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आज का संस्करण

नई दिल्ली , 10 अप्रैल 2024

 

रिश्तों की दरकीं दीवारें,

धँसने लगी जमीन प्यार की I

भीतर से हो चुके खोखले,

लगता, हम भी जोशीमठ हैं I

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यह विकास की अंधी चालें,

विस्थापन की आँधी का भय I

भय, चिंता के नए जलजले,

लगता, हम भी जोशीमठ हैं I

         -सूर्यकुमार पांडेय

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