भारत में वर्तमान समय में उन सिद्धांतों और मूल्यों पर हमला हो रहा है, जिन पर हमने अपने स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखी थी। इस स्थिति ने हमें महात्मा गांधी के विचारों और सिद्धांतों से प्रेरणा लेने के लिए मजबूर किया है। गांधीजी के लेख और संपादकीय पढ़ने से मैंने उनकी सोच को गहराई से समझा और महसूस किया कि उनका सत्याग्रह सिर्फ नागरिक अवज्ञा नहीं, बल्कि न्याय, सत्य और मानवता का आध्यात्मिक आंदोलन था।
गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में अपने अखबार "इंडियन ओपिनियन" में "सत्याग्रह" शब्द की शुरुआत की। यह शब्द "सत्य" और "आग्रह" से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है सत्य का आग्रह। गांधीजी के लिए सत्य सिर्फ तथ्यात्मक नहीं, बल्कि उसमें न्याय, प्रेम और मानवता भी शामिल थे। सत्याग्रह का उद्देश्य विरोधी को हराना नहीं, बल्कि उसे सत्य और न्याय के पक्ष में लाना था। गांधीजी का मानना था कि विरोधी को बल प्रयोग से नहीं, आत्मिक परिवर्तन से जीता जा सकता है, और अहिंसा इस प्रक्रिया का प्रमुख साधन था।
गांधीजी के अनुसार, सत्याग्रही का लक्ष्य अपने विरोधी को पराजित करना नहीं, बल्कि उसे अपने पक्ष में लाना है। अन्यायपूर्ण कानूनों के खिलाफ आवाज उठाने और सजा को बिना प्रतिशोध के स्वीकार करने की आवश्यकता थी। जब समाज के लोग अन्याय के खिलाफ एकजुट होंगे, तो अन्यायपूर्ण शासन टिक नहीं पाएगा। गांधीजी ने आत्म-पीड़ा को आत्मशुद्धि का तरीका माना और इसे विरोध का एक अहिंसक साधन बताया।
गांधीजी का सत्याग्रह सिर्फ राजनीतिक प्रतिरोध नहीं था, बल्कि नैतिक प्रतिरोध था। वे मानते थे कि सत्य और आत्मिक शक्ति से उत्पीड़क का हृदय परिवर्तन किया जा सकता है। उनका जीवन यह सिखाता है कि समाज में परिवर्तन के लिए सत्य, प्रेम और न्याय पर आधारित एक मजबूत नैतिक दृष्टिकोण अपनाना जरूरी है।
आज के समाज में गांधीजी के सिद्धांतों और विचारों को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनका सत्याग्रह और अहिंसा का मार्ग हमें दिखाता है कि कैसे एक न्यायपूर्ण और दयालु समाज का निर्माण किया जा सकता है।
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लाल बहादुर शास्त्री जी की सादगी, ईमानदारी और विनम्रता आज भी लोगों के दिलों में बसी हुई है। उनके प्रति लोगों का अटूट प्रेम इसलिए था क्योंकि वे आम लोगों के बीच से निकले हुए लगते थे। जब देश में अनाज की कमी थी, तब उन्होंने "जय जवान, जय किसान" का नारा दिया, जिससे देशवासियों को एक नई दिशा मिली। उन्होंने यह विश्वास जताया कि देश की प्रगति का जिम्मा जवानों और किसानों पर है, और युवा पीढ़ी ही देश को सही दिशा में ले जा सकती है।
शास्त्री जी का जीवन सरलता का प्रतीक था। उनके आदर्श गुरु नानक जी के शब्द थे – "नानक नन्ने ही रहो, जैसे नन्ही दूब," जिसका अर्थ है कि हमें हमेशा विनम्र और सहनशील रहना चाहिए, जैसे दूब की घास जो कितनी भी तेज धूप में हरी रहती है। उन्होंने अपने जीवन में इसी आदर्श को अपनाया और सिखाया कि हमें आकर्षक फूल बनने की बजाय एक नन्हे पौधे की तरह सेवा में तत्पर रहना चाहिए।
शास्त्री जी की यही सादगी उन्हें बाकी नेताओं से अलग बनाती थी। उनके जीवन में सच्चाई और सेवा का महत्वपूर्ण स्थान था। वे मानते थे कि किसी व्यक्ति का मूल्य उसके काम से होता है, न कि उसके पद से। उनके नेतृत्व में देश ने ईमानदारी और सादगी से कई मुश्किल समयों का सामना किया। उन्होंने किसानों की मेहनत और जवानों के बलिदान को हमेशा सम्मान दिया और अपने जीवन का आदर्श बनाया।
उनका जीवन सिखाता है कि सच्चे नेता वही होते हैं जो जनता की भलाई के लिए समर्पित हों। आज भी शास्त्री जी की याद लोगों के दिलों में एक महान नेता के रूप में जीवित है। उनकी ईमानदारी और कर्मठता के कारण लोग उन पर पूरा विश्वास करते थे। यही गुण उन्हें आज भी लोगों के दिलों में अमर बनाए हुए हैं।
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