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स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया एक नाम

प्रशांत गौतम

A person in a suit

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नई दिल्ली | बुधवार | 31 जुलाई 2024

हीद उधम सिंह का नाम भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। उनका जीवन, संघर्ष और बलिदान हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उधम सिंह की मौत की वर्षगांठ पर हम उनकी वीरता और देशप्रेम को याद करते हुए उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं पर नजर डालते हैं।

 

उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में हुआ था। उनका असली नाम शेर सिंह था, लेकिन बाद में उन्होंने उधम सिंह नाम अपना लिया। उनके पिता का नाम टहल सिंह और माता का नाम नारायण कौर था। बचपन में ही माता-पिता का साया उनके सिर से उठ गया और उन्हें अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी।

 

13 अप्रैल 1919 का दिन भारतीय इतिहास में काले दिन के रूप में जाना जाता है। अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सभा पर जनरल डायर ने गोलियां चलवाई, जिसमें सैंकड़ों निर्दोष लोगों की जानें गईं। इस भयानक हत्याकांड ने उधम सिंह के मन में अंग्रेजों के खिलाफ गहरा गुस्सा और प्रतिशोध की भावना भर दी। उन्होंने उसी दिन प्रतिज्ञा की कि वे जनरल डायर और इस हत्याकांड के लिए जिम्मेदार अन्य ब्रिटिश अधिकारियों से बदला लेंगे।

 

लेख एक नज़र में
 
शहीद उधम सिंह का नाम भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। उनका जीवन, संघर्ष और बलिदान हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
उधम सिंह ने जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद जनरल डायर को मारने की प्रतिज्ञा की और 13 मार्च 1940 को लंदन में उसे मारा। उन्हें मौत की सजा सुनाई गई और 31 जुलाई 1940 को फांसी दी गई।
उधम सिंह का बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक अमर कहानी बन चुका है। उनका साहस, निडरता और देशप्रेम हर भारतीय के दिल में बसता है।
उनकी मृत्यु के बाद भी उनकी विरासत जीवित है और उनकी कहानी आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी। हम उधम सिंह की मृत्यु की वर्षगांठ पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनकी वीरता को सलाम करते हैं।

 

 

उधम सिंह ने अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए विदेश यात्रा की और वहां स्वतंत्रता संग्राम के अन्य नेताओं के संपर्क में आए। वे गदर पार्टी के सदस्य बने और ब्रिटेन में जाकर अपनी योजना को अंजाम देने की तैयारी की। उन्होंने कई सालों तक विदेशों में मेहनत की, ताकि वे अपने मिशन में सफल हो सकें।

 

उधम सिंह ने अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए 13 मार्च 1940 का दिन चुना। उस दिन लंदन के कैक्सटन हॉल में एक सभा हो रही थी, जिसमें माइकल ओ'डायर भी शामिल था। उधम सिंह ने सभा में पहुंचकर ओ'डायर पर गोलियां चला दीं, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई। इस घटना ने ब्रिटिश साम्राज्य को हिला कर रख दिया और उधम सिंह को तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया।

 

उधम सिंह पर लंदन की अदालत में मुकदमा चला और उन्हें मौत की सजा सुनाई गई। 31 जुलाई 1940 को पेंटनविल जेल में उन्हें फांसी दी गई। फांसी के समय उन्होंने 'इंकलाब जिंदाबाद' और 'भारत माता की जय' के नारे लगाए, जो उनकी देशभक्ति और साहस का प्रमाण थे।

 

उधम सिंह का बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक अमर कहानी बन चुका है। उनका साहस, निडरता और देशप्रेम हर भारतीय के दिल में बसता है। उनकी मृत्यु के बाद भी उनकी विरासत जीवित है और उनकी कहानी आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।

 

आज, जब हम उधम सिंह की मौत की वर्षगांठ पर उन्हें याद करते हैं, तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि उन्होंने अपने जीवन को देश के लिए न्यौछावर कर दिया। उनका बलिदान हमें यह सिखाता है कि देशप्रेम और स्वतंत्रता के लिए किसी भी हद तक जाना चाहिए। उधम सिंह की कहानी हमें यह भी सिखाती है कि अगर दिल में सच्ची लगन और हिम्मत हो, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं होता।

 

शहीद उधम सिंह की मृत्यु की वर्षगांठ पर हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनकी वीरता को सलाम करते हैं। उनके बलिदान और देशप्रेम की कहानी हमें हमेशा प्रेरित करती रहेगी। उनकी अमर गाथा हमारे दिलों में हमेशा जीवित रहेगी और हमें अपने देश के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए प्रेरित करती रहेगी।

 

उधम सिंह की वीरता और बलिदान को सलाम। जय हिंद!

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