राजस्थान में झूंझनू शेखावटी का पुराना शहर है। इसी इलाके में वह खेतड़ी स्टेट भी है, जहां भारत के प्रथम प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू के पूर्वज नंदलाल नेहरू कभी दीवान हुआ करते थे। यहाँ स्वामी विवेकानंद भी आये और रामकृष्ण मिशन की स्थापना हुई |
इसी स्थान पर वर्ष 1951 मे एक जाट परिवार में जगदीप साहब का जन्म हुआ था। आज राज्यसभा के सांसदों का निलंबन को लेकर सुर्खियों में है। उनकी नकल बनाते हुए कुछ माननीय संसद सदस्य सवालो के घेरे मे हैं।
धनखड़ साहब की राजनितिक राजा बड़े रोत्रक रही है | धनखड़, पेशे से वकील है, और वे संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं।
झूंझनू बार काउंसिल में लम्बे समय तक वकालत करने के बाद, वे वीपी सिंह के जनता दल से जुड़े और वर्ष 1989 का चुनाव जीता, तथा झूंझनू से सांसद बने।इसके बाद वह अलग अलग दलो मे रहे । वीपी सरकार के गिरते ही, चंद्रशेखर सरकार बनी। चार माह की इस सरकार में, वीपी को छोड़कर आये प्रथम बार के सांसद धनखड़, सीधे संसदीय कार्य मंत्री बने। चार माह में वो सरकार जब गिर गयी, तो धनखड़ साहब कांग्रेस में चले गये । 1991 में अजमेर से चुनाव लड़ा, और बुरी तरह हार गए।
फिर 1993 में कांग्रेस के टिकट पर उन्होंने किशनगढ़ से विधानसभा का चुनाव लडा और जीत गए। पर कांग्रेस हार गयी और राज्य मे भाजपा की सरकार बनी।
1998 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस तो जीती, गहलोत पहली बार सीएम बन गए मगर पूर्व केंद्रीय मंत्री धनखड़ को भाजपा के नाथूराम ने हरा दिया।
1998 में वे झूंझनू से सांसद का चुनाव लड़े, और हार गए।
अब कांग्रेस का वर्चस्व समाप्त हो रहा था। 2003 में धनखड़ साहब ने हवा का रुख भांपा और भाजपा मे चले गये । इस तरह 14 साल में यह उनका चौथा दल था।
भाजपा के वह अगले 17-18 साल पार्टी की लीगल सेल में मामूली काम करते रहे कि फिर, एक दिन उनका भाग्य जागा और उन्हें पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनाया गया।
दरअसल, अब तक राज्यपाल को केवल नाममात्र का मुखिया माना जाता रहा। मगर 2019 के बाद नया दौर आया और राज्यपाल का ऑफिस, भाजपा का कार्यालय और निर्वाचित सरकार के कामो के अड़ंगे लगाने का अड्डा बन गया है। राज्यपाल, विंधानसभा के पारित कानूनों को येन केन लटकाए रखने, मुख्यमंत्री से वाद विवाद करने और नौकरशाही को निर्देश देने का काम कर लेंगे|
इस नयी संस्कृति पर धनखड़ साहब खरे उतरे| पश्चिम बंगाल राजभवन और मुख्यमंत्री कार्यालय के बीच जोरदार बहसों का सिलसिला शुरू हुआ इससे पहले किसी राज्यपाल ने यह नही किया था। उपहार में उन्हें उपराष्ट्रपति के पद से नवाजा गया।
शायद ये संस्थाओं और संवेधानिक पदों पर गरिमा विहीन रहने का युग है। यदि धनखड़ साहब किसी दिन राष्ट्रपति भी बन जाये तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए |
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