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पूर्वाग्रहों से परे विज्ञान और मिथक को समझने का प्रयास

मीडिया  मैप न्यूज़

नई दिल्ली | गुरुवार | 12 सितम्बर 2024

डॉ.गौहर रजा एक लेखक, कवि, फिल्मकार और वैज्ञानिक हैं । हाल ही में प्रकाशित उनकी पुस्तक "मिथकों से विज्ञान तक" पर एक विशेष चर्चा आयोजित की गई। इस चर्चा में डॉ. मुज़फ्फर हुसैन गज़ाली ने डॉ रजा से उनकी पुस्तक के मुख्य बिंदुओं, ब्रह्मांड के विकास, मानव उत्पत्ति, सभ्यता की शुरुआत, और चाँद-सूरज के देवता होने की अवधारणाओं पर विस्तृत बातचीत की। डॉ रजा ने विज्ञान की परिभाषा और उसकी जटिलताओं को स्पष्ट करने के साथ-साथ, विभिन्न सभ्यताओं में ब्रह्मांड के विकास पर उनके दृष्टिकोण को भी साझा किया । इस बातचीत के माध्यम से, उन्होंने विज्ञान और मिथक के बीच के अंतर को समझाने का प्रयास किया है। आइए, इस संवाद के सारांश को विस्तार से समझते हैं। - संपादक

डॉ. गज़ाली: गौहर रजा साहब, आपकी पुस्तक का खास बिंदु क्या है?

 डॉ. गौहर रजा:   मेरी पुस्तक का मुख्य उद्देश्य यह है कि मैं विज्ञान की परिभाषा को समझाने की कोशिश करूँ। विज्ञान की परिभाषा हमेशा एक जटिल सवाल रही है, और यह सवाल मुझे भी परेशान करता रहा है। जब मैंने विज्ञान पढ़ा, तो महसूस किया कि परिभाषाएँ विज्ञान में बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। हालांकि, विज्ञान की अपनी परिभाषा भी उतनी ही जटिल है। समाज में भी यह बहस चलती है कि किसे विज्ञान कहा जाए और किसे नहीं। कई दावे किए जाते हैं कि हमारी पुरानी किताबों और धार्मिक ग्रंथों में विज्ञान छुपा हुआ है। जब मैंने दार्शनिकों और इतिहासकारों के दृष्टिकोण को देखा, तो मुझे यह समझ आया कि कोई एक परिभाषा नहीं है जिस पर सभी सहमत हों। मेरी किताब में मैंने विज्ञान की परिभाषाओं की समीक्षा की है और उन तत्वों को परिभाषित किया है जो विज्ञान में नहीं आते। इस तरह से हम यह समझ सकते हैं कि विज्ञान क्या है।

 

लेख एक नज़र में
 डॉ.   गौहर रजा की पुस्तक "मिथकों से विज्ञान तक" पर एक विशेष चर्चा आयोजित की गई। इस चर्चा में, उन्होंने विज्ञान की परिभाषा को समझाने की कोशिश की और बताया कि विज्ञान की परिभाषा हमेशा एक जटिल सवाल रही है।
उन्होंने ब्रह्मांड के विकास, मानव उत्पत्ति, सभ्यता की शुरुआत, और चाँद-सूरज के देवता होने की अवधारणाओं पर विस्तृत बातचीत की। उन्होंने बताया कि विज्ञान और मिथक दोनों ही मानव ज्ञान के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
 डॉ.   रजा की गहराई से भरी हुई सोच और वैज्ञानिक दृष्टिकोण हमें यह सिखाते हैं कि हमें अपने पूर्वाग्रहों को चुनौती देते हुए सच्चाई की ओर कदम बढ़ाना चाहिए।

 

 डॉ. गज़ाली:   ब्रह्मांड के विकास की कहानी किस प्रकार बदल रही है?

 डॉ. गौहर रजा:   ब्रह्मांड के विकास की कहानी विभिन्न सभ्यताओं की कहानियों से भरी हुई है। अफ्रीका, मेसोपोटामिया, मिस्र, भारत, चीन और ग्रीस में हमें ब्रह्मांड, पृथ्वी, और मानव जीवन के बारे में कई कहानियाँ मिली हैं। इन कहानियों में समाज के बदलते दृष्टिकोण और सोच का भी संकेत मिलता है। उदाहरण के लिए, पहले हमारे पास पृथ्वी के सपाट होने की अवधारणा थी, फिर यह गोल मानी जाने लगी। इसी तरह, अब हम जानते हैं कि पूरी कायनात फैल रही है। आइंस्टाइन ने भी पहले ब्रह्मांड के फैलने के सिद्धांत को नकारा था, लेकिन एडविन हबल के अनुसंधान ने इसे साबित किया। इस प्रकार, विज्ञान में लगातार बदलाव और सुधार होते रहते हैं।

डॉ. गज़ाली:   मनुष्य की उत्पत्ति की कहानी क्या है?

 डॉ.  गौहर रजा:   मेरी पुस्तक की शुरुआत एक गद्य नज़्म से होती है जो मानव उत्पत्ति की कहानी को दर्शाती है। विज्ञान के अनुसार, पृथ्वी पर जीवन का आरंभ लगभग 4.5 बिलियन साल पहले हुआ। जीवन ने कई रूप बदले और लगभग 3.5 बिलियन साल में यह आधुनिक मानव के रूप में विकसित हुआ। डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत के अनुसार, मानव और बंदर के बीच सीधी बदलाव की प्रक्रिया नहीं थी, बल्कि एक शाखा से दूसरी शाखा का विकास हुआ। वर्तमान मानव लगभग 200,000 साल पहले अफ्रीका से निकला और विभिन्न लहरों में फैलते हुए अन्य महाद्वीपों पर पहुंचा। विज्ञान ने साबित किया है कि सभी मानव जातियाँ अफ्रीका से शुरू हुईं और वहां से फैलती गईं। हालांकि, "हम क्यों हैं?" जैसे सवालों का उत्तर विज्ञान नहीं दे सकता।

डॉ.  गज़ाली:   मानव सभ्यता की शुरुआत कब हुई?

 डॉ.   गौहर रजा:   मानव सभ्यता की शुरुआत लगभग 10,000-12,000 साल पहले हुई। इससे पहले, मानव जीवन खानाबदोश था, और वह एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमकर भोजन इकट्ठा करता था। जब खेती की शुरुआत हुई, तो शहरों का निर्माण हुआ और स्थिर जीवन की शुरुआत हुई। यह बदलाव मानव विकास का महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसमें प्राइवेट प्रॉपर्टी और स्थायी बस्तियाँ स्थापित हुईं। सभ्यताओं का विकास मिस्र, मेसोपोटामिया और सिंधु घाटी जैसे क्षेत्रों में हुआ, जहाँ उपजाऊ भूमि और जलवायु ने शहरों और सभ्यताओं के निर्माण को प्रोत्साहित किया।

डॉ. गज़ाली:   एक ज़माने में चाँद और सूरज को देवता माना जाता था। अब जबकि मानव चाँद और मंगल पर जाने की तैयारी कर रहा है, क्या इनको अब भी देवता माना जाएगा?

 डॉ.  गौहर रजा:   जो लोग चाँद और सूरज को देवता मानते हैं, वे ऐसा मानते रहेंगे। लेकिन विज्ञान अब इन चीजों को मिथक के रूप में देखता है। पहले यह माना जाता था कि सात आसमान हैं, लेकिन अब हमें पता चला है कि ऐसा कुछ नहीं है। अरस्तू के समय से ही हम जानते हैं कि पृथ्वी गोल है और ब्रह्मांड की कई बातें वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हो चुकी हैं। आज, चाँद और सूरज जैसे तत्व विज्ञान के दृष्टिकोण से केवल खगोलीय पिंड हैं और देवता के रूप में उनकी कोई मान्यता नहीं है।

इस चर्चा के माध्यम से,  डॉ.   गौहर रजा ने विज्ञान और मिथक के बीच के जटिल संबंधों को स्पष्ट रूप से उजागर किया है। उनकी पुस्तक "मिथकों से विज्ञान तक" न केवल विज्ञान की परिभाषा की जटिलताओं को समझाती है, बल्कि विभिन्न सभ्यताओं की ब्रह्मांड संबंधी धारणाओं और मानव उत्पत्ति की कहानियों पर भी प्रकाश डालती है। इस विशेष संवाद में,  डॉ.   रजा ने ब्रह्मांड के विकास, मानव सभ्यता की शुरुआत, और धार्मिक आस्थाओं पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण के बदलाव को साझा किया है। यह बातचीत हमें यह समझने में मदद करती है कि कैसे विज्ञान और मिथक, दोनों ही मानव ज्ञान के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।  डॉ. रजा की गहराई से भरी हुई सोच और वैज्ञानिक दृष्टिकोण हमें यह सिखाते हैं कि हमें अपने पूर्वाग्रहों को चुनौती देते हुए सच्चाई की ओर कदम बढ़ाना चाहिए।

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