम्हारे जैसे समझदार और पढ़े लिखे लोग भी इस लड़ाई-झगडे की गन्दी राजनीति के आगे कुछ सोच नहीं पाते है। अगर इससे ऊपर उठो तो समझ में आये की दुनिया में क्या हो रहा है। "
मै संकट में आ गया। रामजी लाल चिन्तनशील व्यक्ति है। यह तो मै जानता था पर यह समझना मुश्किल था कि उन्हें इस समय क्या चिंता सता रही है।
"साफ साफ बोलो किस टकराव और संघर्ष की बात कर रहे हो", मैने कहा।
"अरे भाई असली संकट संस्कृति और मूल्यों के टकराव का है। विदेशी शासन से आज़ादी के ७७ साल बाद लगता है हम फिर गुलाम हो रहे है। हम अपने तोर तरीके , मूल्य और मान्यताए सब भूल रहे है " वह बोले।
"हाँ यह बात तो है। पर क्या किया जाये दुनिया बहुत तेज़ी से बदल रही है। मोबाइल और इंटरनेट ने सारी दुनिया को एक कर दिया है। वे कहते है कि अब हम एक ग्लोबल विलिज में रहते है न की अलग अलग देशो में ,'मैने कहा।
यही तो हमारा दुर्भाग्य है। पर समस्या यह है कि अपनी संस्कृति और अपने मूल्य -मान्यताओं के बारे में कुछ बोलो तो लोग दंकयानूसी कहेंगे और फिर आपको दलगत राजनीति से जोड़ेंगे। कोई उससे ऊपर उठ कर सोचने को तैयार ही नहीं है ",रामजी लाल के स्वर में हताशा का भाव था।
बात करते हुए हम पार्क के बाहार आये और चायवाले की बेन्च पर बैठ गए।
"वैसे इस समय ऐसा क्या हो गया जो तुम इतना परेशान हो", मैने चाय की चुस्की लेते हुए रामजी लाल से पूछा।
मुझे देश विदेश की जानकारी रखने का शौक है और मै यहां वहाँ सब पढ़ता रहता हूँ। कल मैने कुछ ऐसा पढ़ा जिसको पढ़ कर मुझे अपनी संस्कृति के बारे में बहुत चिंता हो रही है " वह बोले।
"ऐसा क्या पढ़ लिया जो इतने चिन्तित हो मुझे भी तो बताइये ", मैने कहा।
"बता तो दूंगा पर तुम उस बात की बारीकी समझ नहीं पाओगे और जब तुम्हारे जैसे बुद्धिजीवी ही नहीं समझेगा तो आम आदमी की समझ में क्या खाक आयेगा ", यही सोच कर मैं परेशान हूँ ", वह बोले।
"खेर बताओ तो ऐसा तुमने क्या पढ़ा-सुना जिससे तुम इतने परेशान हो", मैने कहा।
वह बोले तुम्हे पता है की अमेरिका में कोको उद्योग की लाबी ने भारत में कोको उंत्पादो के प्रचार-प्रसार के लिए १२ हजार करोड़ डॉलर की योजना बनायी है। तुम इसका मतलब समझते हो।
"मैने सचमुच कुछ नहीं समझा। "उद्योग धन्धो की इस बात का हमारी संस्कृति और मूल्य मान्यताओ से क्या लेना देना ", मैने पूछा।
"वह बोले" प्रयास यह है की भारत में चॉकलेट का प्रचलन और बढ़ाया जाय और सब लोग चॉकलेट ही खाया करे "
"तो इसमें इतनी बड़ी बात क्या है " मैने पूछा।
वह उत्साहित होकर बोले " यही तो बात है जो मैं कह रहा था। यह इतना बड़ा षड्यंत्र है और हम समझ नहीं पा रहे है। वह हमारी पारम्परिक मिठाई को खत्म करके उसकी जगह चॉकलेट को जमाना चाहते है। जिससे वह मुनाफा कमाए और हमारा मिठाई व्यापर बैठ जाए। "
"अगर तुम्हारी बात मान भी ली जाय तो इसका संस्कृति और मूल्य मान्यताओं से क्या लेना देना जिसकी तुम बात कर रहे थे ", मैने रामजी लाल से पूछा।
"ओह आप नहीं समझे जब मिठाई का बाजार बर्बाद होगा तो लड्डू कहा मिलेंगे और जब लड्डू नहीं मिलेंगे तो हम अपने देवी देवताओ को प्रसाद कैसे चढ़ायेंगे सोचा आपने " वह बोले।
हाँ वास्तव में यह तो मैने बिलकुल नहीं सोचा था।
"लड्डू का हमारे धर्म और संस्कृति में बहुत महत्व है। वह भक्ति , उत्सव और आस्था का प्रतीक है। लड्डू के न होने से हमारी संस्कृति , मूल्य और मान्यताऐं सब खतरे में आ जायँगी ", वह बोले।
उनके विचारो में मुझे दम लगा और मैं भी लड्डू के भविष्य को लेकर चिंता में पड़ गया। एक -दो मिनट चुप रह कर मैने रामजी लाल से पूछा "तो फिर आपकी राय में क्या किया जाये। "
वह बोले "अमेरिका की कोको-चॉकलेट लाबी बहुत शक्तिशाली है। हम इसका कुछ नहीं कर सकते। हाँ पर लड्डू हमारी परम्परा ,आस्था और भक्ति का अभिन अंग है और करोड़ो वासियो भारत का प्रिय व्यजन है और उसके समर्थन के लिए हम जन मानस को संगठित करके एक बड़ा जन आन्दोलन खड़ा कर सकते है। " यह जन आन्दोलन लड्डू की, महिमा, उपादेयता, उसके ऐतिहासिक महत्व और हमारी धर्म संस्कृति में उसके स्थान जैसे विषयो पर जन चेतना जगायेगा। तभी हम चॉकलेट लॉबी के षड्यंत्र को विफ़ल करने में सक्षम होंगे।
"हाँ यह बात ठीक है और इस पर विचार-विमर्श किया जा सकता है", मैने कहा और रामजी लाल से विदा लेकर अपने घर की तरफ चल दिया।
(शब्द 960)
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